पुस्तक समीक्षा

By: Feb 4th, 2018 12:05 am

कस्तूरी

पिछले 46 वर्षों से लेखन में सक्रिय प्रिया आनंद नए उपन्यास ‘कस्तूरी’ के साथ फिर पाठकों के सामने हैं। मोहब्बत का पेड़, बांस के जंगल में बांसुरी, मैं हवा हूं, बंद दरवाजों की खिड़कियां जैसे कहानी संग्रह व मेरा काबुली वाला, सुनो केया तथा फिर मिलेंगे जैसे उपन्यासों की रचयिता प्रिया आनंद इस बार लेखन को नई धार दे रही हैं। इस उपन्यास की विशेषता यह है कि इसने कागज पर उतरने में पूरे 25 साल ले लिए। लेखिका के अनुसार थीम उनके पास थी, वक्त भी था, पर इसके पात्र जैसे उनके साथ लुका-छिपी खेल रहे थे। कस्तूरी घुमंतू कबीले में रहने वाली मां और एक अंग्रेज पिता की संतान है, जबकि कोणार्क एक संपन्न जागीरदार के घर का योग्य, समर्थ और आकर्षक युवा है। दोनों ने बेशर्त प्यार किया, पर नियति ने अपनी स्क्रिप्ट पहले ही लिख रखी थी। यह खूबसूरत प्रेम परिस्थितियों के हवाले होकर रह गया। इसके बावजूद जो परिणाम सामने आया, वह सुखद आश्चर्य जैसा ही है। प्रेम जैसे शाश्वत व चिरंतन विषय पर लिखे गए इस उपन्यास में कई ट्विस्ट हैं। आशा है यह उपन्यास पाठकों को पसंद आएगा।

कस्तूरी : प्रिया आनंद, राज पब्लिशिंग हाउस, 9/5123, पुराना सीलमपुर, दिल्ली, 175 रुपए

चल चला चल

प्रसिद्ध लेखक जगदीश बाली लोगों को जीने की राह दिखाती अभिप्रेरक पुस्तक ‘चल चला चल’ को लेकर पाठकों के सामने हैं। इससे पहले इन्होंने ‘द स्पार्क इज विदिन यू’ पुस्तक लिखी थी, जो अंग्रेजी में थी। पाठकों की मांग थी कि इस तरह की अभिप्रेरक पुस्तक हिंदी में भी होनी चाहिए, इसलिए लेखक ने नई रचना की है। 252 पृष्ठों पर आधारित इस पुस्तक में 37 अध्याय हैं जो जीवन में आगे बढ़ने की सीख देते हैं। ये अध्याय लोगों के लिए जीवन की सीढियां चढ़ने के लिए मंत्र सरीखे हैं। लेखक का मत है कि जीवन में कभी खुशी, तो कभी गम तो चले ही रहते हैं। एक सुलझे हुए इनसान को चाहिए कि वह जीवन पथ पर बढ़ते हुए कभी घबराए न, बल्कि यह तय करे कि उसे क्या करना है और क्या नहीं। मनुष्य को अपना लक्ष्य तय करते हुए इस दिशा की ओर बेधड़क बढ़ना चाहिए। पुस्तक में कई अभिप्रेरक पाठ हैं जिन्हें अपने जीवन में उतार कर कोई भी इनसान अपनी मंजिल तक सफलतापूर्वक पहुंच सकता है। जीवन में किन बातों को अपनाना चाहिए और कौन-सी चीजों का निषेध करना चाहिए, इसका विवरण भी किताब में दिया गया है।

चल चला चल : जगदीश बाली, ऑथरप्रेस, क्यू 2-ए, हौज खास एनक्लेव, नई दिल्ली, 350 रुपए

प्रेत

प्रसिद्ध लेखक संतोष कुमार दास नया उपन्यास ‘प्रेत’ लेकर पाठकों के सामने हैं। 425 पृष्ठों पर आधारित इस उपन्यास के 18 अध्याय हैं। उपन्यास में कई उतार-चढ़ाव हैं, जो पाठक को रोमांचित करते हैं। इसमें हिमाचल के कबायली इलाके पर हुई खोजपूर्ण पुष्ट घटनाओं को कथा के साथ जोड़ा गया है, जिसके कारण पश्चिमी हिमालय की धरोहर संस्कृति का यह एक पुष्ट दस्तावेज है। उपन्यास में शरीर की सत्ता, ब्रह्मा की अभिव्यक्ति और आत्मा के आधार पर ज्ञान के निष्कर्ष को कथावस्तु के रूप में पिरोया गया है। कथा का मुख्य पात्र प्रेत मनःस्थिति को लेकर आयुर्पर्यंत सृष्टि का सुख भोगने को आतुर रहता है। विकृत मन का मालिक यह मनुष्य अपनी दिशाहीन बुद्धि के कारण स्वयं को एकमात्र कर्ता समझता है और सच्ची बात को नहीं देख पाता। वह भावनात्मक स्तर पर प्रेत होने को विवश हो जाता है। उपन्यास के हर पाठ में अनेक उतार-चढ़ाव है और पाठकों को पढ़ते हुए मनोरंजन की अनुभूति होती है।

प्रेत : संतोष कुमार दास, अर्थ विजन पब्लिकेशंज, एच-23/16, डीएलएफ, फेज-1, गुरुग्राम, 1100 रुपए

पत्थर तोड़ती औरत

करीब दो दशकों से प्रादेशिक व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कवि मनोज चौहान का नया काव्य संग्रह पाठकों के समक्ष है। इसमें कवि त्रिकाल का विस्तृत फलक समेटने को आतुर सत्यम, शिवम, सुंदरम की अवधारणा को छूने को प्रयासरत है। काव्य संग्रह की सभी 44 कविताएं अनुपम व पठनीय हैं। पाठकों को अंत तक बांधे रखना काव्य संग्रह की विशेषता है। कविता ‘लिंगड़ू की गठरिया’ को यदि दो-तीन बार पढ़ें, तो आप पर कविता का नशा छाने लगेगा। आप, आप नहीं रहेंगे, बल्कि कविता के अंतर्मन में उमड़े विभिन्न भावों में अपने को हमेशा कविता के समीप पाएंगे। यह कवि की कविता नहीं, समाज की कविता दिखने लगेगी। काव्य संग्रह की अन्य कविताएं भी भिन्न-भिन्न भावों को प्रकट करती हैं तथा सामाजिक संदेश देती हैं। आशा है कि यह काव्य संग्रह पाठकों को पसंद आएगा। लेखक के अब तक कई पत्रों-पत्रिकाओं में कविता, लघुकथा, कहानी, फीचर, आलेख व समीक्षा आदि प्रकाशित हो चुके हैं। कई संस्थाएं इन्हें सम्मानित भी कर चुकी हैं।

पत्थर तोड़ती औरत : मनोज चौहान, अंतिका प्रकाशन, सी-56, यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन, एक्सटेंशन-2, गाजियाबाद, 250 रुपए


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