बच्चों में जानने की क्षमता पैदा करें

By: Feb 17th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं बच्चों पर उनके विचार :

गतांक से आगे…

पहले के दिनों में जब बच्चा रोता था, तो मां उसे गोद में उठा लेती थी। अब वह उसे खिलौना पकड़ा देती है, उसे कैंडी लेने के लिए चले जाने को व मां को याद न करने को कहती है।  अधिक पैसे के बल पर बच्चे आपके नहीं बन जाते हैं। ऐसा करके आप अपनी अंतरात्मा मारने के साथ-साथ बच्चों को भी बर्बाद कर देते हैं। गलत ढंग से कमाया पैसा अथवा बिना कठोर परिश्रम या ईमानदारी के बिना कमाया पैसा जब बच्चों के पालन-पोषण पर खर्च किया जाता है, तो आप उनमें जहर भर रहे होते हैं। आप अपने को यह कह कर धोखा देते हैं कि मैंने बच्चे को यह अथवा वह बना दिया है, परंतु बच्चा अपने पिता को देखना नहीं चाहता है। उसे पता है कि उसका पिता गलत ढंग से पैसे कमाता है। बच्चा हर रोज ध्यान से अपने पिता के अविवेकपूर्ण कार्यों को देखता है। एक बच्चा अपनी मासूमियत से प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है। प्रकृति का भी विषय के लिए कुछ अनुशासन व विद्रोह होता है। ईमानदारी की कमाई कठोर परिश्रम की मांग करती है, यहां तक कि बच्चा भी इसे जानता है, हालांकि अवचेतन ढंग से। एक बार मैंने अपने मित्र व अमृतसर में ख्यात आर्थोपेडिक सर्जन डा. कर्म सिंह को कहा कि सरकार को गंभीर बीमारी की अवस्था में बच्चों की जान बचाने के लिए उन्हें आपातकाल कक्ष में पहुंचने योग्य बनाने के लिए हेलिकाप्टर की सेवा उपलब्ध करवानी चाहिए। सरकार को बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की जिम्मेवारी भी निभानी चाहिए। इस तरह सरकार को आपका ध्यान रखना चाहिए और आपको निस्वार्थ सेवा करनी चाहिए। यह सरकार की जिम्मेवारी होनी चाहिए कि बच्चों का कल्याण हो। बच्चों को महान राष्ट्रीय संपदा माना जाना चाहिए। लोग बच्चों को गलत शिक्षा देकर उन्हें बर्बाद कर देते हैं तथा फिर परिणाम को कोसते हैं। बच्चे पर दबाव मत डालें। कुछ चीजें विरासत में मिली होती हैं। अन्य चीजें विकसित की जाती हैं। बच्चा आपका अवलोकन कर आप में जो कुछ है, उसे ग्रहण कर लेगा। बच्चे का दिमाग इसकी कुशलता को जानता है तथा यह क्या चाहता है, यह भी जानता है।  हम बच्चे का परीक्षण करते जाते हैं, पर जिसकी जरूरत है, उसकी उपेक्षा कर देते हैं। बच्चे में खेलने की भावना सबसे पहले आती है। इसके कारण वह सबका दोस्त बनना चाहता है। बाद में जब इसकी अवलोकन क्षमता फिर भी विकसित नहीं होती, तो ग्रहणशीलता आती है और वह दूसरों की नकल उतारना शुरू कर देता है। अब आप उसकी प्रवृत्तियों का मूल्यांकन कर सकते हैं। एक बच्चा देखता है कि चूंकि उसके अभिभावक उच्च स्तर के व्यावसायिक लोग हैं, इसलिए वे काफी धन कमाते हैं और समाज में उनका आदर भी है। बच्चा भी इसी तरह का व्यवसाय अपनाने की सोचने लगता है। बच्चों को बहुत उकसावा नहीं देना चाहिए, उन पर कुछ अंकुश रखना चाहिए। यह मेरा बच्चा है, कहकर हम गलती करते हैं और यह लगाव हमें मार देता है। एक मुर्गी अपने चूजों को चुग्गा खिलाने के लिए बुलाती रहती है, परंतु जब चूजे अपना चुग्गा स्वयं ढूंढने में सक्षम हो जाते हैं, तो वह उन्हें अपने नजदीक आने की अनुमति नहीं देती। जरूरत इस बात की है कि हम अपने बच्चों में जानने की क्षमता विकसित करें। अपने अनावश्यक लगाव के कारण हम चाहते हैं कि हमारा बच्चा यह अथवा वह बन जाए। ऐसा करने से बच्चा एक परिधि तक सीमित हो जाता है। हमें अनिवार्य रूप से बच्चे के दुख व सुख में सहभागिता करनी चाहिए। शारीरिक व मानसिक रूप से यह अपरिपक्व है, किंतु अपनी वैयक्तिकता में यह परिपक्व है। वेद कहते हैं, पूर्णता में जन्मे, पूर्णता में जीए और बाद में पूर्णता में ही समा गए। एक बच्चा अपने में कुल मिलाकर पूर्ण है।


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