बैंकिंग तंत्र पर उभरा भरोसे का संकट

By: Feb 21st, 2018 12:05 am

योगेश कुमार गोयल

लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

बैंकों की इस तरह की कार्यप्रणाली और कारगुजारियों से आमजन का विश्वास डगमगाने लगा है। इससे बैंकों के सामने भरोसे का संकट पैदा होता दिख रहा है। बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का भरोसा बरकरार रखने के लिए बहुत जरूरी है कि आरोपियों को कार्रवाई से पहले ही सचेत कर देश से भगा देने के जिम्मेदार लोगों और ऐसे मामलों में बिना जांच-पड़ताल के बड़े-बड़े ऋण देने वाले वरिष्ठ बैंक अधिकारियों की पहचान की जाए और उन्हें ऐसी कड़ी सजा दी जाए, जो भविष्य के लिए नजीर बन जाए…

शराब माफिया विजय माल्या द्वारा देश के बैंकों के करीब 9000 करोड़ रुपए डकार जाने के बाद हीरा कारोबारी नीरव मोदी द्वारा पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारियों की मिलीभगत से किया गया 11,330 करोड़ रुपए का बहुत बड़ा घोटाला सामने आया है। इसने न केवल समूचे बैंकिंग तंत्र को बुरी तरह हिलाकर रख दिया है, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया है कि पहले हर्षद मेहता और फिर विजय माल्या सरीखे मामलों से हमने कोई सबक नहीं लिया। हैरत की बात यह है कि बैंक की महज एक शाखा में इतना बड़ा घोटाला हो गया और बैंक के शीर्ष प्रबंधन तथा निगरानी संस्थाओं को वर्षों तक उसकी भनक तक न लगी। सिर्फ एक ही शाखा के भीतर इतना बड़ा घोटाला यह बताने के लिए पर्याप्त है कि हमारा बैंकिंग तंत्र कितने लचर तरीके से चल रहा है, जिसका फायदा उठाकर किस तरह इतने बड़े-बड़े घोटालों को आसानी से अमलीजामा पहना दिया जाता है। बैंक की सिर्फ  एक शाखा में हुआ इतना बड़ा घोटाला सात सालों तक पकड़ में नहीं आया तो आसानी से समझा जा सकता है कि बैंक के बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे ही दूसरे घोटाले भी किस तरह दबा दिए जाते रहे होंगे।

करीब साढ़े ग्यारह हजार करोड़ के पीएनबी घोटाले की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के इस दूसरे सबसे बड़े बैंक की पिछले वर्ष की कुल कार्यशील आय महज 12,216 करोड़ रुपए थी, जबकि यह एक घोटाला ही 11,330 करोड़ का है यानी यह घोटाला बैंक की पूरे साल की आमदनी को किस तरह लील गया। बैंक में घोटाले का यह क्रम वर्ष 2011 से चल रहा था, जिसका खुलासा अब हुआ है और बैंक ने स्वयं मुंबई स्टॉक एक्सचेंज को अपनी मुंबई शाखा की इस धांधली की जानकारी देकर इसे उजागर किया है। इस जानकारी के अनुसार 11,330 करोड़ के फर्जी ट्रांजेक्शन के जरिए फर्जीवाड़ा कर बैंक को चपत लगाई गई। यह रकम बैंक के विदेशी खातेदारों के खातों में फर्जी ट्रांजेक्शन के जरिए हस्तांरित की गई, ताकि इसके आधार पर उन्हें दूसरे बैंकों से मदद मिल सके। शेयर बाजार में बैंक का कुल जमा पूंजीकरण 36,566 करोड़ रुपए है, जबकि बैंक ने बाजार में करीब 4.5 लाख करोड़ रुपए का ऋण दिया हुआ है। बैंक का शेयर लगातार टूटने से निवेशकों को भी भारी चपत लगी है। घोटाला सामने आने के बाद पहले दिन 10 प्रतिशत और दूसरे दिन 12 प्रतिशत गिरावट के साथ दो ही दिन में बैंक का बाजार मूल्यांकन करीब 8,000 करोड़ रुपए घट गया है। बैंक द्वारा इस घोटाले में फर्जी ट्रांजेक्शन का हवाला दिया गया है, जिसका अर्थ है कि इस ट्रांजेक्शन की कोई सूचना बैंक के पास उपलब्ध नहीं है अर्थात बैंक यह कैसे पता लगाएगा कि फर्जी ट्रांजेक्शन के जरिए पैसा कहां पहुंचाया गया? बैंक को प्रायः तीन स्रोतों से धन प्राप्त होता है, रिजर्व बैंक, बैंक ग्राहक और शेयर धारक। अब चूंकि इस घोटाले में फर्जी ट्रांजेक्शन का सहारा लिया गया, तो स्पष्ट है कि यह पैसा न रिजर्व बैंक का है और न शेयर धारकों का अर्थात बैंक में यह पैसा बैंक के ग्राहकों द्वारा बैंक में जमा की गई मेहनत की कमाई का ही हिस्सा था।

अब इसी के साथ अंधेरे में तीर छोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया है। बैंक जहां अब रकम वसूली की बात कर रहा है और वित्त मंत्रालय का भी कहना है कि इस मामले में पाई-पाई की वसूली की जाएगी, लेकिन विजय माल्या का मामला सबके सामने है और जिस तरह माल्या का प्रर्त्यपण कराने के लिए सरकार को खूब पसीना बहाने के बाद भी अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा है, ठीक उसी तरह इस मामले का सूत्रधार नीरव और उसके परिजन भी पहले ही विदेश फरार हो चुके हैं। इसलिए इस मामले में भी माल्या जैसी ही कवायद देखने को मिल सकती है। अब यह काफी हद तक नीरव के रुख पर ही निर्भर करेगा कि वह बैंक को यह पैसा लौटाता है या नहीं और लौटाता भी है तो कब और कैसे? हालांकि कुछ हद तक यह राहत की बात है कि प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के बाद नीरव और गीतांजलि जेम्स के कई ठिकानों पर हुई छापामारी के बाद 5,100 करोड़ के हीरे, आभूषण और सोना जब्त किए जा चुके हैं।

पीएनबी का यह मामला नीरव की कुछ फर्मों को दिए गए एडवांस का है। साल भर पहले बंगलूर के भारतीय प्रबंधन संस्थान ने बैंक धोखाधड़ी के मामलों का अध्ययन किया था तो यह तथ्य सामने आया कि बैंकों में सर्वाधिक धोखाधड़ी इसी एडवांस से होती है और इसे ही बैंकों के डूब गए कर्ज अर्थात गैर निष्पादित परिसंपत्ति का सबसे बड़ा कारण बताया गया था। चिंतनीय स्थिति यह है कि देश में निजी क्षेत्र के बजाय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति बेहद दयनीय है। 83 फीसदी घोटालों में जहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की भागीदारी है, वहीं एडवांस संबंधी 87 फीसदी घोटाले भी इन्हीं में होते हैं। माना जाता रहा है कि ये बैंक सरकारी प्रभाव के चलते सभी नियमों को ताक पर रखकर बगैर ठोस गारंटी कारपोरेट सेक्टर को भारी-भरकम कर्ज दे देते हैं और इसी कारण इन बैंकों का एनपीए घाटा लगातार बढ़ रहा है, जो आज लाखों करोड़ रुपए है।

हैरानी होती है देखकर कि एक ओर जहां बैंकों का धन डकारते रहे ऐसे ही धन्नासेठों या बड़े-बड़े पूंजीपतियों के प्रति सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक इतने उदार रहते हैं, वहीं आम लोगों के मामले में इन बैंकों के मानक पूरी तरह बदल जाते हैं। बैंक खाते में मामूली सी रकम कम होने पर आम ग्राहक से जुर्माना वसूल लिया जाता है और छोटे-मोटे कर्ज भी ढेरों कागजी कार्रवाई के बाद तभी स्वीकृत होते हैं, जब बैंक को विश्वास हो जाता है कि कर्ज न चुकाने की स्थिति में संबंधित व्यक्ति की संपत्ति की नीलामी कर आसानी से कर्ज की वसूली हो सकती है। कहना गलत न होगा कि राष्ट्र के विकास में सक्रिय भागीदारी की अपेक्षा से ही बैंकों का राष्ट्रीकरण करके उन्हें एक जमाने में नया जीवन दिया गया था, लेकिन इन अपेक्षाओं पर ये बैंक खरे नहीं उतरे।

बहरहाल, हैरत की बात यह है कि नीरव मोदी और अन्य सभी प्रमुख आरोपी देश से भागने में कैसे सफल हो गए? जिस प्रकार गिरफ्तारी से ठीक पहले विजय माल्या देश छोड़कर भाग गया था, ठीक उसी तर्ज पर नीरव और उसके सभी परिजन भी मामले का खुलासा होने से ठीक पहले देश छोड़कर भाग गए। बैंकों की इस तरह की कार्यप्रणाली और कारगुजारियों से आमजन का विश्वास डगमगाने लगा है। इससे बैंकों के सामने भरोसे का संकट पैदा होता दिख रहा है। बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का भरोसा बरकरार रखने के लिए ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि आरोपियों को कार्रवाई से पहले ही सचेत कर देश से भगा देने के जिम्मेदार लोगों और ऐसे मामलों में बिना जांच-पड़ताल के बड़े-बड़े ऋण देने वाले वरिष्ठ बैंक अधिकारियों की पहचान की जाए और उन्हें ऐसी कड़ी सजा दी जाए, जो भविष्य के लिए नजीर बन जाए। चूंकि इस तरह के बैंकिंग घोटालों से देश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, अतः इनकी गहन जांच करते हुए इस तरह की धोखाधड़ी में लिप्त लोगों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करते हुए सख्त से सख्त कदम उठाए जाएं।

ई-मेल : mediacaregroup@gmail.com


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