सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता तय करे बजट

By: Feb 6th, 2018 12:06 am

आशीष बहल

लेखक, चुवाड़ी, चंबा से हैं

जब सरकारी स्कूलों में मुफ्त में शिक्षा, मुफ्त किताबें, मुफ्त वर्दी, मुफ्त में खाना और छात्रवृत्तियों से लेकर इलाज तक मुफ्त में होता है, फिर भी लोग सरकारी स्कूलों की तरफ आकर्षित नहीं हो रहे।  इससे एक बात तो साफ है कि लोगों में मुफ्त का लालच नहीं है…

शिक्षित समाज से ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण होता है। किसी भी राज्य की उन्नति का आधार होती है शिक्षा। अगर हिमाचल की बात करें, तो प्रदेश पिछले दो दशकों से शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। हिमाचल ने शिक्षा क्षेत्र में नए आयाम हासिल किए हैं और विभिन्न मंचों पर हिमाचल को इसके लिए सम्मानित भी किया गया है। हाल ही में एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में भी हिमाचल को शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए देश में दूसरा स्थान हासिल हुआ है। यह इस बात का प्रमाण है कि यहां के शिक्षकों और विद्यार्थियों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। इस सबके बीच सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की कम होती संख्या एक चिंता का विषय है। हिमाचल के शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने अधिकारियों और पदाधिकारियों के साथ हुई पहली ही बैठक में सरकारी विद्यालयों में कम होती विद्यार्थियों की संख्या के प्रति चिंता व्यक्त की थी। इससे सरकारी शिक्षा को बचाने में लगे लोगों को एक सकारात्मक संदेश मिला है। आज हम देखते हैं कि सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घट रही है। कई ऐसे स्कूल हैं, जहां मात्र तीन विद्यार्थी और दो अध्यापक हैं। कुछ स्कूल ऐसे हैं जो कम विद्यार्थियों के कारण बंद भी कर दिए गए। इसके कुछ कारण भौगोलिक हैं, तो कुछ सामाजिक।

हिमाचल प्रदेश में पिछले पांच सालों में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या सवा लाख कम हुई है। अभिभावकों ने अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों के बजाय निजी स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया है। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार सरकारी स्कूलों में 10,07,196 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे, जबकि 2016-17 में यह संख्या घट कर 8,89,642 रह गई। ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिर सरकारी स्कूलों में ही छात्र कम क्यों हो रहे हैं, जबकि निजी स्कूलों में यह संख्या बढ़ रही है। ऐसे कई कारण सामने आते हैं, जिनसे प्रभावित होकर लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने से कतराते हैं। इसमें कुछ नीतियां जिम्मेदार हैं, तो कुछ योजनाएं। इन सबके बारे में कई बार शिक्षाविद चर्चा कर चुके हैं, परंतु परिणाम आज भी शून्य है।

जब सरकारी स्कूलों में मुफ्त में शिक्षा, मुफ्त किताबें, मुफ्त वर्दी, मुफ्त में खाना और छात्रवृत्तियों से लेकर इलाज तक मुफ्त में होता है, फिर भी लोग सरकारी स्कूलों की तरफ आकर्षित नहीं हो रहे। आखिर इसका क्या कारण है। इससे साफ है कि लोगों में मुफ्त की शिक्षा का लालच नहीं है। उनमें इतना सामर्थ्य है कि वे अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च उठा सकें, फिर इन योजनाओं का क्या औचित्य? इसका तात्पर्य यह हुआ कि इन सब मुफ्त की योजनाओं से छात्र संख्या में कोई इजाफा नहीं हुआ। लोगों को जिस प्रकार की शिक्षा अपने बच्चों को चाहिए, वह उन्हें सरकारी स्कूलों में नहीं मिल पा रही। अभिभावक बच्चों के लिए आधुनिक शिक्षा के पक्षधर हैं। एक ऐसी शिक्षा जहां कम्प्यूटर शिक्षा, स्मार्ट क्लास, अंग्रेजी माध्यम की बढि़या किताबों सरीखी हर सुविधा उपलब्ध हो। तो क्या सरकारी स्कूलों में यह सब है? जी नहीं! प्राथमिक विद्यालयों में तो कहीं भवन की हालत भी इतनी खस्ता है कि वहां बच्चों को बिठाना भी खतरे से खाली नहीं। किताबों का स्तर इतना घटिया है कि उनमें हजारों के हिसाब से गलतियां हैं। इस बार तो हाई कोर्ट को भी निर्देश देने पड़े कि बच्चों को गलत किताबें न पढ़ाई जाएं। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अधिकतर गरीब या मध्यम वर्ग से संबंधित रहते हैं। तो इन बच्चों को इसलिए ये गलत किताबें नहीं पढ़ाई जा सकतीं कि उन्हें ये मुफ्त में दी जा रही हैं। हाई कोर्ट की टिप्पणी के बावजूद इस बार यह कह कर गलत किताबें ही भेज दी गईं कि इनका प्रकाशन हो चुका है। अब आप खुद ही सोचिए कि क्या इस तरह से सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ सकती है? कदापि नहीं। हर मां-बाप बच्चों के लिए अच्छी और ज्ञानवर्द्धक किताबें चाहता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि सबसे पहले पाठ्यक्रम में जरूरी सुधार किए जाएं और एनसीईआरटी की पुस्तकें ही प्राथमिक स्तर से पढ़ाई जाएं, ताकि सरकारी स्कूल भी अपनी गुणवत्ता प्रदर्शित कर सकें। दूसरा सबसे बड़ा कारण है शिक्षकों की कम संख्या। जब तक प्राथमिक स्तर पर ‘एक कक्षा, एक शिक्षक’ की नीति नहीं अपनाई  जाती, छात्रों की संख्या बढ़ाना असंभव है। शिक्षा का आधार कहे जाने वाले प्राथमिक विद्यालयों में हालात और भी दयनीय हैं। हिमाचल के 12 जिलों में 10,724 प्राथमिक पाठशालाओं में 25,083 प्राथमिक शिक्षक कार्यरत हैं। अधिकतर विद्यालय एक या दो अध्यापकों के सहारे ही चलते हैं। समस्या यह भी है कि जहां 10 से कम छात्र हैं, वहां भी दो अध्यापक और जहां 60 छात्र हैं, वहां भी दो ही अध्यापक नियुक्त हो सकते हैं।  60 बच्चों की पांच कक्षाओं को दो अध्यापक कैसे पढ़ाएंगे?

निर्विवादित रूप से सरकारी स्कूलों में ही छात्र का सर्वांगीण विकास संभव है, क्योंकि यहां हर वर्ग, हर समुदाय के विद्यार्थी का हुनर तराशा जा सकता है। अब से कुछ ही समय बाद प्रदेश सरकार अपना बजट पेश करेगी। ऐसे में यदि सरकारी शिक्षा को इस दुर्दशा से बचाना है, तो पर्याप्त वित्त के साथ-साथ आवश्यक सुविधाएं जुटाने पर सरकार को बजट में प्रावधान करने होंगे। सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अब कुछ व्यावहारिक प्रयास होने चाहिएं। समय आ गया है जब समाज, अध्यापकों और अभिभावकों को एक होकर सरकारी शिक्षा के सम्मान में खड़ा होना होगा।

ई-मेल : ishunv0287@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App