नारी देह की झीनी चदरिया

By: Feb 4th, 2018 12:12 am

मासिक धर्म के बारे में महिलाओं को खुलकर अपनी बच्चियों से बात करनी चाहिए। बच्चियों ही क्या घर में भाइयों और पिता से भी इस बात की खुलकर चर्चा होनी चाहिए। आखिर यह सृष्टि की रचना की सर्वाधिक आवश्यक प्रक्रिया है, जिसमें नर व नारी दोनों का विचार विमर्श व इस दौरान सहयोग अति आवश्यक है…

मनुष्य आज जबकि चांद पर पहुंच चुका है, ‘मंगल’ पर पानी की खोज कर रहा है। हैरत इस बात की है कि विज्ञान के इस युग में हम महिलाओं के मासिक धर्म जो कि प्राकृतिक है, चिकित्सीय दृष्टि व सृष्टि की रचना के लिए नितांत आवश्यक है, उस पर चर्चा करने से आज भी हम इधर-उधर बगलें झांकते हैं और इस प्राकृतिक प्रक्रिया को अछूत मानते हैं।

मुझे अच्छी तरह याद है कि 14 वर्ष की आयु में जब मुझे मासिक धर्म शुरू हुआ उस समय तक मैं शरीर की इस नितांत जरूरी प्राकृतिक प्रक्रिया से अनभिज्ञ थी। प्रथम रक्तस्राव पर मैंने अकेले कमरे में रोना शुरू किया कि मुझे कोई भयंकर रोग लग चुका है और मैं कुछ ही दिनों की इस धरती पर मेहमान हूं शायद। मैं इस बात से भी अनभिज्ञ थी कि मेरी मां मुझे दिन-रात चैक करती थी कि कहीं मुझे मासिक धर्म तो शुरू नहीं हुआ। आफिस से आने के बाद जब उन्होंने मुझे रोते देखा तो डांट कर चुप करवाया और मुझे रक्त बहाव सोखने का सामान देकर, किसी से इसका जिक्र न करने, पूजा घर में न जाने, अचार वगैरह न छूने और मंदिर न जाने की हिदायत दी।

आज मैं सोचकर हैरान होती हूं कि मासिक धर्म ऐसी कौन सी नकारात्मक प्रक्रिया है जो इसको इतना सहेज, परहेज व छुपाकर  रखने की आवश्यकता है। मैं सदा सोच-सोच  कर परेशान होती थी कि मां या दूसरी औरतें कुछ दिनों में इशारों में क्या बात करती हैं। इन्हें क्या हो जाता है, जो यह मंदिर नहीं जातीं। उन दिनों इंटरनेट की सुविधा नहीं थी। सखी सहेलियों से भी कभी खुलकर बात करने की हिम्मत नहीं हुई। एक बार मैंने अपनी मासी से पूछा तो उन्होंने हंस कर कहा कि उन दिनों उन्हें कौवा छूकर चला जाता है।  हैं……..बात कभी हजम नहीं हुई!

भारत की क्या पूरे विश्व में महिलाएं अपने इन दिनों की बात कोड वाक्य में करती हैं। जापान में मेरी लिटल मिस स्ट्राबेरी आई है, डेनमार्क में- देयर आर कीम्मुनिट्स इन द फन हाउस, ब्रिटेन मे-आय एम फ्लाइंग द जैपनीस फ्लैग, दक्षिण अर्फिका में – मेरी नानी ट्रैफिक में फंस गई है, लैटिन अमरीका के कुछ हिस्सों में-जैनी हेज ए रेड ड्रैस आन जैसे भाव वाक्य बोले जाते हैं। भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न तरह से अनेक वैकल्पिक भाव वाक्यों का प्रयोग मासिक धर्म के लिए किया जाता है, हमारे भारत में कपड़े आना, रेड सिग्नल, सिग्नल डाउन, महीना आना जैसी सांकेतिक शब्दावलियों का प्रयोग किया जाता है।

महिलाओं ने भी सदैव इस प्रथा को अपनी बेटियों, बहुओं व बहनों को देकर स्वयं महिला वर्ग से अन्याय किया है। मासिक धर्म के बारे में महिलाओं को खुलकर अपनी बच्चियों से बात करनी चाहिए। बच्चियों ही क्या घर में भाइयों और पिता से भी इस बात की खुलकर चर्चा होनी चाहिए। आखिर यह सृष्टि की रचना की सर्वाधिक आवश्यक प्रक्रिया है, जिसमें नर व नारी दोनों का विचार- विमर्श व इस दौरान सहयोग अति आवश्यक है। उस दौरान साफ-सफाई ताकि बच्चियों को संक्रमण न हो, उसका ध्यान रखने की हिदायत देनी चाहिए। यही नहीं, इस चक्र काल में महिलाओं में खून की कमी, कमजोरी, बदन दर्द, अत्यधिक रक्तस्राव की कभी-कभी समस्या हो जाती है, जिसके लिए हर घर में आवश्यक दवाइयां, आयरन का प्रबंध सदा रहना चाहिए। मासिक धर्म की शुरुआत में बच्चियां इस चीज से भी अनभिज्ञ होती हैं कि उन्हें अब गर्भ ठहरने की भी क्षमता आ चुकी है ताकि वे हर तरीके से सावधान रहें। मुझे यह भी अच्छी तरह से याद है कि एक बार यात्रा के दौरान मुझे मासिक धर्म शुरू हुआ तो मेरे पास न पैड था, न समस्या बताने का कोई सरोकार न ही स्थान। अपने दाग दुपट्टे से छुपते-छुपाते घर पहुंचना कितना दुष्कर था, कभी भुलाया नहीं जाता। दाग का डर हर एक महिला के सिर पर सवार रहता है। ‘मुझे पीछे से देख, कहीं दाग तो नहीं लगा है।’ यहां तक कि महिलाओं को बाजार से पैड भी खरीदना हो तो भी वे दुकान के खाली होने का मौका देखती हैं और दुकानदार भी ऐसे छुपते छुपाते कागज में लपेटकर उसे पकड़ाते हैं गोया कोई आपराधिक वस्तु का मोल भाव हो रहा हो। जिन बच्चियों को मासिक धर्म के दौरान असहनीय पीड़ा होती है और ऐसे में उनके सालाना परीक्षाएं चल रही हों या कोई आवश्यक इंटरव्यू हो तो बहुत बार लड़कियां पढ़ाई में अच्छी होने के बाद भी या तो परीक्षा नहीं दे पाती हैं या फिर अंक कम आते हैं। अफसोस है लड़की विर्द्िथयों की इस प्राकृतिक पीड़ा के लिए शिक्षण संस्थानों में भी किसी किस्म की कोई छूट नहीं है। यह महिला वर्ग के साथ एक ऐसा अन्याय है जिसके बारे में कोई नहीं सोचता। बस जरूरी यही है कि वह मंदिर न जाए, अपने उन दिनों की बात छुपा के रखे और कहीं दाग- धब्बे भी न दिखें। आखिर कब तक महिलाएं मासिक धर्म की इस वर्जित पीड़ा से लड़ती रहेंगी। दाग ही तो हैं, हैं तो अच्छे ।


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