समंदर में हिमाचली प्रतिभा का परचम

By: Feb 18th, 2018 12:12 am

जमीन से आसमां तक हुनर का झंडा गाड़ने के बाद हिमाचल की एक बेटी ने अब समंदर की गहराई में प्रतिभा का अद्भुत नमूना पेश किया है। कुल्लू के मौहल क्षेत्र की साधारण परिवार में पैदा हुई प्रतिभा जंबाल ने संमदर के एवरेस्ट कहे जाने वाले खतरनाक केपहार्न अंतरीप को पार कर पहली हिमाचली महिला होने का गौरव हासिल किया है। समंदर की लहरों में जो जज्बा और हिम्मत प्रतिभा ने दिखाई है, वह प्रदेश की बेटियों के लिए प्रेरणा की नई किरण है। 23 मार्च, 1989 को पैदा हुई प्रतिभा समुद्री मिशन को निकली नौसेना की सेलिंग बोट आईएनएसवी तारिणी की हिस्सा बनी हैं। भारतीय नौसेना में लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा का चयन दूसरी बार समुद्री रहस्यों को जानने के लिए निकली महिला टीम में हुआ है। इस टीम में चुनी गई प्रतिभा प्रदेश से संबंध रखने वाली पहली महिला अधिकारी बनी हैं।

प्रतिभा वैसे तीसरी बार इस मिशन को निकली हैं लेकिन दूसरी बार  केवल महिलाओं की टीम इसके लिए चुनी गई है। इससे पहले म्हादेई के जरिए भी यह कारनामा प्रतिभा कर चुकी हैं। जानकारी के अनुसार अभी तक दुनिया के करीब 200 लोग ही समुद्री रहस्यों को जानने के लिए दुनिया की सैर करने वालों में शामिल हैं। आईएनएसवी तारिणी में आठ माह तक जारी रहने वाली सागर परिक्रमा पिछले साल सितंबर माह में आरंभ हुई थी और इस साल अप्रैल में पूरी होगी। इन दिनों छह महिला अधिकारियों की यह टीम तारिणी समुद्र की गहराई में समुद्री प्रदूषण का स्तर जांचने और मौसम की बेहतर भविष्यवाणी के लिए समुद्री तरंगों के आंकड़े जुटाने में लगी है। यह दल भारत से होते हुए आस्टे्रलिया, न्यूजीलैंड और फॉकलैंड के बाद दक्षिण अफ्रीका पहुंचेगा और उसके बाद गोवा वापस पहुंचेगा। दल की अगवाई लेंफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी कर रही हैं, तो प्रतिभा जम्वाल को सहप्रभारी बनाया गया है।

आईएनएसवी तारिणी मेक इन इंडिया थीम के तहत तैयार सेलिंग बोट है, जो करीब 56 मीटर लंबी और 23 टन वजनी है और पिछले साल के शुरुआत में नौ सेना के बेड़े में इसे शामिल किया गया था। यह पूरी तरह से आधुनिक सुविधाओं से लैस है और इसके जरिए दुनिया को हिमाचली बेटी नाप रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचली बेटी का इस मिशन से पहले स्वयं हौसला बढ़ाया था, तो हाल ही में दुनिया के सबसे खतरनाक अंतरीप में शामिल केपहार्न जिसे एवरेस्ट को पार करने के बराबर माना जाता है उसे फतह करने के बाद भी मोदी ने हिमाचली बेटी सहित टीम तारिणी को बधाई दी थी।

समुद्री गहराई से दुनिया को नापने वाली प्रतिभा जंबाल को नौकायन से बेहद प्यार है। प्रतिभा के मुताबिक उसे बचपन से ही डिफेंस सर्विस में जाने का शौक रहा है। पिता रवि जंबाल के अनुसार प्रतिभा बचपन से ही साहसिक कार्यों के लिए हमेशा आगे रहती थीं और प्रतिभा को वर्ष 2014 में नौकायन में गोल्ड मेडल मिला था। यह मेडल पाने वाली भी वह देश की पहली लेडी आफिसर थीं। हालांकि प्रतिभा का बचपन बेहद साधारण वातावरण में गुजरा है। दसवीं तक की पढ़ाई प्रतिभा ने जिला कुल्लू के भुंतर, तो जमा दो की पढ़ाई मौहल के एक निजी स्कूल में की। बद्दी यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक टेलीकम्युनिकेशन में बीटेक उन्होंने किया।

बीटेक करने के बाद प्रतिभा की प्लेसमेंट नामी कंपनी इन्फोसिस में हो गई थी और इसके लिए उन्हें लाखों का पैकेज भी ऑफर किया गया था, लेकिन भारतीय नौसेना में जाने के लिए इस ऑफ र को भी ठुकरा दिया था। बचपन से कुशाग्र दिमाग की धनी प्रतिभा जंबाल ने दुनिया की सैर के सपने बुनने आरंभ कर दिए थे।

प्रतिभा के तेज दिमाग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता था कि जब यह आठवीं कक्षा में स्कूल में पढ़ती थी तो उसी दौरान से बिना कोई औपचारिक प्रशिक्षण लिए यह कम्प्यूटर की बड़ी से बड़ी खराबी को दूर करने में माहिर हो गई थी। सागर परिक्रमा को बेहद कठिन माना जाता है और इसके लिए विशेष तौर पर खुद को तैयार करना पड़ता है। प्रतिभा को साल 2015 से 2016 तक यह प्रशिक्षण उनके प्रशिक्षक सेवानिवृत्त कैप्टन दिलीप डोंडे ने दिया था।

लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जम्वाल के मुताबिक इस ऐतिहासिक टीम का हिस्सा होना गौरवान्वित करता है और उनके लिए बेहद खास है। बेहद सरल स्वभाव के प्रतिभा के पिता रवि जंबाल और माता द्रोपदा जंबाल कहते हैं कि उनकी बेटी पर उन्हें नाज है क्योंकि दुनिया में उसने हिमाचल जैसे छोटे से राज्य का नाम रोशन किया है।

उनका कहना है कि प्रदेश की बेटियों को राह दिखाने की जरूरत है और सही मार्गदर्शन से प्रदेश की बेटियां समंदर से लेकर आसमान तक अपना परचम लहराने को तैयार है।                    — हीरा लाल ठाकुर, भुंतर

मुलाकात

हिमाचली नारी खुद को कम न आंके…

पहाड़ की बेटी का समुद्र से नाता कैसे जुड़ा।

बचपन से ही मेरा रुझान सेना की तरफ  था। इंजीनियरिंग के फाइनल समेस्टर के दौरान भारतीय नौसेना हमारे कालेज (आईईईटी बद्दी) में आई थी और मैंने भारतीय नौसेना के लिए आवेदन किया। एसएसबी बंगलूर से मेरा चयन भारतीय नौसेना के एयर ट्रैफिक कंट्रोल्ज कार्डर में हुआ।

आठ माह तक पानी में रहने को अगर अनुभव के दो शब्दों में कहना हो।

अतुल्य व सुखद।

सागर परिक्रमा के बाद भारतीय नारी के संबोधन किस तरह बदले। कोई खास अनुभव जहां इस परिप्रेक्ष्य में गौरव मिला।

जहां तक सागर परिक्रमा के द्वारा नारी सशक्तिकरण का सवाल है, तो हम इस माध्यम से अभिभावकों को उनकी बेटियों की क्षमताओं और निर्णयों पर विश्वास जगाने का प्रयत्न कर रहे हैं और हमें विश्वास है इस प्रोजेक्ट के पूरा होने तक हम अपने ध्येय को पूर्ण कर लेंगे। हम जिस भी देश में गए हैं, वहां हमें बहुत सम्मान मिला। आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और फॉकलैंड आईलैंड में भारतीय हाई कमीशन  व वहां रह रहे भारतीयों से मुलाकात हुई तो पर्थ यूएस एशिया कांसिल, शक्ति-वूमन एमपावरमेंट एनजीओ, गवर्नर वेस्ट्रन आस्ट्रेलिया, फॉकलैंड आईलैंड के गवर्नर, क्राइस्ट चर्च सिटी के मेयर व फ्रेमेंटल के मेयर ने भी पूरी टीम का स्वागत किया और प्रोत्साहित किया।

नौसेना में जाने के बाद सोच-समझ व क्षमता में जो अंतर आया।

फौज निश्चित तौर पर आपका संपूर्ण विकास करती है, चाहे वो अपकी पर्सनेलिटी व कम्युनिकेशन स्किल हो या फिर दूसरी क्षमता। विशेष तौर पर सागर परिक्रमा प्रोजेक्ट से जुड़ने के बाद काफी लोगों से मिलने का मौका मिला, तो विभिन्न देशों की संस्कृति और रीति-रिवाजों को जानने और निकट से देखने का मौका भी मिला।

जीवन में अब तक जो पाया, उसके पीछे प्रतिभा जंबाल ही सौ फीसदी रही या कुछ और भी रहा।

किसी भी व्यक्ति की सफलता केवल उस अकेले की नहीं होती ,मेरी उपलब्धियों का श्रेय मैं परिजनों, अध्यापकों,  मेंटॉर और अपनी टीम को देना चाहती हूं।

आपके लिए बहादुरी के क्या मायने हैं और जीत हासिल करने का नजरिया क्या है।

अपनी क्षमताओं पर विश्वास और ज्ञान ही है जो मुझे आत्मविश्वास प्रदान करता है। कड़ी मेहनत के अलावा अपनी क्षमताओं का बोध होना बहुत जरूरी है।

कितनी आसान डगर है किसी महिला के लिए  पुरुष के समक्ष खड़ा होना तथा ऐसी कौन सी दीवार है, जिसे गिराकर हर फील्ड एक मुकाम बन सकती है।

मेरा मानना है कि इस प्रकार की तुलनाएं पहले ही महिलाओं को एक निम्न स्तर पर ले जाती हैं। प्रकृति महिलाओं और पुरुषों में कोई भेदभाव नहीं करती। यह सब बैरियर  हमारे अपने बनाए हुए हैं। ऐसे में अभिभावकों को अपनी बेटियों पर विश्वास दिखाना होगा और उनको किसी से भी तुलना कर कम नहीं आंकना चाहिए।

अब तक जीवन कब कठिन लगा या जहां सिर्फ बेटी होने के कारण सरल हुआ।

मैं खुद को बहुत भाग्यशाली समझती हूं कि मेरे माता-पिता ने मेरे और मेरे भाई के बीच कभी कोई भेदभाव नहीं किया और न ही मुझे लड़की होने का कोई विशेष लाभ मिला। नतीजतन मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मुझे नई चुनौतियों का सामना करने का साहस मिला।

शिक्षा की सीढि़यों पर हिमाचली बेटियों को आपकी राय और ऐसी क्या राय होगी, जिससे आकाश खुल सकता है।

यही संदेश है कि आप किसी से कम नहीं हैं और अपने आपको कम आंकने भी न दें। अगर पूरी लगन से प्रयत्न किया जाए तो सब कुछ हासिल किया जा सकता है।

अब तक किस भारतीय नारी चरित्र से प्रभावित रहीं या विश्व की सबसे शक्तिशाली नारी आप किसे मानती हैं?

मेरे नजरों में हर एक नारी शक्तिशाली है। मेरे जीवन में मेरी मां मेरी प्रेरणास्रोत हैं।

अगर कभी हिमाचल में कोई योगदान करना हो तो वह क्या होगा।

मेरे सपना है हिमाचली यूथ के लिए कुछ करने का। निश्चित तौर पर मैं अपने प्रदेश को सफल बनाने और इसका गौरव बढ़ाने के लिए अपना योगदान देना चाहती हूं।


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