पर्यावरण संभाल के पैमाने पर फिसलन

By: Feb 20th, 2018 12:07 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

प्रधानमंत्री ने वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम में भारत को वैश्विक निवेश खोलने के लिए धारदार अपील की थी। आपसे मेरा अनुरोध है कि उतने ही धारदार तेवर से अपने ही फूड कारपोरेशन से कहिए कि उत्तर भारत में पराली को ऊंचे दामों पर खरीदे, पर्यावरण मंत्रालय से कहिए कि वायु प्रदूषण और जन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परियोजनाओं को स्वीकृति न दे और भारत की रैंक को 177/180 से ऊपर उठाइए…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावोस में वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की सालाना मीटिंग में प्रमुख वक्ता थे। अपनी प्रभावपूर्ण शैली में उन्होंने निवेशकों का आवाहन किया और बताया कि भारत उनके लिए खुला है। उनके इस वक्तव्य का भारतीय मीडिया में अच्छा कवरेज भी हुआ। परंतु हम भूल गए कि उसी मीटिंग के दौरान उसी वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम द्वारा ही एक और रपट जारी की गई थी। इस रपट में विश्व के 180 देशों के पर्यावरण की स्थिति की रैंकिंग की गई थी। इस रपट में भारत को 180 देशों में 177वां स्थान प्राप्त हुआ है। नेपाल और बांग्लादेश के साथ हम निचले पांच देशों में शोभा पा रहे हैं। हमारी कम रैंकिंग का प्रमुख कारण प्रदूषित वायु के कारण हर वर्ष हो रही 16 लाख से अधिक मौतें है।

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में पराली, कोयले का जलाया जाना एवं मोटरकारों द्वारा उत्सर्जित दूषित गैसें हैं। पराली की समस्या उत्तर भारत में विशेषकर देखी जाती है। इस समस्या के विकराल रूप धारण करने का एक कारण है कि यहां श्रमिक की मजदूरी ज्यादा है। खेत से पराली को एकत्रित करके गोशाला अथवा कागज फैक्टरी तक पहुंचाना बहुत महंगा पड़ता है। ज्ञात हो कि पश्चिम बंगाल में प्रतिवर्ष 3.6 करोड़ टन पराली का उत्पादन होता है, जबकि पंजाब में केवल दो करोड़ टन। बंगाल में पराली ज्यादा पैदा होने के बावजूद वहां जलाई नहीं जाती, क्योंकि वहां श्रमिक की मजदूरी पंजाब की तुलना में कम है। मेरे अनुमान में बंगाल में दिहाड़ी 200-250 रुपए है, जबकि पंजाब में 400 रुपए। अतः बंगाल के किसान पराली को घर लाकर पशुओं को खिलाते हैं अथवा कागज फैक्टरी को बेचते हैं, जबकि पंजाब के किसानों के लिए इसे जलाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।

पंजाब में किसानों का पराली जलाने का दूसरा कारण यह है कि यहां धान की कटाई और गेहूं बुआई के बीच मात्र 15 दिन का समय होता है। इसके विपरीत बंगाल में धान की एक फसल के बाद धान की दूसरी फसल निरंतर काटी और बोई जाती है। बंगाल में पराली हटाकर जल्द ही खेत को गेहूं के लिए तैयार करने का दबाव नहीं रहता है। अतएव बंगाल में पराली जलाई नहीं जाती है। पंजाब जैसी ही परिस्थिति हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की है। अतः पराली जलाने, वायु के प्रदूषित होने एवं वैश्विक प्रदूषण मानकों में भारत के 177/180 रैंक होने का कारण पराली के वैकल्पिक उपयोग में आने वाला खर्च है। समस्या का सीधा समाधान है कि फूड कारपोरेशन द्वारा उत्तर भारत में पराली को ऊंचे दामों पर खरीदा जाए, ताकि किसानों के लिए पराली एकत्रित करने के लिए 400 रुपए की दिहाड़ी देना लाभप्रद हो जाए। पराली का दाम ऊंचा हो तो बिहार और झारखंड से श्रमिकों की फौज आकर 15 दिन में ही पराली को एकत्रित करके गोशाला अथवा कागज फैक्टरी में पहुंचा देगी।

संभवतः सरकार का ध्यान इस ओर नहीं गया है, अतः सरकार ने पराली जलाने को प्रतिबंधित कर दिया है। जाहिर है कि किसान के लिए गेहूं की बुआई करना अति महत्त्वपूर्ण है, अतः वह पराली को एकत्रित करने को गौण समझता है और सरकारी प्रतिबंध की अनदेखी करके पराली जलाता है। ऐसे में सरकारी प्रतिबंध असफल सिद्ध हो रहा है। प्रदूषण में भारत की न्यून रैंक का दूसरा कारण विकास परियोजनाओं से होने वाले प्रदूषण को सरकार का प्रोत्साहन है। सरकार द्वारा विकास परियोजनाओं के प्रदूषण से होने वाली हानि का मूल्यांकन नहीं किया जाता है। सही है कि विकास में कहीं लाभ होता है, तो कहीं हानि। परंतु यह लाभ अधिक होना चाहिए और हानि कम, तभी विकास होगा।

विकास परियोजनाओं को स्वीकृति देने में यह मूल्यांकन किया ही नहीं जाता है। जैसे रेल लाइन बिछने में जंगल कटते हैं, वन्य जीवों एवं मनुष्यों को एक तरफ से दूसरी तरफ जाने में कठिनाई होती है, ध्वनि एवं वायु प्रदूषण होता है इत्यादि। दूसरी तरफ रेल लाइन से माल की ढुलाई सस्ती हो जाती है और आर्थिक लाभ होता है। जरूरत है कि रेल लाइन से होने वाले पर्यावरण की हानि और अर्थव्यवस्था को होने वाले लाभ का समग्र आकलन कराया जाए। जैसे घर में फ्रिज खरीदना हो तो बिजली का खर्च और सब्जी की बचत दोनों का आकलन करना होता है। भारत साकार द्वारा किसी भी परियोजना के लाभ-हानि का समग्र आकलन नहीं किया जाता है। मंत्री अथवा प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करता है कि कौन सी परियोजना शुरू की जाएगी। यही कारण है कि पर्यावरण के लिए हानिप्रद परियोजनाएं स्वीकृत की जा रही हैं और पर्यावरण संरक्षण में भारत 177/180 के निचले रैंक पर खड़ा है। विषय को स्पष्ट करने के लिए मैं जल विद्युत का उदाहरण लेना चाहता हूं। वर्तमान में लागू जंगल कानून में व्यवस्था है कि किसी परियोजना के लिए जंगल को काटने के पहले परियोजना के लाभ-हानि का चिट्ठा दायर किया जाएगा। सोच है कि जंगल को तभी काटा जाना चाहिए, जब लाभ अधिक और हानि कम हो। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया था कि लाभ-हानि के आकलन के नियम बनाए। मंत्रालय ने यह कार्य भोपाल स्थित इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ फोरेस्ट मैनेजमेंट को सौंपा था। इंस्टीच्यूट ने अपनी रपट में कहा कि परियोजना के सभी पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का मूल्य रुपयों में गणित करके परियोजना से होने वाली हानि में जोड़ा जाना चाहिए।

जल विद्युत के संदर्भ में इंस्टीच्यूट ने कहा कि निम्न दुष्प्रभावों की गणित की जानी चाहिए। जल विद्युत बांधों के पीछे बने जलाशयों से जहरीली मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। ऊपर से नदी अपने साथ मृत पशु लेकर आती है। पशुओं के ये शव जलाशय की तलहटी में पड़े हुए सड़ने लगते हैं। पहले वे आसपास के पानी में उपलब्ध आक्सीजन को सोख लेते हैं और कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित करते हैं। जब पानी में आक्सीजन समाप्त हो जाती है, तब इन शवों के सड़ने से जहरीली मीथेन गैस निकलती है जो पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होती है। नागपुर स्थित नेशनल एन्यवायरनमेंट इंजीनियरिंग इंस्टीच्यूट ने पाया है कि टिहरी झील से मीथेन उत्सर्जन हो रहा है। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ फोरेस्ट मैनेजमेंट ने जल विद्युत परियोजनाओं का दूसरा प्रभाव पानी आधारित रोगों में वृद्धि का बताया है। जल विद्युत परियोजनाओं की झील में अथवा इनके नीचे सूखी हुई नदी के छोटे तालाबों में मच्छर पैदा होते हैं, जो कि रोग फैलाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व सूचना के अधिकार के अंतर्गत उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवा ने मुझे बताया था कि राज्य के प्रत्येक जिले में मलेरिया का प्रकोप कम हो रहा है, परंतु टिहरी में बढ़ रहा है।

प्रधानमंत्री ने वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम में भारत को वैश्विक निवेश खोलने के लिए धारदार अपील की थी। आपसे मेरा अनुरोध है कि उतने ही धारदार तेवर से अपने ही फूड कारपोरेशन से कहिए कि उत्तर भारत में पराली को ऊंचे दामों पर खरीदे, पर्यावरण मंत्रालय से कहिए कि वायु प्रदूषण और जन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने वाली परियोजनाओं को स्वीकृति न दे और भारत की रैंक को 177/180 से ऊपर उठाइए।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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