नैना देवी शक्तिपीठ

By: Feb 17th, 2018 12:07 am

मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य तीन मूर्तियां हैं। दायीं तरफ माता महाकाली की, मध्य में मां नैना देवी की और बायीं तरफ भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास में ही पवित्र जल का तालाब है, जो मंदिर से कुछ दूरी पर ही स्थित है। मंदिर के समीप ही एक गुफा है, जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है…

श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाडि़यों पर स्थित एक भव्य मंदिर है। यह देवी के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। नैना देवी हिंदुओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केंद्र है जो कि अनेकों शताब्दी पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दायीं ओर भगवान गणेश और हनुमान की मूर्ति है। मुख्य द्वार को पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देंगी। शेर माता का वाहन माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य तीन मूर्तियां हैं। दायीं तरफ  माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास में ही पवित्र जल का तालाब है, जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही एक गुफा है, जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।

मंदिर का इतिहास

मंदिर से संबंधित एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है। एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया और देखा कि एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है। उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा। एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी मां को सपने में यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है। नैना ने पूरी स्थिति और उसके सपने के बारे में राजा वीर चंद को बताया। जब राजा ने देखा कि यह वास्तव में हो रहा है, उसने उसी स्थान पर नैना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया। श्री नैना देवी मंदिर महिषापीठ नाम से भी प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां पर मां नैना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था। किंवदंतियों के अनुसार महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसे ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था। वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था। इस वरदान के कारण महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया। राक्षस के साथ सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया, जो उसे हरा सके। देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग-अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई। महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा। देवी ने उसे कहा कि अगर वह उसे हरा देगा, तो वह उससे शादी कर लेगी। लड़ाई के दौरान देवी ने दानव को परास्त किया और उसकी दोनों आंखें निकाल दी। एक और कहानी सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ जुड़ी हुई है। जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ  अपना सैन्य अभियान 1756 में छेड़ दिया। वह नैना देवी गए और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक महायज्ञ किया। आशीर्वाद मिलने के बाद उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया।

पहुंचने का रूट चार्ट व दूरी

श्री नैना देवी मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यह प्रसिद्ध मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर- 21 पर स्थित है। यहां से नजदीकी हवाई अड्डा चंडीगढ़ है, जो नई दिल्ली के साथ जेट एयरवेज और इंडियन एयरलाइंस के टिकट से जुड़ा हुआ है। चंडीगढ़ से मंदिर की दूरी लगभग 120 किलोमीटर है। आनंदपुर साहिब और कीरतपुर साहिब से इस स्थान के लिए टैक्सियां किराये पर मिल जाती हैं। कीरतपुर साहिब से तीर्थ की दूरी 30 किलोमीटर है, जिसमें से 18 किलोमीटर पहाड़ी रास्ता है। आनंदपुर साहिब से दूरी 20 किलोमीटर है, जिसमें आठ किलोमीटर पहाड़ी रास्ता है। पुराने दिनों में लोग आनंदपुर साहिब के पास कौलांबला टोबा से मंदिर को जाने के लिए ट्रैक का इस्तेमाल करते थे। श्री नैना देवी के लिए पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से बस सेवा उपलब्ध है।

किराए का ब्यौरा

चंडीगढ़ से नैना देवी तक बस में सफर करना हो तो 150 रुपए किराया, नंगल से नैना देवी तक 40 रुपए और ज्वालाजी से नैना देवी तक 190 रुपए का किराया लगता है।

रोप-वे शुरू होने का समय

मार्च से सितंबर तक सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक, अक्तूबर माह में  सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक व दिसंबर से फरवरी माह में सुबह नौ बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक। अधिकांश तीर्थयात्री जय माता दी का जप करते हुए पैदल पहाड़ी की चोटी पर पहुंच जाते हैं। दूरी काफी आरामदायक है और डेढ़ घंटे के भीतर तय की जा सकती है। आराम सुविधाओं सहित शौचालयों की व्यवस्था भी है। नाश्ते और ठंडे पानी की भी व्यवस्था यहां पर की गई है।

खान-पान सुविधाएं

पटियाला धर्मशाला और लंगर क्षेत्र के निकट एक अन्य होटल है, जहां कि 1000 श्रद्धालुओं को मुफ्त रहने की सुविधा दी जाती है। मातृ आंचल, मातृ छाया, मातृ शरण में वीआईपी एसी और गैर एसी कमरे मामूली दरों पर उपलब्ध करवाए जाते हैं।  लंगर में नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना पूरी तरह से मुफ्त मिलता है। इसके अतिरिक्त बोलने पर 24 घंटे मुफ्त खाना भी उपलब्ध करवाया जाता है। रोशनी, पानी और उच्च सामूहिक रोशनी श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध करवाई जा रही है। एक संस्कृत कालेज और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मंदिर ट्रस्ट के संरक्षण में चलाया जा रहा है।

आवास सुविधा

श्री नैना देवी के बस अड्डे के समीप एक सरकारी विश्राम घर है, जिसका प्रबंधन हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है।   उचित आवास पहाड़ी की चोटी पर भी पाया जा सकता है। मंदिर न्यास द्वारा दुकान नंबर एक का संचालन वर्ष 1994 से किया जा रहा है। वहां पर श्रद्धालुओं के लिए शुद्ध घी की मिठाइयां, हलवा, बेसन लड्डू, जलेबी व बर्फी उपलब्ध करवाई जाती है।  गुरु का लाहौर जिला बिलासपुर में आनंदपुर साहिब पंजाब से 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह तीन लोकप्रिय गुरुद्वारों का समूह है। यह तीन गुरुद्वारे त्रिवेणी साहिब, गुरुद्वारापुर साहिब और गुरुद्वारा सेहरा साहिब हैं। यह समूह लाहौर की तरह बनाने के लिए गठित किया गया था, क्योंकि गुरु की शादी के लिए लाहौर जाना राजनीतिक रूप से ठीक नहीं था। इसलिए गुरु गोबिंद सिंह की शादी जीत कौर के साथ सन् 1734 में इसी स्थान पर हुई थी।

नैना देवी मंदिर के प्रमुख त्योहार

नैना देवी मंदिर में नवरात्र का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष में आने वाले दोनों नवरात्र, चैत्र मास और अश्विन मास के नवरात्र में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर माता नैना देवी की कृपा प्राप्त करते हैं। माता को भोग के रूप में छप्पन प्रकार की वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। श्रावण अष्टमी को यहां पर भव्य व आकषर्क मेले का आयोजन किया जाता है। नवरात्र में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दोगुना हो जाती है। बाकी अन्य त्योहार भी यहां पर काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

 – राकेश गौतम, नैना देवी

 


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