सभी पंथों में पूज्य हैं जाहरवीर गुग्गा

By: Feb 3rd, 2018 12:11 am

राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले का गोगामेड़ी शहर है, जहां भादो शुक्लपक्ष की नवमी को गुग्गाजी का मेला लगता है। इन्हें सभी धर्मों के लोग पूजते हैं। वीर गुग्गाजी गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य थे। चौहान वीर गुग्गाजी का जन्म चुरू जिले के ददरेवा गांव में विक्रमी संवत् 1003 में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव का जन्मस्थान दत्तखेड़ा (ददरेवा) में है जो राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है। यहां पर सभी धर्मों के लोग माथा टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं…

गुग्गाजी महाराज (सिद्धनाथ वीर गोगादेव) राजस्थान के लोकप्रिय देवता हैं। उन्हें जाहरवीर गुग्गाजी के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले का गोगामेड़ी शहर है, जहां भादो शुक्लपक्ष की नवमी को गुग्गाजी का मेला लगता है। इन्हें सभी धर्मों के लोग पूजते हैं। वीर गुग्गाजी गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य थे। चौहान वीर गुग्गाजी का जन्म चुरू जिले के ददरेवा गांव में विक्रमी संवत् 1003 में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव का जन्मस्थान दत्तखेड़ा (ददरेवा) में है जो राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है। यहां पर सभी धर्मों के लोग माथा टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। मुस्लिम समाज के लोग इन्हें जाहरवीर के नाम से पुकारते हैं तथा इस स्थान पर मन्नत मांगने और माथा टेकने आते हैं। यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गुग्गाजी जाहरवीर हिंदू, मुस्लिम, सिख- सभी संप्रदायों के लोकप्रिय देवता हैं। यह पीर नाम के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। गुग्गा जाहरवीर का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) शासक जेवर सिंह (चौहान वंश के राजपूत) की पत्नी बाछल की कोख से गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से भादो शुक्ल नवमी को हुआ था। जिस समय गुग्गाजी का जन्म हुआ, उसी समय एक ब्राह्मण के घर नाहर सिंह वीर का जन्म हुआ। इसी तरह एक हरिजन के घर भज्जू कोतवाल का जन्म हुआ और एक वाल्मीकि के घर रत्ना जी का जन्म हुआ। यह सभी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य हुए। गुरु गोरखनाथ जी के नाम के पहले अक्षर से ही गुग्गाजी का नाम रखा गया। गुरु का गु और गोरख का गो यानी कि गुगो। इसे बाद में गोगा जी कहा जाने लगा। उन्होंने तंत्र की शिक्षा गुरु गोरखनाथ से प्राप्त की। राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गुग्गाजी वीर राजा थे। हरियाणा में हांसी तक सतलुज राज्य गोगाजी का था। जयपुर से लगभग 250 किलोमीटर दूर गोगादेवजी का जन्म स्थान पास के सादलपुर के तहत दत्तखेड़ा (ददरेवा) में है। दत्तखेड़ा चुरू में आता है। गोगादेव के घोड़े का आज भी अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी, उनके घोड़े की रकाब आज भी वहीं पर ज्यों की त्यों है। जन्म स्थान पर गुरु गोरखनाथ का आश्रम भी है और वहीं पर गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति भी स्थापित है। कीर्तन करते भक्तजन गाते हुए इस स्थान पर आते हैं और मंदिर पर माथा टेककर मन्नत मांगते हैं। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गुग्गाजी की पूजा की जाती है। गुग्गाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकड़ी पर सर्प मूर्ति उत्कीर्ण की जाती है। लोग मानते हैं कि सर्पदंश से प्रभावित व्यक्ति को गुग्गाजी की मेड़ी तक लाया जाए तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादो माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमी को यहां मेला लगता है। यहां एक हिंदू और एक मुसलमान पुजारी सेवा में लगे रहते हैं। यह सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गुग्गाजी की समाधि तथा गुग्गा पीर व जाहरवीर के जयकारों के साथ गुरु गोरखनाथ के प्रति भक्ति की धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरखनाथ के टीले पर शीश नवाकर गुग्गाजी जाहरवीर की समाधि पर मनोकामना करते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गुग्गाजी के मंदिर में माथा टेकने आते हैं। यहां गुग्गा जी की एक छड़ी है। इस छड़ी का बहुत महत्त्व होता है और जो साधक छड़ी की साधना नहीं करता, उसकी साधना अधूरी ही मानी जाती है क्योंकि जाहरवीर जी छड़ी में निवास करते हैं। सिद्ध छड़ी के संबंध में कहा जाता है कि उस पर नाहर सिंह वीर और सावल सिंह वीर आदि कई वीरों का पहरा रहता है। छड़ी लोहे की सांकलें होती हैं जिन पर एक मुठा लगा होता है। कहा जाता है कि जब तक गुग्गा जाहरवीर जी की माड़ी में अथवा उनके जागरण में छड़ी नहीं होती, तब तक वहां वीर हाजिर नहीं होते हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से मानी जाती है। ठीक उसी प्रकार जब तक गुग्गाजी की माड़ी या जागरण में चिमटा न हो तब तक गुरु गोरखनाथ अपने नवनाथ सहित हाजिर नहीं होते। छड़ी अक्सर घर में ही रखी जाती है और उसकी पूजा की जाती है। केवल सावन और भादो के महीने में छड़ी निकाली जाती है और छड़ी को नगर में फेरी लगाई जाती है। इससे नगर में रोग बाधाएं नहीं होती, वे दूर हो जाती हैं। जाहरवीर के भक्त दाहिने कंधे पर छड़ी रखकर फेरी लगवाते हैं। छड़ी को अकसर लाल अथवा भगवे रंग के वस्त्र पर रखा जाता है। यदि किसी पर भूत-प्रेत आदि की बाधा हो तो छड़ी को पीडि़त के शरीर को छुवाकर उसे एक बार में ही ठीक कर दिया जाता है। भादो के महीने में भक्त जाहरवीर के दर्शनों के लिए छड़ी को भी साथ लेकर जाते हैं और गोरख गंगा में स्नान करवाकर जाहरवीर जी की समाधि से छड़ी छुआते हैं। ऐसा करने से छड़ी की शक्ति कायम रहती है। गोरख टीला स्थित गुरु गोरखनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियां मांगते हैं। जात लगाने वाले ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं, बल्कि वहां समूह में बैठकर गुरु गोरखनाथ व जाहरवीर गुग्गाजी की जीवनी के किस्से गाकर सुनाते हैं। जीवनी सुनाते समय डैरूं व कांसी बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकलें मारता है। मान्यता है कि गुग्गाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है। गोरखनाथ जी की कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। महापुरुष गुग्गाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गुग्गाजी की मां बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरु गोरखनाथ ‘गोगामेड़ी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण में गईं तथा गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। उन्होंने उसे गुगल नामक एक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदोपरांत गुग्गाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गुग्गाजी पड़ा। गुग्गाजी के भक्तों में हिंदू व मुसलमान दोनों शामिल हैं। इनका धर्मस्थल दोनों समुदायों में एकता का प्रतीक माना जाता है। दोनों समुदायों का गुग्गाजी में समान विश्वास है।

श्री गुग्गा जाहरवीर की आरती

जय-जय जाहरवीर हरे,

जय-जय गोगावीर हरे,

धरती पर आकर के भक्तों के कष्ट हरे,

जय जय …..

जो कोई भक्ति करे प्रेम से,

निसादिन करे प्रेम से, भागे दुःख परे,

विघ्न हरन मंगल के दाता,

जन-जन का कष्ट हरे,

जेवर राव के पुत्र कहाए, रानी बाछल माता,

बागड़ में जन्म लिया गुग्गा ने, सब जय-जयकार करे, जय जय …..

धर्म की बेल बढ़ाई निशदिन,

तपस्या रोज करे,

दुष्ट जनों को दंड दिया, जग में रहे आप खरे, जय-जय …..

सत्य अहिंसा का व्रत धारा,

झूठ से सदा डरे,

वचन भंग को बुरा समझ कर, घर से आप निकरे, जय-जय …..

माड़ी में करी तपस्या अचरज सभी करे,

चारों दिशाओं से भक्त आ रहे,

जोड़े हाथ खड़े, जय-जय …..

अजर अमर है नाम तुम्हारा, हे प्रसिद्ध जगत उजियारा,

भूत-पिशाच निकट नहीं आवे, जो कोई जाहर नाम गावे, जय जय …..

सच्चे मन से जो ध्यान लगावे, सुख संपत्ति घर आवे,

नाम तुम्हारा जो कोई गावे, जन्म-जन्म के दुःख बिसरावे, जय-जय…..

भादो कृष्ण नोमी के दिन जो पूजे, वह विघ्नों से नहीं डरे,

जय-जय जाहरवीर हरे, जय श्री गोगावीर हरे …


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