पुरानी पेंशन योजना के पक्ष में खड़ी हो सरकार

By: Feb 7th, 2018 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

अंशदायी पेंशन योजना विधेयक को प्रदेश सरकार द्वारा 15 मई, 2003 से पुरानी पेंशन योजना के स्थान पर लागू तो कर दिया गया, लेकिन आजकल सेवानिवृत्त हो रहे सरकारी कर्मचारी इसी योजना की खामियों का खामियाजा भी भुगत रहे हैं। अगर हम नवीन अंशदायी पेंशन योजना को दुखदायी पेंशन योजना के तगमे से नवाजें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी…

सरकारी कर्मचारियों की पेंशन योजना सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आती है। यह एक सर्वविदित सच्चाई है कि एक निश्चित अवधि के बाद मनुष्य की मानसिक एवं शारीरिक अवस्था में परिवर्तन के चलते उसकी कार्यक्षमता में कमी आने के कारण वृद्धावस्था में वह नियमित कमाई करने से वंचित हो जाता है और उसे अपने प्रियजनों के रहमोकर्म पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि हम वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो आज जो लोग समाज एवं देशहित के कार्य में लगे हुए हैं, सेवानिवृत्ति के बाद वृद्धावस्था में उनके सम्मानपूर्वक जीवनयापन की व्यवस्था होनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के मामले में केंद्र द्वारा पारित नवीन अंशदायी पेंशन योजना विधेयक को प्रदेश सरकार द्वारा 15 मई, 2003 से पुरानी पेंशन योजना के स्थान पर लागू तो कर दिया गया, लेकिन आजकल सेवानिवृत्त हो रहे सरकारी कर्मचारी इसी योजना की खामियों का खामियाजा भी भुगतने को मजबूर हैं।

इसकी बानगी देखनी हो, तो आप 27 सितंबर 2017 को दैनिक ‘दिव्य हिमाचल’ में प्रकाशित समाचार से समझ सकते हैं। इसके अनुसार शक्ति देवी पठानिया की नियुक्ति अप्रैल, 1997 को अनुबंध आधार पर हुई थी और 2006 को जाकर वह नियमित हुई। जुलाई, 2013 को वह सेवानिवृत्त हो गईं। आज 16 वर्षों की नौकरी के बाद उन्हें नई पेंशन स्कीम के तहत मात्र 1296 रुपए प्रतिमाह पेंशन मिल रही है। अगर हम नवीन अंशदायी पेंशन योजना को दुखदायी पेंशन योजना के तगमे से नवाजें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। किसी भी बड़ी योजना को लागू करने से पहले उसके नफे-नुकसान पर बहस होना जरूरी है। हो सकता है कुछ मामलों में नई पेंशन स्कीम में ज्यादा अंशदान कर रहे कर्मचारियों के लिए यह योजना लाभप्रद हो सकती है, जिनका सेवाकाल भी ज्यादा हो।  लेकिन क्लास सी एवं डी के उन कर्मचारियों के लिए, जो 40 वर्ष की आयु में जाकर नियमित हो रहे हैं और अभिदान शुरुआती दौर में बेहद मामूली है, उन्हें सेवानिवृत्ति पर मुट्ठी भर पेंशन राशि पर बुढ़ापा गुजारने पर विवश होना पड़ रहा है। न्यू पेंशन स्कीम परिभाषित अंशदायी आधार पर कार्य कर रही है तथा इसके लिए टियर-। और टियर-।। की व्यवस्था की गई है। टियर-। हिमाचल प्रदेश के उन सभी सरकारी सेवकों के लिए अनिवार्य है, जो 15 मई 2003 के बाद सरकारी सेवा में आए हैं और उन्हें अपने मूल वेतन एवं महंगाई भत्ते की दस प्रतिशत राशि का अभिदान देना होता है। सरकार भी इतना ही अंशदान करती है।

परिभाषित मौजूदा लाभकारी पेंशन योजना के स्थान पर लागू नवीन अंशदायी पेंशन योजना, विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी सरकारी सेवक के लिए 60 वर्ष की आयु तक 10 फीसद अंशदान करना अनिवार्य है, लेकिन हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों के मामले में यह बात फिट नहीं बैठती है, क्योंकि यहां कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष है। क्या प्रदेश सरकार अपने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 60 वर्ष करने का इरादा रखती है, ताकि हिमाचल के सरकारी सेवक भी केंद्रीय कर्मचारियों की तर्ज पर साठ वर्ष की आयु तक न्यू पेंशन स्कीम में अंशदान कर सकें? नवीन अंशदायी पेंशन योजना को लागू करने तथा कर्मचारियों से प्राप्त अंशदान की रकम की देखभाल के लिए एक स्वतंत्र पेंशन निधि नियामक तथा विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) की व्यवस्था की गई है। केंद्र एवं राज्यों के सरकारी सेवकों के पेंशन फंड की वृिद्ध एवं नियंत्रण की जिम्मेदारी एसबीआई, एलआईसी और यूटीआई पेंशन फंड के पास है तथा वर्तमान समय तक इनके पास अनुमानित लगभग दो लाख करोड़ रुपए की रकम जमा है । इसमें पांच सालों में दस फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, जिसे ज्यादा उत्साहवर्द्धक नहीं कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें सालाना मात्र एक रुपए की ही वृद्धि हो रही है और कर्मचारियों को निवेशित राशि के बदले शेयर जारी किए जाते हैं। एनएवी मूल्य में कम वृद्धि से बाद में कर्मचारियों को लाभ भी कम होने का अंदेशा है और वैसे भी शेयर बाजार में पेंशन फंड का निवेश जोखिम भरा है। एनपीएस के दुष्परिणामों को देखते हुए ही मई, 2003 के बाद हिमाचल प्रदेश सरकारी सेवा में नियुक्त हुए सरकारी सेवकों ने एनपीएस महासंघ का गठन कर पिछली एवं नई सरकार, विधायकों तथा मंत्रियों के समक्ष पुरानी पद्धति वाली ओल्ड पेंशन स्कीम को पुनः लागू करने की मांग उठाई है, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक रुख सामने नहीं आया है। अमूमन राजनीतिज्ञों को उनकी सकारात्मक सोच एवं रवैये के लिए ही जाना जाता है, लेकिन पेंशन संबंधित इस मसले पर उनकी उदासीनता समझ से परे है।

हिमाचल प्रदेश सरकार ज्यादा नहीं तो कम से कम केंद्र सरकार के समक्ष प्रदेश के कर्मचारियों को दरपेश आ रहीं पेंशन संबंधी चिंताओं के मद्देनजर लचीला रुख अपनाने की दरख्वास्त तो कर ही सकती है। और नहीं तो नवीन अंशदायी पेंशन योजना के अंतर्गत सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी सेवकों को उनकी रिटायरमेंट के बाद सम्मानपूर्वक सिर उठाकर जीने का हक देते हुए उनके लिए न्यूनतम पेंशन गारंटी देने की घोषणा भी की जा सकती है। आज एक सरकारी तंत्र में दो-दो पेंशन सिस्टम चल रहे हैं जो समानता की भावना के विपरीत है। वर्षों सरकारी कार्यों के लिए अपनी एडि़यां रगड़ने वाले कर्मचारियों के लिए सुरक्षित बुढ़ापा काटने के लिए जरूरी पेंशन राशि दिए जाने की व्यवस्था तो होनी ही चाहिए। यह उनका हक भी है।

ई-मेल : rmpanuj@gmail.com


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