श्री विश्वकर्मा पुराण

By: Feb 17th, 2018 12:05 am

इसके बाद प्रभु के पूजन की शुरुआत करनी चाहिए। अपने समक्ष एक पट्टा बिछा आसन के ऊपर चावल की ढेरी करके उन चावलों से कमल का आकार बनाना तथा उस कमल के बीच में प्रभु की मूर्ति बनानी चाहिए। उसके दो तरफ दो दीपक प्रकट करके उसमें अपने जेमने हाथ की तरफ तेल का तथा बाएं हाथ की तरफ घी का दीपक रखना चाहिए…

बाग में फूल लेने गई हुई इला को एक वक्त दैवयोग से बाग में नारदजी का मिलाप हुआ, उन्होंने इला से कुशल समाचार पूछे, उस समय आंसुओं से भीगे हुए नयन से इला ने अपनी विपत्ति कह सुनाई तथा इस विपत्ति में से छूटने का उपाय पूछा। इला का इस प्रकार का प्रश्न सुनकर नारद मुनि बोले, हे सती! तू भगवान विश्वकर्मा का पूजन कर, इस प्रकार कहकर नारद मुनि इला से बोले, तुझे प्रभु के पूजन की विधि बताता हूं वह तू ध्यानपूर्वक सुन। मनुष्य को प्रभु विश्वकर्मा का हमेशा पूजन करना चाहिए। हर रोज पूजन करने को असक्त हो तो उस मनुष्य को पर्वणी के दिन अवश्य ही प्रभु के नाम का ही उच्चारण करना चाहिए। सुबह उठकर मल-मूत्र का त्याग करके योग्य विधि से बड़ के अथवा उत्तम प्रकार के दूध वाले वृक्ष के नए नौ अंगुल लंबे दांतुन से मुख की शुद्धि करनी चाहिए, उसके बाद तीर्थ क्षेत्र में जाकर मनुष्य ठंडे पानी से स्नान करने में आसक्त हो, तो उसे अपने घर में ही गर्म पानी से स्नान करना चाहिए। अपने सब नित्य कर्मों से निवृत्त हो स्वच्छ और धुले हुए उत्तम वस्त्र पहनने चाहिए। इसके बाद खुद पट्टे के ऊपर दर्भ का, कंतान का, ऊन का अथवा पवित्र चर्म का आसन बिछाकर खुद उत्तर अथवा पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए। इसके बाद प्रभु के पूजन की शुरुआत करनी चाहिए। अपने समक्ष एक पट्टा बिछा आसन के ऊपर चावल की ढेरी करके उन चावलों से कमल का आकार बनाना तथा उस कमल के बीच में प्रभु की मूर्ति बनानी चाहिए। उसके दो तरफ दो दीपक प्रकट करके उसमें अपने जेमने हाथ की तरफ तेल का तथा बाएं हाथ की तरफ घी का दीपक रखना चाहिए। इतना करने के बाद पूजन की शुरुआत हो, सर्वप्रथम नीचे के तीन मंत्रों बोलकर तीन बार आचमन करना।

ॐ त्वष्टे नमः, ॐ धात्रे नमः, ॐ विश्वकर्मणः नमः।

ये तीन मंत्र नमः।

इस तरह बोलकर हाथ धो लें इसके बाद आठ वक्त ॐ विश्वकर्मणे नमः इस मंत्र का जाप करना। इसके बाद नीचे का मंत्र बोलकर माथे पर तिलक करना।

तिलक का मंत्र-

स्वांस्ति में ऽस्तु दिपोदृभ्य चतुष्यादेभ्य एव च।

स्वस्त्य सत्व पादृकेभ्यश्च सर्वेभ्य स्वास्ति सर्वदा।।

इस प्रकार ऊपर का मंत्र पढ़कर अपने कपाल पर तिलक करना फिर दोनों हाथ जोड़कर नीचे के मंत्र बोलकर सब देवताओं को नमस्कार करना।

ॐ गणेशायनमः, ॐ सरस्वत्यै नमः, ॐ विश्वकर्मणे नमः, ॐ सर्व देवेभ्यो नमः, ॐ सर्व ब्रह्मणेभ्यो नमः।

इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर नीचे के मंत्र से गणपति महाराज का मन में ध्यान करके प्रणाम करना।

लंबोदरं विसपाक्षं त्रिनेत्रं च चतुर्भुंजं।

गणेशं पार्वती पुत्रं नमामि विघ्न शांतये।।

इस प्रकार विश्वकर्मा, विश्वदेव अधेत्यादी मासोत्तमे अमुक मासे, अमुक पक्षे, अमुक तिथि, अमुक वासरे, मम सकल, दुख शांतिपूर्वक उत्तम सकल सुख प्राप्ति अर्थ तथा च चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धि अर्थ प्रभु श्री विश्वकर्मा पूजनं अहंकरिष्ये।


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