श्री विश्वकर्मा पुराण

By: Feb 3rd, 2018 12:05 am

प्रभु के चरण में से स्वर्ग के राजा इंद्र की उत्पत्ति हुई है। प्रभु के मन से चंद्र तथा नेत्रों से सूर्य उत्पन्न हुए हैं तथा प्रभु के प्राणों से वायु प्रकट हुआ है। विराट विश्वकर्मा के नाभिकमल में से आकाश तथा मस्तक में से सब देवता उत्पन्न हुए हैं तथा उनके पैरों में से पृथ्वी प्रकट हुई तथा कान में से सब दिशाएं उत्पन्न  हुई हैं…

जिसका मायादिक कोई भी आचरण नहीं तथा कोई भी आकार विकार के तथा जिसकी कल्पना भी न हो सके, ऐसे आधारभूत और आश्रय के स्थान स्वरूप निर्विघ्नात्मक प्रभु विश्वकर्मा अनादि हैं। ये परमात्मा जो रूप रहित हैं तथा दया के भंडार हैं, वह प्रभु त्रिलोकमय हैं, उनका स्वरूप ही विश्व है तथा वह प्रभु स्वयं समस्त भूतों में व्याप्त होकर रहे हुए हैं। उनके मुख्य से अग्नि की ज्वालाएं तथा शंकर उत्पन्न हुए हैं, बाहु में से विष्णु तथा नाभि से ब्रह्मदेव की उत्पत्ति हुई है। प्रभु के चरण में से स्वर्ग के राजा इंद्र की उत्पत्ति हुई है। प्रभु के मन से चंद्र तथा नेत्रों से सूर्य उत्पन्न हुए हैं तथा प्रभु के प्राणों से वायु प्रकट हुआ है। विराट विश्वकर्मा के नाभिकमल में से आकाश तथा मस्तक में से सब देवता उत्पन्न हुए हैं तथा उनके पैरों में से पृथ्वी प्रकट हुई तथा कान में से सब दिशाएं उत्पन्न हुई हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा इंद्र से सब भगवान के ही अंश हैं तथा दैत्य सब पदार्थ भी श्री विश्वकर्मा से ही उत्पन्न हुए हैं। ये भगवान महामूर्तिमान स्वरूप तथा प्रार्णीमात्र के ऊपर दया रखने वाले हैं। यह ही शिव हैं,यही विश्वकर्मा हैं तथा जैसे शिव पांच रूप में अलग-अलग स्वरूपों में शोभते हैं, उस प्रकार भगवान विश्वकर्मा भी पांच रूपों से शोभा पा रहे हैं। सफेद आकाश अनेक गुणों वाला होते हुए भी सफेद दिखता है, परंतु उसका विभाजन करते हुए वह अलग-अलग रंगों से शोभता है, उसी तरह पूर्ण कलायुक्त प्रभु पांच ऋषि स्वरूप से अनन्य शोभा धारण करते हैं। हे ऋषियों! संसार को देखने वाले तथा समस्त संसार को अनेक प्रकार के उपदेश देने वाले तरह-तरह के ज्ञानों का प्रचार करने वाले और अविद्याओं का नाश करके विद्या को देने वाले अनंत बलवीर्य तथा पराक्रम को करने वाले, प्रभु विश्वकर्मा सर्वपदार्थों तथा उत्तम क्रियाओं में व्याप्त हैं। विराट भगवान सबका निरंतर कल्याण करते हैं। हे ऋषियो! श्रीविश्वकर्मा का अद्भुत ज्ञान मैंने तुमसे कहा ऐसे इन विराट भगवान का योग्य उपचारों द्वारा जो मनुष्य निरंतर पूजन स्तवन करते हैं तथा प्रभु की ही भक्ति में तन्मय रहते हैं, वह मनुष्य इस भवसागर के सब बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की उत्तम गति को प्राप्त करते हैं। साधु -संत वगैरहों के ऊपर निरंतर प्रीति वाले प्रभु ऐसे मनुष्यों को अपने चरणों में स्थान देकर उसके माहात्म्य को बढ़ाने के लिए अहरनिश उसकी सेवाओं को ग्रहण करके उसको उत्तम प्रकार के भोग वैभव भी देते हैं। योग्य रीति से प्रसन्न किए हुए ये प्रभु मनुष्य के सभी मनोरथों को पूर्ण करते हैं। हे शेषनारायण! हे प्रभु! नागों में श्रेष्ठ सूतजी ने शौनक वगैरह ऋषियों से दंडकारण्य में कहा हुआ ऐसा प्रभु श्री विश्वकर्मा का माहात्म्य मैंने जाना वैसे ही हे देव! श्री विश्वकर्मा प्रभु की पूजन भक्ति वगैरह से उत्पन्न होने वाले उत्तम फल को भी मैंने जाना है। इसलिए अब आप मुझे प्रभु विश्वकर्मा के पूजन की विधि बताओ।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App