बहुत जटिल है नागा साधु बनने की प्रक्रिया

By: Feb 10th, 2018 12:05 am

नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। जो नागा साधु बनना चाहता है, उसे पहले 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इसके बाद ही गुरु उसको नागा बनने की दीक्षा देते हैं। इसी तरह जो महिलाएं नागा साधु बनना चाहती हैं, पहले उनका इतिहास देखा जाता है …

नागा साधुओं का इतिहास बहुत पुराना है। आदिगुरु शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इस परंपरा की स्थापना की थी। नागा साधु हमेशा से लोगों के लिए उत्सुकता का विषय रहे हैं क्योंकि इनके बारे में संपूर्ण जानकारी किसी को भी नहीं पता होती। आज हम आपको नागा साधुओं के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां दे रहे हैं। इन सभी बातों को जानकर आप हैरान रह जाएंगे और आपको नागा साधुओं के बारे में काफी रोचक बातें पढ़ने को भी मिलेंगी। नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। जो नागा साधु बनना चाहता है, उसे पहले 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इसके बाद ही गुरु उसको नागा बनने की दीक्षा देते हैं। इसी तरह जो महिलाएं नागा साधु बनना चाहती हैं, पहले उनका पुराना इतिहास देखा जाता है और उनके मित्र व परिवार वालों के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। फिर ही महिला को नागा साधु बनाया जाता है। महिला को नागा साधु बनने से पहले अपना मुंडन कराना होता है और फिर धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार नदी में नहलाया जाता है। नागा साधु बनने से पहले व्यक्ति को यह साबित करना पड़ता है कि अब वह पूरी तरह मोह-माया का जाल छोड़ चुका है और भगवान का सच्चा भक्त है। पुरुष नागा और महिला नागा साधु में एक ही फर्क होता है कि महिला नागा अपने शरीर को गेरुए वस्त्र से ढकती हैं। नागा साधुओं के दिन की शुरुआत पूजा से होती है और दिन का अंत भी पूजा से होता है। जब एक महिला नागा साधु बन जाती है, तब अन्य सभी साधु उन्हें माता कहकर पुकारते हैं।नागा बनने से पहले साधक को खुद का पिंडदान और श्राद्ध करना होता है। इसका अर्थ है कि अब साधक को इस संसार से मुक्ति मिल चुकी है और वह समाज के लिए मृत हो चुका है। अब उसका पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति में बीतेगा। नागा साधु बनने के बाद वस्त्रों का त्याग कर दिया जाता है और शरीर पर भस्म लगाने की परंपरा है। अगर वस्त्र पहनना है तो केवल गेरुए रंग का वस्त्र मान्य है। इसके अलावा शरीर पर केवल एक ही वस्त्र धारण करने की अनुमति होती है। नागा साधुओं को दिन में केवल एक ही टाइम खाना खाने की अनुमति होती है। नागा साधु भिक्षा मांग कर खाना खाते हैं और एक दिन में केवल सात घरों से ही भिक्षा मांग सकते हैं। अगर भिक्षा नहीं मिली तो भूखे रहना पड़ता है। नागा साधु अपने साथ हमेशा चिमटा जरूर रखते हैं और चिमटे से ही आशीर्वाद देते हैं। इनके आश्रम हरिद्वार और दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में हैं जहां ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके गुस्से के बारे में प्रचलित किस्से कहानियां भी भीड़ को इनसे दूर रखती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह शायद ही किसी को नुकसान पहुंचाते हों। हां, लेकिन अगर बिना कारण अगर कोई इन्हें उकसाए या तंग करे तो इनका क्त्रोध भयानक हो उठता है। कहा जाता है कि भले ही दुनिया अपना रूप बदलती रहे लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त इसी स्वरूप में रहेंगे। नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं जो उनके लिए ठंड से निपटने में मददगार साबित होते हैं। वे अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ है और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं। त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे को दर्शाते हैं। ये साधु प्रायः कुंभ में दिखाई देते हैं। नागा साधुओं को लेकर कुंभ मेले में बड़ी जिज्ञासा और कौतुहल रहता है, खासकर विदेशी पर्यटकों में। कोई कपड़ा न पहनने के कारण शिव भक्त नागा साधु दिगंबर भी कहलाते हैं, अर्थात आकाश ही जिनका वस्त्र हो। कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेटे ये साधु कुंभ मेले में सिर्फ शाही स्नान के समय ही खुलकर श्रद्धालुओं के सामने आते हैं। आमतौर पर मीडिया से ये दूरी ही बनाए रहते हैं। अधिसंख्य नागा साधु पुरुष ही होते हैं, कुछ महिलाएं भी नागा साधु हैं, पर वे सार्वजनिक रूप से सामान्यतः नग्न नहीं रहती, अपितु एक गेरुवा वस्त्र लपेटे रहती हैं। नागा साधुओं से आम नागरिक खौफ खाते हैं, लेकिन इनका कोई ऐसा इतिहास नहीं है कि कभी इन्होंने लोगों को नुकसान पहुंचाया हो।


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