लीक से हटकर सोचने की वजह

By: Feb 23rd, 2018 12:05 am

जयराम सरकार के बजट की कड़ी परीक्षा और वित्तीय समाधानों की पैरवी के बीच वार्षिक योजना का मसौदा हाथ-पांव मारने की योजना सरीखा है। पहली बार सरकार बजट के हुनर को लीक से हटकर देखना चाहती है, तो यह हकीकत है जिसे निवर्तमान सरकारें नजरअंदाज करती रही हैं। यह समाधानों की चुगली नहीं, बल्कि जीने की शर्त है जो पहली बार दर्ज हुई। लीक से हटकर सोचने की वजह तो समझ आती है, लेकिन रास्ते बदलने को मजबून चाहिए। यह तमाम विभागीय कसौटियों और सरकारी कार्य संस्कृति से भी एक प्रश्न है कि सीमित आर्थिक संसाधनों के सामने सोच को बड़ा कैसे किया जाए। अगर योजनाएं-परियोजनाएं केवल नई इमारतें, नए ओहदों और नए लाभार्थियों की खोज करेंगी, तो समाधानों की खैरात बांटकर भी हिमाचल की सूरत नहीं बदलेगी। हर विभाग अगर यह हिसाब लगा ले कि उसके मालिकाना हक में कितनी संपत्ति है और इसमें से कितनी बेकार है, तो गिरेबां में झांकने का सबब मिलेगा। कबायली उपयोजना के तहत हर साल बर्बादी का आलम और उत्थान का पैगाम कितनी फटी हालत में है, कभी अनुमान लगाएं तो जर्जर ढांचे का पतन समझ आएगा। यह कैसा विकास जो केवल सरकारी इमारत बनाकर कोई दफ्तर बन जाता है और फिर ऊंचे पद की मिलकीयत में पूरा विभाग ढह जाता है। सार्वजनिक निर्माण, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य, वन, विद्युत एवं परिवहन जैसे विभागों के वर्तमान दस्तूर में आला अधिकारियों की गिनती तो बढ़ रही है, मगर निचले स्तर पर जरूरी कर्मचारियों की भारी कमी बढ़ रही है। एचआरटीसी को ही लें, तो  अनावश्यक डिपो के संचालन में अधिकारियों का सबसे बड़ा अमला, लेकिन न ड्राइवर और न ही कंडक्टर माकूल संख्या में उपलब्ध हैं। क्या हमने हिमाचल के विभिन्न विभागों के करीब दो हजार डाक बंगलों में बसते लाल साहबों के ठाठ में बहते संसाधनों पर गौर किया। क्यों न अलग-अलग विभागीय रेस्ट हाउसों की मौजूदा संख्या को घटाकर संयुक्त डाक बंगले बनाए जाएं। सारी सरकारी इमारतों या सार्वजनिक संपत्ति की मिलकीयत में राज्य का एस्टेट प्राधिकरण देखरेख करे, ताकि इधर-उधर भागते बजट को एक एजेंसी संभाले और सहेजे। यानी सरकारी संपत्ति विभागीय बपौती न बनकर, राज्य एस्टेट प्राधिकरण और जिला में इस तरह की प्रशासनिक देखरेख में एक मॉडल बने। इस तरह इमारतों का बोझ कम करके उपलब्ध जमीन को भविष्य के लैंड बैंक में समाहित किया जाए। प्रदेश में ग्रामीण विकास, स्वरोजगार, पर्यटन, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य, वन, कृषि एवं कला, संस्कृति एवं भाषा विभागों को मिलकर ऐसी रूपरेखा बनानी चाहिए, जिसके तहत समन्वित विकास से स्वरोजगार व ग्रामीण पर्यटन का विकास हो। सरकार चाहे तो आरंभिक तौर पर हर विधानसभा क्षेत्र में एक पर्यटक गांव विकसित करने के लिए उपर्युक्त विभागों की योजनाओं का एक समन्वित मॉडल बना सकती है। उदाहरण के लिए प्रदेश के 68 पर्यटक गांवों में कहीं चैक डैम या सिंचाई परियोजना के तहत लघु बांध को झील पर्यटन की तरह निरूपित करके स्वरोजगार का माध्यम बनाया जा सकता है, तो कहीं वन विभाग ईको टूरिज्म का आधार खड़ा कर सकता है। कहीं धार्मिक-धरोहर स्थल, तो कहीं कृषि या हाट बाजार की परिकल्पना में ग्रामीण उत्पाद सैलानियों को रोक लेंगे। प्रदेश के पीडब्ल्यूडी महकमे को मुख्य सड़कों के बीस-पच्चीस किलोमीटर के फासले पर पर्यटन विभाग के साथ ऐसे जनसुविधा केंद्र विकसित करने चाहिएं, जहां स्वरोजगार पाने के अवसर सुनिश्चित हो पाएंगे। प्रदेश में नेशनल हाई-वे व फोरलेन परियोजनाओं के साथ-साथ कम से कम एक दर्जन निवेश केंद्र या उपग्रह शहर बसाने की सोचें, तो सड़क विस्थापितों को आवासीय सुविधा, नए बाजार, औद्योगिक परिसर, निजी स्कूल-कालेज व अस्पताल विकसित हो पाएंगे। इन्हीं निवेश केंद्रों के आधार पर मनोरंजन पार्क, साइंस सिटी, सूचना व जैव प्रौद्योगिकी पार्क स्थापित हो पाएंगे। प्रदेश में  पारंपरिक त्योहारों व ग्रामीण मेलों के अलावा राज्य के सांस्कृतिक समारोहों में वित्तीय अनुशासन व व्यवस्थागत प्रश्नों के लिहाज से एक मेला प्रबंधन प्राधिकरण का गठन करके फिजूलखर्ची रोककर, आय का इस्तेमाल सार्वजनिक मैदानों, श्मशानघाटों, अखाड़ों तथा प्राकृतिक जलस्रोतों के संरक्षण, विस्तार व निर्माण में खर्च किया जाए। इसी तरह सरकारी प्रबंधन के तहत मंदिर ट्रस्टों का केंद्रीय मंदिर ट्रस्ट के तहत संचालन करते हुए फिजूलखर्ची रोकने के साथ तमाम धार्मिक स्थलों को दक्षिण भारतीय मंदिरों की तर्ज पर चलाएं तो धार्मिक पर्यटन की आर्थिकी को मौजूदा सौ करोड़ से हजार करोड़ तक पहुंचा सकते हैं। प्रदेश सरकार मनरेगा के तहत उपलब्ध रोजगार को जल, जंगल और जमीन के लिए इस्तेमाल करे, तो परियोजनाओं के जरिए पर्यटन क्षेत्र को बल मिल सकता है तथा कृषि-बागबानी को बंदरों से बचाने के लिए भी मानव संसाधन का इस्तेमाल हो पाएगा। लीक से हटकर सोचें तो हिमाचल की क्षमता व संभावना के नए दौर में प्रवेश किया जा सकता है। अगर तमाम विश्वविद्यालय स्टार्टअप के नजरिए से शैक्षणिक माहौल को प्रतिस्पर्धा में खड़ा करें या अनुसंधान को जमीन पर साबित करें तो बदलाव आएगा। विद्युत परियोजनाएं अपने साथ पर्यटन की नई बस्तियां बना सकती हैं, तो पीडब्ल्यूडी के मार्फत दृश्यावलियों के साथ अधोसंरचना कितने ही सेल्फी प्वाइंट उकेर सकती है। परिवहन विभाग चाहे तो पूरे प्रदेश में पार्किंग का खाका बना सकता है। इसके लिए ट्रांसपोर्ट नगर बसाने में निजी निवेश के अलावा हर पंजीकृत वाहन से एकमुश्त हजार से दस हजार वसूले जाएं, तो राज्य के करीब बारह लाख वाहन खुद को पार्क करने का समाधान प्रदान करेंगे। अगर हिमाचल को लीक से हटकर आगे बढ़ना है, तो राजनीति से ऊपर उठकर तथा गैर राजनीतिक परिदृश्य से निकलते विजन को स्वीकार करना होगा, वरना सरकारी ढांचे की नीचे दबी चीख को सुनना भी कठिन है।


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