रामायण के पांच महान योद्धा

By: Feb 10th, 2018 12:05 am

कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को नींद आ गई पर उस पक्षी ने पूरी कथा सुन ली। उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुंडि के रूप में हुआ। काकभुशुंडि जी ने यह कथा गरुड़ जी को सुनाई। भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से प्रख्यात है। अध्यात्म रामायण को ही विश्व की सर्वप्रथम रामायण माना जाता है…

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके 24,000 श्लोक हैं। यह हिंदू स्मृति का वह अंग है जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गई। इसे आदिकाव्य भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं, जो कांड के नाम से जाने जाते हैं। रामायण को आपने कई बार देखा भी होगा और निश्चित रूप से कई बार पढ़ा भी होगा। आपको अच्छे से राम, लक्ष्मण, हनुमान और सीता माता का ज्ञान होगा, लेकिन आप कई रामायण के ऐसे पात्रों को भूल गए होंगे जो काफी अहम रहे हैं। जो भगवान राम की सेना के प्रमुख योद्धा थे और खुद राम भी इनके बिना युद्ध नहीं जीत सकते थे।

रामायण के पांच मुख्य अहम पात्र

जामवंत

असल में जब हनुमान समुद्र किनारे निराश बैठे थे और यह सोच रहे थे कि कैसे भगवान राम का कार्य किया जाए, तो उस समय जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्तियां याद दिलाई थीं। आप अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि यह कितना बड़ा कार्य जामवंत के द्वारा किया गया था। इस पात्र को आज हम कभी पूजते ही नहीं हैं और न ही याद करते हैं।

सुग्रीव

पहले राम ने सुग्रीव की मदद की थी, लेकिन सुग्रीव का रामायण युद्ध में राम की मदद का भी बड़ा अध्याय है। आप शायद यह जानते हों कि सुग्रीव की सेना ही रावण की सेना के साथ युद्ध कर रही थी। आपने राम जी की लड़ाई तो याद रखी, लेकिन आप सुग्रीव की सेना की लड़ाई को भूल गए हैं।

अंगद

जी हां, अंगद एक ऐसा राजदूत भी रहा जिसने रावण के सामने बड़ी वीरता और बुद्धिमता से अपनी बात रखी थी। साथ ही साथ अंगद ने अपनी वीरता का नजारा भी युद्ध में दिखाया था। अंगद इतना बलशाली था कि रावण भी इनका पैर नहीं हिला पाया था।

जटायु

जटायु अरुण देवता के पुत्र थे। जटायु के बारे में बहुत अधिक जानने का प्रयास असल में भारत में किया ही नहीं गया है। जटायु ने रावण से लड़ते हुए अपने प्राण गंवाए थे, लेकिन राम जी को माता सीता का सही पता भी इसी महान योद्धा से प्राप्त हुआ था।

नल और नील

अब यह तो निश्चित ही है कि इन नामों के बारे में आपने सुना नहीं होगा। असल में नल और नील दोनों भइयों के बिना तो राम जी समुद्र पर सेतु बना ही नहीं सकते थे। नल विश्वकर्मा का पुत्र था और यही वह व्यक्ति था, जो अपने हाथ से कुछ भी लेकर समुद्र में छोड़े तो वह चीज डूब नहीं सकती थी। बाद में नल ने ही इस सेतु के निर्माण में बड़ी भूमिकानिभाई थी। सनातन धर्म के धार्मिक लेखक तुलसीदास जी के अनुसार सर्वप्रथम श्री राम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाई थी। जहां पर भगवान शंकर पार्वती जी को भगवान श्री राम की कथा सुना रहे थे, वहां कागा (कौवा) का एक घोंसला था और उसके भीतर बैठा कागा भी उस कथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को नींद आ गई पर उस पक्षी ने पूरी कथा सुन ली। उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुंडि के रूप में हुआ। काकभुशुंडि जी ने यह कथा गरुड़ जी को सुनाई। भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से प्रख्यात है। अध्यात्म रामायण को ही विश्व की सर्वप्रथम रामायण माना जाता है।


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