महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य

By: Feb 10th, 2018 12:15 am

भारतीय जनमानस में यह मान्यता है कि शिव में सृजन और संहार की क्षमता है। उनकी यह भी मान्यता है कि शिव आशुतोष हैं अर्थात जल्दी और सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले हैं। इसी भावना को लेकर वे शिव पर जल चढ़ाते और उनकी पूजा करते हैं, परंतु प्रश्न उठता है कि जीवन भर नित्य शिव की पूजा करते रहने पर भी तथा हर वर्ष श्रद्धापूर्वक शिवरात्रि पर जागरण, व्रत इत्यादि करने पर भी मनुष्य के पाप एवं संताप क्यों नहीं मिटते? उसे मुक्ति और जीवनमुक्ति अथवा शक्ति क्यों नहीं मिलती? उसे राज्य भाग्य का अमर वरदान क्यों नहीं प्राप्त होता? आखिर शिवजी को प्रसन्न करने की सहज विधि क्या है? शिवरात्रि का वास्तविक रहस्य क्या है? हम सच्ची शिवरात्रि कैसे मनाएं? शिवजी का रात्रि के साथ क्या संबंध है, जबकि अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना दिन में होती है। शिवरात्रि से जुड़े इन प्रश्नों का उत्तर इसके आध्यात्मिक रहस्य जानकर प्राप्त किया जा सकता है। शिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम रात्रि (अमावस्या) से एक दिन पहले मनाई जाती है। परमपिता परमात्मा शिव का अवतरण इस लोक में कलियुग के पूर्णांत से कुछ ही वर्ष पहले हुआ था, जबकि सारी सृष्टि अज्ञान-अंधकार में थी, इसलिए शिव का संबंध रात्रि से जोड़ा जाता है और परमात्मा शिव की रात्रि में पूजा को अधिक महत्त्व दिया जाता है। श्री नारायण तथा श्रीराम आदि देवताओं का पूजन तो दिन में होता है, क्योंकि श्री नारायण और श्रीराम का जन्म क्रमशः सतयुग एवं त्रेतायुग में हुआ था। मंदिरों में उन देवताओं को रात्रि में सुला दिया जाता है और दिन में ही उन्हें जगाया जाता है, परंतु परमात्मा शिव की पूजा के लिए तो भक्त लोग स्वयं भी रात्रि को जागरण करते हैं। आज पूर्व लिखित रहस्य को न जानने के कारण कई लोग कहते हैं कि शिव तमोगुण के अधिष्ठाता हैं, इसलिए शिव की पूजा रात्रि को होती है और इसकी याद में शिवरात्रि मनाई जाती है, परंतु वास्तव में शिव तमोगुण के अधिष्ठाता नहीं हैं, बल्कि तमोगुण के संहारक अथवा नाशक हैं। यदि शिव तमोगुण के अधिष्ठाता होते तो उन्हें शिव अर्थात कल्याणकारी, पापकटेश्वर एवं मुक्तेश्वर आदि कहना ही निरर्थक हो जाता। शिव का अर्थ है-कल्याणकारी। शिव का कर्त्तव्य आत्माओं का कल्याण करना है, जबकि तमोगुण का अर्थ अकल्याणकारी होता है। यह पापावर्द्धक एवं मुक्ति में बाधक है। अतः वास्तव में शिवरात्रि इसलिए मनाई जाती है, क्योंकि परमात्मा शिव ने कल्प के अंत में अवतरित होकर अज्ञानता, दुःख और अशांति को समाप्त किया था। महाशिवरात्रि के बारे में एक मान्यता यह भी है कि इस रात्रि को परमपिता परमात्मा शिव ने महासंहार कराया था और दूसरी मान्यता यह है कि इसी रात्रि को अकेले ईश्वर ने अंबा इत्यादि शक्तियों से संपन्न होकर रचना का कार्य प्रारंभ किया था। परंतु प्रश्न उठता है कि शिव तो ज्योतिर्लिंगम और अशरीरी हैं। वह संहार कैसे और किसके द्वारा कराते हैं और नई दुनिया की स्थापना की स्पष्ट रूपरेखा क्या है? ज्योतिस्वरूप परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सतयुगी सतोप्रधान सृष्टि की स्थापना और शंकर द्वारा कलियुगी तमोप्रधान सृष्टि का महाविनाश कराते हैं। कलियुग के अंत में ब्रह्मा के तन में प्रवेश करके उसके मुख द्वारा ज्ञान गंगा बहाते हैं, इसलिए शिव को गंगाधर भी कहते हैं और सुधाकर अर्थात अमृत देने वाला भी कहते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा जो भारत-माताएं और कन्याएं गंगाधर शिव की ज्ञान गंगा में स्नान करती अथवा ज्ञान सुधा (अमृत) का पान करती हैं, वे ही शिव-शक्तियां अथवा अंबा, सरस्वती इत्यादि नामों से विख्यात होती हैं। ये चैतन्य ज्ञान-गंगाएं अथवा ब्रह्मा की मानस पुत्रियां ही शिव का आदेश पाकर भारत के जन-मन को शिव ज्ञान से पावन करती हैं। इसलिए शिव नारीश्वर और पतित-पावन अथवा पाप-कटेश्वर भी कहलाते हैं, क्योंकि वे मनुष्यात्माओं को शक्ति-रूपा नारियों अथवा माताओं द्वारा ज्ञान देकर पावन करते हैं। वे उनके विकार रूपी हलाहल को पीकर उनका कल्याण करते हैं और उन्हें सजह ही मुक्ति का वरदान देते हैं। वे सभी मनुष्यात्माओं को शरीर से मुक्त करके शिवलोक को ले जाते हैं। इसलिए वे मुक्तेश्वर भी कहलाते हैं। परंतु ये दोनों कार्य कलियुग के अंत में अज्ञान रूपी रात्रि के समय शिव के द्वारा ही संपन्न होते हैं, इसलिए स्पष्ट है कि शिवरात्रि एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण वृत्तांत का स्मरणोत्सव है। यह सारी सृष्टि की समस्त मनुष्यात्माओं के पारलौकिक परमपिता परमात्मा के दिव्य जन्म का दिन है और सभी की मुक्ति और जीवनमुक्ति रूपी सर्वश्रेष्ठ प्राप्ति की याद दिलाती है। इस कारण शिवरात्रि सभी जन्मोत्सवों अथवा जयंतियों की भेंट में सर्वोत्कृष्ट है। यह मनुष्य को देवता बनाने वाले, देवों के भी देव, धर्म पिताओं के भी पिता, सद्गति दाता, परमप्रिय, परमपिता परमात्मा के दिव्य और परम कल्याणकारी जन्म का स्मरणोत्सव है। इसे सारी सृष्टि के सभी मनुष्यों को बड़े उत्साह से मनाना चाहिए, परंतु आज मनुष्यात्माओं को परमपिता परमात्मा का यथार्थ परिचय न होने के कारण अथवा परमात्मा शिव को नाम रूप से न्यारा मानने के कारण शिव जयंती का महात्म्य बहुत कम हो गया है और लोग धर्म के नाम पर ईर्ष्या और लड़ाई करते हैं। सच्ची शिवरात्रि मनाने की रीति यह है कि भक्त लोग शिवरात्रि के दिन होने वाले उत्सव पर सारी रात्रि जागरण करते हैं और यह सोचकर कि खाना खाने से आलस्य, निद्रा और मादकता का अनुभव होने लगता है, वे अन्न भी नहीं खाते हैं, ताकि उनके उपवास से भगवान शिव प्रसन्न हों।

—बीके प्रेम, पालमपुर

समय

वर्ष 2018 में फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि 13 फरवरी को रात दस बजकर 34 मिनट को शुरू होगी, जो 14 फरवरी को रात 12.14 बजे तक रहेगी।

शिवरात्रि पूजन विधि

भगवान शिव की पूजा-वंदना करने के लिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (मासिक शिवरात्रि) को व्रत रखा जाता है, लेकिन सबसे बड़ी शिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को होती है। इसे महाशिवरात्रि भी कहा जाता है। वर्ष 2018 में महाशिवरात्रि का व्रत 13 फरवरी को रखा जाएगा। गरुड़ पुराण के अनुसार शिवरात्रि से एक दिन पूर्व त्रयोदशी तिथि में शिव जी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके उपरांत चतुर्दशी तिथि को निराहार रहना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को जल चढ़ाने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर ‘ऊं नमो शिवाय’ मंत्र से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रातः काल ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार इस दिन भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करना चाहिए। भगवान शिव को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को रुद्राक्ष, बिल्व पत्र, भांग, शिवलिंग और काशी अतिप्रिय हैं।


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