पर्यटन क्षेत्र को संवारे बजट

By: Feb 14th, 2018 12:07 am

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला से हैं

बजट की कमी के चलते आज तक प्राकृतिक सौंदर्य को सहेजने के लिए कुछ खास नहीं किया गया, जबकि असम, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्य पर्यटन को विकसित करने में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। हिमाचल में युवा वर्ग केवल सरकारी नौकरियों पर आश्रित है और हर वर्ष बेरोजगारों की यह लंबी फेहरिस्त तैयार हो रही है। जबकि यहां के पर्यटन को विकसित कर युवाओं को पर्यटन उद्योग स्वरोजगार के अनेक रास्ते खोल देगा…

भारत की सभ्यता व संस्कृति बहुत समृद्ध व प्राचीन है। इसी वजह से यहां विदेशी सैलानियों के लिए बहुत कुछ है। भारत के अनेक राज्यों की अपेक्षा हिमाचल प्रदेश भले ही एक छोटा पहाड़ी राज्य है, मगर प्रकृति ने इसे अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य व स्वच्छ वातावरण दिया है। यहां के लोगों की देवी-देवताओं में अपार श्रद्धा है और हमारे राज्य की धार्मिक परंपराएं व संस्कृति अत्यंत समृद्ध है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हिमाचल प्रदेश में धार्मिक, सांस्कृतिक व साहसिक पर्यटन की भरपूर संभावनाएं हैं। मगर इस बात का दुःख है कि पर्यटन विकास आज तक प्राथमिकता के तौर पर किसी भी सरकार के एजेंडे में नहीं आया। यही वजह है कि हर साल लाखों पर्यटक आने के बावजूद, पर्यटकों को लंबे समय तक बांधे रखने की प्रक्रिया से हिमाचली पर्यटन अभी कोसों दूर है। धार्मिक पर्यटन की बात करें, तो धार्मिक स्थलों वाला पर्यटक ज्यादा से ज्यादा एक दिन के लिए हिमाचल के धार्मिक स्थलों पर आता है। उनकी गाडि़यां अपने राज्यों की होती हैं। यहां तक कि खाने-पीने की व्यवस्था भी पर्यटक अपने आप पहले से ही कर के आते हैं। माथा टेक कर पर्यटक उसी रोज वापस हो जाते हैं और हिमाचल के हिस्से में आता है पर्यटकों द्वारा फेंका गया कूड़ा-कर्कट, प्लास्टिक की थैलियां व बोतलें। इस तरह हिमाचल में आने वाले लाखों पर्यटकों से अगर धार्मिक पर्यटकों वाली संख्या घटा दी जाए, तो सैलानियों की संख्या स्वतः ही घट जाती है। यही हाल शिमला व मनाली का है।

शिमला आने वाले अधिकतर पर्यटक भी माल रोड और कुफरी का चक्कर काटकर एक दिन में ही वापस हो जाते हैं या मनाली के लिए निकल जाते हैं। कारण स्पष्ट है कि आज तक प्रदेश को पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश में पर्यटन विकास की नई-नई नीतियों को शामिल नहीं किया गया, जिसके आकर्षण से पर्यटकों की आमद बढ़ने के बावजूद लंबे समय तक पयर्टकों को बांध कर रखा जा सके। नतीजतन पर्यटन से प्रदेश को अपेक्षित आय नहीं मिल पाती। देवभूमि हिमाचल का कण-कण प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज है। जहां डलहौजी जैसा प्यारा मिनी स्विट्जरलैंड है, देवताओं की नगरी छोटी काशी ‘मंडी’ है, पहाड़ों की रानी शिमला है, जन्नत की हूर मनाली है, असंख्य झीलों, झरनों, कल-कल करती नदियों, मदिरों के शंखनाद, देवदारों की गरिमामय ऊंचाई, श्वेत-धवल ऋषि स्वरूप पहाड़, स्वच्छ शुद्ध प्राण वायु, अपराधों से दूर, भोले-भाले लोग व समृद्ध संस्कृति क्या नहीं है यहां, जिसको पर्यटन की दृष्टि से एक सिस्टम के तहत पर्यटकों के लिए चुंबकीय स्थल बना दिया जाए। हिमाचल के कितने ही प्राकृतिक स्थल हैं जो पर्यटकों से तो दूर ही हैं, वे प्रदेश की जनता के लिए भी अगम्य हैं। इसके कारण हर वर्ष अपने प्रदेश की प्रकृति का आनंद लेने की बजाय वे गोवा, दुबई, मॉरिशस, अंडमान-निकोबार पहुंच जाते हैं। कारण स्पष्ट है भ्रमण करने वाले हैं, पैसा भी है पर आना-जाना इतना दूर पड़ता है कि प्रदेशवासी भी बाहर का रुख करते हैं। इसके लिए जरूरी है जगह-जगह हेलिपैड बनाए जाएं। इससे न केवल पर्यटक आने की सुविधा महसूस करेगा, बल्कि यह फिल्म इंडस्ट्री को भी अपनी ओर खींचेगा। अभी पिछले वर्ष शिमला फेस्टिवल के दौरान सिने तारिका से दीप्ति नवल से मेरी इस संदर्भ में बातचीत हुई तो वह भी यह दिक्कत बता रही थीं कि हिमाचल में फिल्म इंडस्ट्री के लिए सब कुछ है, मगर यहां आना-जाना, खराब सड़कों से इतना भारी पड़ता है कि सब कश्मीर या स्विट्जरलैंड का रुख कर लेते हैं। इस तरह से हिमाचल फिल्म इंडस्ट्री को भी अपने आकर्षण में बांधने से चूक रहा है।

बजट की कमी के चलते आज तक प्राकृतिक सौंदर्य को सहेजने के लिए कुछ खास नहीं किया गया, जबकि असम, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्य पर्यटन को विकसित करने में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। हिमाचल में युवा वर्ग केवल सरकारी नौकरियों पर आश्रित है और हर वर्ष बेरोजगारों की यह लंबी फेहरिस्त तैयार हो रही है। जबकि यहां के पर्यटन को विकसित कर युवाओं को पर्यटन उद्योग स्वरोजगार के अनेक रास्ते खोल देगा। हिमाचल के पास अपनी आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए यूं भी कोई खास साधन नहीं हैं, लेकिन पर्यटन को विकसित करके इस आर्थिकी को सुदृढ़ किया जा सकता है। धार्मिक स्थलों पर अधोसरंचना का मूलभूत ढांचा व सुविधाएं ही पर्याप्त नहीं हैं। यहां मनोरंजक पार्कों, आसपास जल क्रीड़ाओं, बर्फ वाले क्षेत्रों में हेलि-स्कीईंग, रिवर राफ्टिंग, बोटिंग, जहां बर्फ नहीं है वहां कृत्रिम आइस-स्केटिंग रिंग, पैराग्लाइडिंग, फिल्म सिटी रिजॉर्ट्ज, चिडि़याघर, घुड़सवारी, सांस्कृतिक गतिविधियां, प्रदेश के पकवानों, पारंपरिक परिधानों व वस्तुओं के बाजार आदि अनेक गतिविधियों से पर्यटकों को बांधा जा सकता है।

बर्फ के आंचल हिमाचल से पहले ही बर्फ रूठ रही है। इस सीजन में भी अनुभव काफी प्रतिकूल रहा है। ऐसे में जो सैलानी केवल बर्फ देखने के लिए पहाड़ पर उमड़ते हैं, उनकी आमद कम हो रही है। उस पर हमारा पारंपरिक परिधान शाल पट्टू व टोपी सैलानियों के साथ उनके कैमरे में कैद होकर जाते हैं। जबकि हमारे शाल, पट्टुओं, रेजटों, जैकेटों व टोपियों के हर पर्यटक स्थल पर बजार होने चाहिएं। हमारी यह धरोहर कैमरों में नहीं, सैलानियों के थैले में जानी चाहिए। तभी तो स्थानीय पारंपरिक कामगार इससे लाभान्वित होंगे। होम स्टे को बढ़ावा देकर हम न केवल पर्यटकों अपने प्रदेश की संस्कृति, रहन-सहन व खान-पान से जोडें़गे, बल्कि उन्हें यहां ज्यादा समय बिताने के लिए भी बांध सकेंगे। इस तरह से हजारों बेरोजगार युवकों व घर बैठी औरतों को रोजगार के अवसर मिलेंगे, जिससे यकीनन प्रदेश की आर्थिकी सुदृढ़ होगी। इस बजट में हिमाचल प्रदेश के पर्यटन को प्राथमिकता दी जाए, इस बात की दरकार है।

ई-मेल : kanchansharma210@yahoo.com


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