भूत-प्रेत के अस्तित्व का विश्लेषण
बिना शरीर वाली आत्मा एकल आयाम की हो गई। हठात कोई देख ले तो…वही भूत-प्रेत है? प्रश्न यह है कि हठात क्यों? हर समय क्यों नहीं? इसका सटीक उत्तर है कि एकल आयाम की वस्तु देखने के लिए स्थिति विशेष चाहिए…
गतांक से आगे…
वह पुनर्जन्म, मोक्ष या भूत-प्रेत योनि को प्राप्त करता है। ऐसा अनुभव होता है कि हमारी खोज सत्य के अधिक निकट है। हमारे पूर्वजों को इस विषय का भरपूर ज्ञान था। अब स्थिति चाहे जो है, भूत-प्रेत अवश्य हैं। अब प्रश्न उठता है कि प्रत्येक व्यक्ति को भूत-प्रेत या चुड़ैल क्यों नहीं दिखलाई पड़ते? प्रश्न निःसंदेह अच्छा है। इस प्रश्न का पृथक रूप से वैज्ञानिक उत्तर है। विराट रूप से व्याख्यान कर, केवल मृत्यु तर्क प्रस्तुत है। विज्ञान इस बात को प्रमाणित कर चुका है कि त्रिआयामी वस्तु ही आंखों को दिखाई देती है। इसी सिद्धांत पर जब थ्री डायमैंशन वाली फिल्म बनी तो तहलका मच गया और उसी का एक रूप है वैनोरमा, जिससे आप सारे दृश्य सजीव देख सकते हैं और उनके बीचों-बीच अपने आपको अनुभव भी कर सकते हैं। यह त्रिआयामी स्थिति का ही परिणाम है। अब यदि कोई जीव या वस्तु एक या दो आयाम में हुई, तो क्या आप देख सकेंगे? कदापि नहीं। वह विद्यमान रहकर भी आपके लिए अदृश्य रहेगी। उल्लू नेत्र विहीन नहीं होता। उसकी आंख होती है। फिर दिन में क्यों नहीं देख पाता। कारण? उसकी आंखें बनी ही इस प्रकार की हैं, पलक विहीन और बड़ी-बड़ी। प्रकाश रश्मियां सीधे उसके रेटीना (गोलक) पर पड़ती हैं। प्रतिबिंब बन ही नहीं पाते। रात में प्रकाश रश्मियां शीतल हो जाती हैं। फलतः देख सकता है। आपने अत्यंत सफेद व्यक्ति देखे होंगे, जिन्हें सूर्यमुखी कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में वे पलकें लगातार झपकाते रहते हैं, उन्हें देखने में असुविधा होती है, पर रात आते ही वे सब कुछ सरलतापूर्वक देख पाते हैं। यह सब आंखों का फर्क है। मनुष्य की आंखें केवल प्रकाश में त्रिआयामी वस्तुएं देख सकती हैं। शरीर के बारे में अति प्राचीन काल से हमारे पूर्वज कहते आए हैं कि यह पांच तत्त्वों का बना है। (अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश) दाह संस्कार के जरिए ये पांचों तत्त्व अपने-अपने सजातीय से जा मिलते हैं। शरीर तो गया, पर आत्मा कहां गई? उसका आकार त्रिआयामी तो है नहीं। रहते हुए भी कैसे दीखें? आकाश के बादलों के समान उसका रूप पल-पल बदलता रहता है। बिना शरीर वाली आत्मा एकल आयाम की हो गई। हठात कोई देख ले तो…वही भूत-प्रेत है? प्रश्न यह है कि हठात क्यों? हर समय क्यों नहीं? इसका सटीक उत्तर है कि एकल आयाम की वस्तु देखने के लिए स्थिति विशेष चाहिए। मान लीजिए यह स्थिति जागृतावस्था (चेतन रहने पर) में आ गई तो निश्चय स्वप्न दिखेगा। मनुष्य का मन जागृत या निद्रावस्था में हो, कभी भी एक पल के सौवें भाग के लिए भी निष्क्रिय नहीं रहता है। इसी कारण शरीर मर जाने पर भी मस्तिष्क जीवित रहता है। डॉक्टर मस्तिष्क की मृत्यु को ही वास्तविक मृत्यु मानते हैं। दिमाग में कुछ न कुछ अवश्य चलता रहता है। यही स्वप्न की सृष्टि करता है। एकल आयाम मनुष्य दशा स्वप्नावस्था में हो जाती है। इसी प्रकार की दशा आने पर मनुष्य इन आत्माओं के रूप देख पाता है और यह समाधि जैसी दशा अधिक देर नहीं, केवल कुछ क्षण ही रहती है।
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