ना’पाक कलाकारों पर पाबंदी

By: Feb 21st, 2018 12:05 am

जब हिंदोस्तान का चप्पा-चप्पा मेहंदी हसन और गुलाम अली की गजलों का दीवाना था। बाजारों में असंख्य कैसेट बिकते थे। फिल्मों में भी उन कलात्मक आवाजों को जगह मिली। बाद के दौर में राहत फतेह अली खान ने भी संगीत की दुनिया में शोहरतें कमाईं। आतंकवाद तब भी था और आज भयानक, नफरत की हद तक है, लेकिन हिंदोस्तान ने पाकिस्तान के कलाकारों पर कभी भी पाबंदियां चस्पां नहीं कीं। हालांकि शिवसेना जैसी पार्टियों और दूसरे कट्टरपंथी संगठनों ने बार-बार मांगें की हैं कि पाकिस्तानी कलाकार और खिलाड़ी हमारी सरजमीं पर नहीं आने चाहिएं। क्रिकेट और हाकी के द्विपक्षीय मुकाबले तो समाप्त हो चुके हैं। न पाकिस्तानी हमारी धरती पर आते हैं और हमने भी पाकिस्तान के खेल प्रवास रद्द कर दिए हैं। विश्व और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों की मजबूरियां हैं कि दोनों देशों को किसी तीसरे देश में खेलना पड़ता है। ताजातरीन मुद्दा भी संगीत और कला का है। केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने अचानक बयान दिया है कि पाकिस्तान के कलाकारों का भारत में आने पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए। इस मुद्दे की न तो चर्चा थी और न ही यह मुद्दा फिलहाल प्रासंगिक है, तो फिर बाबुल ने यह बहस क्यों छेड़ दी? इससे दूसरे गंभीर मुद्दे गौण पड़ जाएंगे, ऐसा नहीं लगता। बैंकिंग और अन्य घोटालों की प्रासंगिकता अलग है। वे मुद्दे जारी रहेंगे, लेकिन बाबुल ने एक और मुद्दा जोड़ दिया है, जो बेहद संवेदनशील है। बेशक हम भी बाबुल के विचार का समर्थन करते हैं, लेकिन उसके साथ-साथ हमारी फिल्मों के पाकिस्तान में प्रदर्शन बंद होने चाहिएं। बालीवुड फिल्मों का एक बड़ा बाजार पाकिस्तान भी है। भारतीय फिल्मों के गीत-गानों और संगीत की जो असंख्य कैसेट पाकिस्तान के बाजार में बिकती हैं, उन पर भी पाबंदी लगे। भारत सरकार पाकिस्तान में अपना दूतावास/उच्चायोग भी बंद करे। भारत पाकिस्तान के नागरिकों को वीजा देना भी बंद करे। पाकिस्तान को जो ‘एमएफएन’ का दर्जा दे रखा है, भारत सरकार उसे सबसे पहले रद्द करे। आतंकवाद को देखें, पाकपरस्त घुसपैठों और संघर्ष विराम उल्लंघनों को गिनें, पाक की ना’पाक साजिशों पर गौर करें, तो यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था कि पाक के साथ तमाम रिश्ते तोड़ दिए जाते, लेकिन हमारी संस्कृति, हमारे मूल्य, हमारी मानवता ही हमें रोकते रहे हैं। आज भी कोई गंभीर रूप से बीमार होता है और वह पाकिस्तानी भारत में इलाज कराना चाहता है, तो हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तुरंत निजी तौर पर दखल देती हैं और उस पाकिस्तानी को वीजा देने का निर्देश देती हैं। लेकिन पाकिस्तान ने कब हमारी भावनाओं का सम्मान किया है? पाकिस्तान आज भी लगातार हमारे खिलाफ ‘छद्म युद्ध’ छेड़े हैं। लेकिन फवाद खान, माहिरा, आतिफ असलम, अदनान सिद्दिकी, सैजल सरीखे कई पाकिस्तानी कलाकार भारत आते रहे हैं और हमारी फिल्मों में भी काम करते रहे हैं। हमने ‘जिंदगी’ चैनल पर पाकिस्तान के कई धारावाहिक भी देखे हैं और उन्हें सराहा भी है। पाक कलाकार भारत के बाजार में मोटा पैसा कमाते हैं, लेकिन पाकिस्तान पहुंच कर ना’पाक राग अलापना शुरू कर देते हैं। हमारे देश में आज भी ऐसे विचारक, सुधारक लोग हैं, जो पाकिस्तान से रिश्ते तोड़ने के खिलाफ हैं। कलाकारों को वे ‘अदनी’ इकाई मानते हैं। कइयों का दावा यह है कि हम पाकिस्तान से संबंध तोड़ ही नहीं सकते। ऐसी बाजार और कूटनीति की मजबूरियां हैं, लेकिन ऐसे बौद्धिक जरा सैनिकों की ओर भी देखें। नए साल 2018 के शुरुआती 50 दिनों में  करीब 30 जवान ‘शहीद’ हुए हैं। बीते साल 2017 में भी 138 फौजी ‘शहीद’ हुए थे। सैनिकों की शहादत पर उनके अपने आंगन में जो चीत्कार मचता है, जो रुदन सुनाई देता है, वह भी एक किस्म का ‘मार्मिक संगीत’ है। पाक-समर्थको! जरा इस संगीत को भी सुनें और महसूस करें कि ऐसे पाकिस्तान के कलाकारों को हिंदोस्तान में आने दिया जाए? यदि संगीत और कला से दोतरफा समस्याएं और गुत्थियां सुलझनी होतीं, तो कभी का ऐसा हो चुका होता। पाकिस्तान के एक कलाकार थे-अदनान सामी। वहां के गृह मंत्री रहे सियासतदां की सिफारिश पर उन्हें ‘भारतीय’ बनाया गया और नागरिकता दी। हमें तो इस पर भी आपत्ति है, लेकिन यह भारत सरकार का बड़प्पन और सदाशयता ही है। बहरहाल हमें अपने जांबाज सैनिकों के समर्थन में खड़े रहना है, उनका मनोबल बनाए रखना है, उनकी कीमत पर कुछ भी स्वीकार्य नहीं है। यदि भारत सरकार को पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना है, तो कुछ बेहद कड़े फैसले लेने होंगे।


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