विकास का नया मॉडल बनाए हिमाचल

By: Feb 23rd, 2018 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

हिमाचल के पर्वतों व बर्फ से संपन्न कुदरती नजारों को कायम रखना आज जरूरी हो चुका है। प्रकृति ने हमें धूल रहित वातावरण दिया है, जिसे जॉब पैदा करने के नाम पर क्षति नहीं पहुंचाई जानी चाहिए। पैसा कमाने के लिए सीमेंट प्लांट लगाने के नाम पर पर्यावरणीय प्रदूषण के आगे समर्पण नहीं होना चाहिए। विकास के लिए चेतनायुक्त नियोजन की जरूरत होती है, जो कि राज्य की शक्ति व कमजोरी पर आधारित होती है। विकास की योजना के लिए विशेषज्ञ अध्ययन व चेतनायुक्त होकर रणनीति का निर्माण भी जरूरी है…

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को प्रदेश के विकास का नया मॉडल विकसित करना चाहिए। हाइड्रो पावर क्रेज मॉडल, जो कि औद्योगिक प्रदूषण फैलाता है, के लिए बिना दिमाग की तलाश की जो हालिया परिपाटी है, उसे फेंक देने की जरूरत है। हिमाचल के मौसम, वातावरण व संस्कृति के संरक्षण के लिए जो विश्वव्यापी चिंता उभरी है, उसे संबोधित करने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी हो गया है। हिमाचली पर्वतों व बर्फ से संपन्न कुदरती नजारों को कायम रखना आज बेहद आवश्यक हो चुका है। प्रकृति ने हमें धूल रहित वातावरण दिया है, जिसे जॉब पैदा करने के नाम पर क्षति नहीं पहुंचाई जानी चाहिए। पैसा कमाने के लिए सीमेंट प्लांट लगाने के नाम पर पर्यावरणीय प्रदूषण के आगे किसी सूरत में समर्पण भी नहीं होना चाहिए।

सरकार ने विकास के लिए अपनी प्राथमिकताएं तय करने को मापदंड बनाने के उद्देश्य से एक सराहनीय पहल की है। उसने संबंधित विधायकों से सलाह-मशविरा भी किया है, परंतु यह केवल लोकतंत्र का सलाहकारी पहलू है। विकास के लिए चेतनायुक्त नियोजन की जरूरत होती है, जो कि राज्य की शक्ति व कमजोरी पर आधारित होती है। विकास की योजना के लिए विशेषज्ञ अध्ययन व चेतनायुक्त होकर रणनीति का निर्माण भी जरूरी है। इसके लिए एक विशेषज्ञ कमेटी की भी जरूरत है, जो विकास चार्टर का प्रारूप प्रस्तावित करे। मैं ऐसे निकाय के समक्ष विचार के लिए छह स्तंभों वाला विकास दृष्टिकोण रखना चाहूंगा। हमें अपने विचारों में बदलाव लाते हुए परंपरागत नजरिए को बदलना होगा। हमें परंपरागत फसलों को उगाना बंद कर देना चाहिए तथा उच्च दामों वाली फसलों की बिजाई करनी चाहिए।

तीन कारणों के चलते हम गेहूं, मक्की इत्यादि परंपरागत फसलों को उगाने के कारण कृषि क्षेत्र में अवनति की ओर जा रहे हैं। प्रथम, हमारे पास पर्याप्त सिंचाई सुविधा नहीं है तथा जलवायु परिवर्तन के इस दौर में वर्षा पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। इसके कारण हमारी फसलें अकसर सूख जाती हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण खेती योग्य जमीन की उपलब्धता भी कम है। दूसरे, प्रदेश में बंदरों का आतंक निरंतर जारी है, जो कि सभी फसलों व फलों को नष्ट कर रहे हैं। सरकार इस समस्या से निपटने को अब तक कोई ठोस योजना नहीं बना पाई है। अन्य जंगली जानवर भी फसलों को नष्ट करते हैं। तीसरे, लैंटाना घास व अन्य खरपतवार, जो फसलों के लिए हानिकारक हैं, को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। इसलिए राज्य को ऐसी फसलों को बढ़ावा देना चाहिए, जो इन तीन कारकों के प्रभाव से मुक्त हों। बेशक ऊंचे इलाकों में पैदा होने वाला सेब सुरक्षित है, लेकिन उसे भी सुरक्षा की जरूरत है।

जहां पर सेब पट्टी नहीं है, उन क्षेत्रों में भी नकदी फसलों की जरूरत है। किसानों को ऐेसी फसलों का उत्पादन करना चाहिए जो उन्हें उच्च दाम दिलाती हों तथा जो यहां वर्णित की गई सिरदर्दी का भी इलाज करती हों। मिसाल के तौर पर हल्दी, अदरक, अखरोट, आंवला व इसी तरह की अन्य फसलें उगाई जा सकती हैं। ये फसलें आपदाओं से प्रभावित भी नहीं होतीं, साथ ही इनके दाम भी अच्छे मिल जाते हैं। कृषि व बागबानी विभाग ऐसी तालिका बना सकते हैं तथा किसानों को मार्गदर्शन दे सकते हैं कि कैसे इन फसलों को उगाया जाए। साथ ही फसलों की विपणन व्यवस्था भी उन्हें सिखाई जा सकती है। कृषि क्षेत्र के बदले परिप्रेक्ष्य में जैविक खेती भविष्य की फसल रणनीति होनी चाहिए।

विकास के नए दृष्टिकोण का दूसरा स्तंभ यह है कि हाई एंड टूरिज्म के पक्ष में ट्रक टूरिज्म व धार्मिक पर्यटन पर फोकस करना छोड़ देना चाहिए। प्रदेश की ओर पर्यटकों को लुभाने के लिए पैकेज व्यवस्था शुरू की जानी चाहिए, ताकि इस प्रदेश को विश्व मानचित्र पर उभारा जा सके। पर्यटन से जुड़ी योजनाएं बनाते समय सृजनात्मकता व कल्पनात्मकता को तरजीह दी जानी चाहिए। इससे प्रदेश को मिलने वाले राजस्व में वृद्धि होगी। मैंने कई ऐसे देशों का अध्ययन किया, जिन्होंने पर्यटन के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास किया है। पर्यटन पैकेज के तहत हमने थाईलैंड की कावाई नदी पर बने पुल का भ्रमण किया। यह जगह द्वितीय विश्वयुद्ध पर बनी पुरानी हालीवुड फिल्म का एक आकर्षक स्थल है, जहां इसे फिल्मांकित किया गया था। हम फाइव स्टार होटल में ठहरे तथा इस स्थल तक हम नौका में गए। रास्ते में हमने देखा कि मिश्री बनाने के लिए लोग सीधे पेड़ों से चीनी निकाल रहे थे। इसी तरह मैं फ्रांस के दक्षिण में स्थित एक प्रसिद्ध स्थल पर भी गया। वहां मैं यह देख कर हैरान रह गया कि गांवों पर बने पर्यटन पैकेज बेचे जा रहे थे। हमें फाइव स्टार होटल से पहाड़ी क्षेत्र में स्थित एक गांव में ले जाया गया। यह एक शांत गांव के अलावा कुछ भी नहीं था। इसी ओर जाते समय हमें एक परफ्यूम फैक्टरी भी दिखाई गई। हिमाचल में इतना कुछ है, लेकिन हम इसकी मार्केटिंग नहीं करते तथा इसे टूअर पैकेज के रूप में बेचते भी नहीं हैं। फाइव स्टार होटल्स से जुड़ा पर्यटन हमारे पास नहीं है। हमारे पास सड़कें भी नहीं हैं तथा कई आकर्षक स्थलों तक अभी तक पहुंच नहीं बन पाई है। मैंने मसरूर मंदिर की खोज की तथा इसके इतिहास पर लिखा। मैंने इसके लिए अनुसंधान किया। पुस्तक का नाम है-कारनेशन ऑफ शिवा ः रिडिस्कवरिंग मसरूर टैंपल। यह स्थल विश्व धरोहर स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता था, लेकिन अब तक इसकी उपेक्षा ही हुई है। जब मैंने इस विषय पर किताब लिखी, तो कई पाठकों का ध्यान इस ओर गया तथा सरकार ने मुझे पे्रजेंटेशन बनाने को कहा। धर्मशाला में मैंने मंदिर का स्वरूप भेंट किया। इसकी खासियत यह है कि इसमें भगवान शिव का राज्याभिषेक दिखाया गया है, जबकि अन्य देवताओं के विपरीत अब तक उन्हें इस रूप में दिखाया नहीं गया था।

यह एक अद्वितीय मंदिर है, पर इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस मंदिर के विकास में रुचि दिखाई थी, लेकिन उनके सत्ता से हटने के बाद इसकी ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। प्रेम कुमार धूमल ने इस मंदिर के प्रोजेक्ट को विकसित करना तथा इसे प्रचारित करना शुरू किया था। इस मंदिर के आसपास पौंग बांध के पक्षियों का डेरा इस स्थल को आकर्षक व एक बड़ा पर्यटक स्थल बनाता है, लेकिन इसे विकसित करने की जरूरत है। दुखद पहलू यह है कि हमारे पास यहां नजदीक में कोई कैफेटेरिया व शौचालय तक नहीं है। प्रदेश में कई ऐसे स्थल हैं, जिन्हें पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित किया जा सकता है, लेकिन इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया अन्यथा कई रोजगार पैदा हो सकते थे और राजस्व भी कमाया जा सकता था।

सरकार को बहुत सारे पैसे खर्च करने की जरूरत भी नहीं है, बस उसे कुछ सृजनात्मक सोच का परिचय देना होगा। हिमाचल में इतना कुछ होते हुए भी हम पर्यटन का विकास नहीं कर पाए, जबकि हरियाणा ने न कुछ होते हुए भी रोड साइड पर्यटन को पर्याप्त रूप से विकसित कर लिया। आज जब एक ओर विश्व में प्रदूषण बढ़ रहा है, तो प्रदूषण रहित हिमाचल में वातावरण पर आधारित पैकेज बना कर उन्हें आसानी से बेचा जा सकता है। इससे हमारा पर्यटन समृद्ध होगा।

-क्रमशः

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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