बड़े राज्यों की सीमाओं का खंडन हुआ और छोटे राज्य बने

By: Feb 7th, 2018 12:05 am

पूर्व मध्य काल में इन बड़े-बड़े राज्यों की सीमाओं का खंडन होकर अनेक नए छोटे-छोटे राज्य बने और उनकी शक्ति का हृस हुआ, वहां दूसरी ओर मैदानी भागों में आए राजपूतों ने इन निर्बल और शक्तिहीन राजाओं को अपने अधिकार में लेकर बल पकड़ना शुरू किया…

पूर्व मध्यकालीन हिमाचल

इस प्रकार जब एक ओर इन बड़े-बड़े राज्यों की सीमाओं का खंडन होकर अनेक नए छोटे-छोटे राज्य बने और उनकी शक्ति का हृस हुआ, वहां दूसरी ओर मैदानी भागों में आए राजपूतों ने इन निर्बल और शक्तिहीन राजाओं को अपने अधिकार में लेकर बल पकड़ना शुरू किया। इस प्रकार आठवीं शताब्दी से लेकरी 12वीं शताब्दी तक पहाड़ों के आंचल में छिपे छोटे-छोटे राज्यों और पूर्व मध्यकालीन हिमाचल की राजनीति में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया। हिमाचल प्रदेश के इतिहास के जिस काल का यहां वर्णन किया जा रहा है, उस काल में इस पर्वतीय प्रदेश में दो प्रकार के राज्यों का उल्लेख मिलता है। इन राज्यों में एक तो ऐसे राज्य थे, जो प्राचीनकाल से चले आ रहे थे और जिनके शासक प्राचीन क्षत्रिय कुलों से थे। इन राज्यों में मुख्य राज्य त्रिगर्त (आज का कांगड़ा) और कुल्लूत (आज का कुल्लू) थे। ऐसा लगता है कि चंबा, बुशहर और जुब्बल भी इन्हीं प्राचीन क्षत्रिय वंशों से थे, क्योंकि इन राज्यों के अपने इतिहास कम से कम पांचवीं-छठीं शताब्दी तक पीछे चले जाते हैं। दूसरे राज्य वे थे, जिनके शासक आठवीं शताब्दी से लेकर पंद्रहवीं शताब्दी तक के काल में भारत के मैदानी भाग से इस पर्वतीय भू-खंड में आए। ये लोग ऐसे राजपूत कुलों से थे, जिन्हें विभिन्न परिस्थितियों  के कारण अपनी जन्मभूमि को छोड़ने पर विवश होना पड़ा। ये छोटे-छोटे राज्य रजवाड़े कैसे अस्तित्व में आए, यह भी एक विचारणीय विषय है। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि ईसा की तीसरी शताब्दी तक हिमाचल के इस भूखंड में औदुंबरों, कुलूतों, त्रिगर्तों और कुलिंदों के जनपद थे। इसी काल में उत्तर पश्चिमी की ओर से आए कुषाणों  ने कश्मीर से लेकर बनारस तक और मालवा से लेकर सिनकयान तक अपना अधिकार जमा रखा था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बाद के वर्षों में औदुंबर, कुलूत, त्रिगर्त और कुलिंद जैसे जनपद भी उनके आधिपत्य में रहे होंगे। कुषाणों ने इन्हें शक्तिहीन बना दिया। कुषाणों के बाद गुप्त सम्राटों ने इस प्रदेश पर अधिकार करके उन्हें समाप्त कर दिया। गुप्त साम्राज्य के पश्चात जब मगध से राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र कन्नौज में आया, तो वहां के शासक यशोवर्मन और बाद में हर्षवर्धन ने इस भाग पर अधिकार करके इसे सीधे अपने आधिपत्य में रखा। परंतु हर्ष की मृत्यु के पश्चात जिसका भी अधिकार कन्नौज पर रहा, उसी ने हिमाचल के इस भू-भाग पर अधिकार जमाए रखने का प्रयत्न किया। इस समय वहां पर विचार करने योग्य बात यह है कि आठवीं शताब्दी के बाद ये छोटे-छोटे राजपूत राज्य किस प्रकार अस्तित्व में आए। जब कभी भी कोई केंद्रीय शक्तिशाली शासक इस भू-भाग पर अपना अधिकार जमा लेता था, तो वह यहां के शासन को चलाने के लिए अपने या अपने कुलज के किसी राजकुमार को यहां पर भेजकर राज्यपाल के तौर पर नियुक्त कर देता था।


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