सरकार उसी की जो दूध पीए

By: Feb 27th, 2018 12:07 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए जीएसटी तथा मेक इन इंडिया लाभप्रद है। घरेलू बड़ी कंपनियों के लिए जीएसटी एवं जनधन लाभप्रद हैं, परंतु मेक इन इंडिया हानिप्रद है। कुल मिलाकर इन पर प्रभाव शून्य माना जा सकता है। नौकरशाही के लिए स्किल इंडिया, स्टार्टअप तथा मुद्रा लाभप्रद हैं, जबकि डिजिटल इंडिया हानिप्रद है। असंगठित क्षेत्र के लिए जीएसटी, नोटबंदी, मेक इन इंडिया तथा जन-धन हानिप्रद है। अंतिम आकलन में बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं नौकरशाही को लाभ है। यही अर्थव्यवस्था नामक गाय का दूध पी रहे हैं…

महाभारत में पूछा गया कि गाय किसकी है? उत्तर में कहा गया कि गाय किसान, ग्वाले, चारा उगाने वाले और दूध बेचने वाले की नहीं है, चूंकि उनके श्रम का उद्देश्य तो ग्राहक को दूध पिलाना मात्र है। गाय का असल मालिक वह है, जो दूध पीता है। इसी तरह हमें देखना चाहिए कि एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों से उत्पादित हुए दूध को पी कौन रहा है। इस दिशा में एनडीए सरकार द्वारा लागू की गई प्रमुख आर्थिक नीतियों का प्रभाव समाज के विभिन्न वर्गों पर देखने का हम प्रयास करेंगे। हम देखेंगे कि इन नीतियों का बहुराष्ट्रीय कंपनियों, घरेलू बड़ी कंपनियों, नौकरशाही तथा असंगठित क्षेत्र पर किस प्रकार अलग-अलग प्रभाव पड़ा है।

जीएसटी बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा घरेलू बड़ी कंपनियों के लिए लाभप्रद रही है, चूंकि इनके लिए पूरे देश में माल भेजना आसान हो गया है। इन कंपनियों की उत्पादन क्षमता ज्यादा होती है और इनका बाजार पूरे देश में फैला होता है। इनके पास लेखाकारों की फौज होती है, जो कि जीएसटी के नियमों का पालन आसानी से कर ले रही है। नौकरशाही के लिए भी जीएसटी लाभप्रद है, चूंकि ज्यादा संख्या में कर अदा करने वालों से घूस वसूलने का इन्हें अवसर उपलब्ध हो गया है। ई-वे बिल व्यवस्था यदि लागू होती है, तो इनकी बल्ले-बल्ले। असंगठित क्षेत्र के लिए जीएसटी हानिप्रद है, चूंकि बड़ी कंपनियों के लिए पूरे देश में माल भेजे जाने से असंगठित क्षेत्र को पूर्व में राज्य की सरहद से मिल रहा संरक्षण समाप्त हो गया है। अब फैजाबाद के जुलाहे को तिरुपुर के पावरलूम से सीधी टक्कर लेनी होगी। जीएसटी से छोटे कारोबारियों को टैक्स के दायरे मे आना पड़ा है, जिससे इनका मार्जिन भी घटा है। इनके लिए जीएसटी के रिटर्न भरने का अतिरिक्त बोझ भी आ पड़ा है।

नोटबंदी बहुराष्ट्रीय एवं बड़ी भारतीय कंपनियों के लिए निष्प्रभावी रही है, चूंकि इनका अधिकतर लेन-देन पहले ही बैंकों के माध्यम से हो रहा था। नौकरशाही के लिए नोटबंदी वरदान सिद्ध हुई है। नोट बदलकर बैंकों की नौकरशाही ने खूब कमाया है। असंगठित क्षेत्र के लिए यह हानिप्रद रही है, चूंकि दो माह तक नकद की शोर्टेज से इनके ग्राहक टूट गए। तमाम धंधे सदा के लिए बंद हो गए हैं। दिल्ली के एक ओला के ड्राइवर ने बताया कि 30 वर्षों से वह साड़ी की एंब्राइडरी करने का कार्य कर रहा था। नोटबंदी से उसका धंधा बंद हो गया और वह ओला की नौकरी करने को मजबूर हो गया। मेक इन इंडिया से मूलतः भारतीय कंपनियों को नुकसान है, चूंकि ये बहुराष्ट्रीय कंपनियों के जूनियर पार्टनर बनने पर मजबूर होते हैं। नौकरशाही को मेक इन इंडिया से कोई लाभ-हानि नहीं है। इन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता कि घूस घरेलू कंपनी ने दी या विदेशी कंपनी ने दी। असंगठित क्षेत्र के लिए मेक इन इंडिया हानिप्रद रहा है, क्योंकि बड़ी कंपनियों द्वारा इनके बाजार पर कब्जा किया जा रहा है जैसे मैकडानल्ड तथा बर्गर किंग ने ढाबे का धंधा ले लिया है।

स्टार्ट अप इंडिया से बहुराष्ट्रीय एवं भारतीय बड़ी कंपनियों को प्रभाव नहीं पड़ा है। ये इस योजना से बाहर हैं। नौकरशाही के लिए यह लाभप्रद है, चूंकि इन्हें ऋण देने में कमीशन मिलते हैं। असंगठित क्षेत्र के लिए यह योजना लाभप्रद होते हुए भी फायर फाइटिंग जैसी है। वर्ष 2015 की तुलना में वर्ष 2016 में स्टार्टअप्ज में 67 प्रतिशत की गिरावट आई है। यानी इस योजना की हवा निकल रही है और यह निष्प्रभावी है। स्किल इंडिया का बहुराष्ट्रीय और भारतीय बड़ी कंपनियों तथा असंगठित क्षेत्र पर प्रभाव शून्य है, चूंकि जो स्किल दी जा रही है वह अनुपयुक्त है। नौकरशाही के लिए यह योजना लाभप्रद है, चूंकि इन्हें फर्जी एनजीओ को घूस देकर ग्रांट देने का अवसर मिला है। डिजिटल इंडिया तथा आधार का बहुराष्ट्रीय तथा भारतीय बड़ी कंपनियों पर प्रभाव शून्य है, चूंकि यह पहले ही डिजिटल थे। नौकरशाही के लिए यह हानिप्रद है, चूंकि इन योजनाओं के माध्यम से डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर किया जा रहा है और इनके लिए घूस वसूलने के अवसर कम हो रहे हैं। असंगठित क्षेत्र के लिए ये योजनाएं लाभप्रद हैं, चूंकि डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर से इन्हें आसानी से रकम मिल रही है। परंतु साथ-साथ असंगठित क्षेत्र के लिए धंधा करना कठिन हो गया है क्योंकि इनके लिए नकद में धंधा करना सरल होता है। ये योजनाएं छोटे व्यापारों को बंद कराकर छोटे व्यापारियों को सरकार के डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर पर आश्रित बना रही हैं।

जन-धन योजना बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए निष्प्रभावी है। यह भारतीय बड़ी कंपनियों के लिए लाभप्रद है, चूंकि लगभग 30,000 करोड़ की रकम आम आदमी ने बैंकों में जमा कराई है, जिसका बड़ा हिस्सा इन्हें मिला है। पूंजी की इस उपलब्धता से इनके द्वारा दिए जाने वाले ब्याज की दर में कटौती हुई है। नौकरशाही के लिए यह निष्प्रभावी है। आम आदमी के लिए यह हानिप्रद है, चूंकि उसकी रकम पर बचत बैंक खाते में केवल चार प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज मिल रहा है, जबकि अपने धंधे के लिए वह 24 से 60 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से साहूकार से रकम उधार ले रहा है। मुद्रा योजना का बहुराष्ट्रीय एवं घरेलू बड़ी कंपनियों पर कोई प्रभाव नहीं है। नौकरशाही के लिए यह लाभप्रद है, क्योंकि ऋण देने का अवसर मिलता है। असंगठित क्षेत्र के लिए यह योजना लाभप्रद दिखती है, परंतु निष्प्रभावी सिद्ध हो रही है। छोटे कारोबारियों का कुल ऋण में हिस्सा 2015 में 13.3 प्रतिशत से घटकर 2017 में 12.6 प्रतिशत रह गया है। यानी छोटे कारोबारियों का धंधा मूल रूप से सिकुड़ता जा रहा है। मुद्रा योजना ने इस सिकुड़न को कुछ नरम बना दिया है, जैसे मरीज का बुखार 104 डिग्री से घटकर 102 डिग्री हो जाए।

अब हम विभिन्न वर्गों पर सरकार की नीतियों के प्रभाव का आकलन कर सकते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए जीएसटी तथा मेक इन इंडिया लाभप्रद है। घरेलू बड़ी कंपनियों के लिए जीएसटी एवं जन-धन लाभप्रद हैं, परंतु मेक इन इंडिया हानिप्रद है। कुल मिलाकर इन पर प्रभाव शून्य माना जा सकता है। नौकरशाही के लिए स्किल इंडिया, स्टार्टअप तथा मुद्रा लाभप्रद हैं, जबकि डिजिटल इंडिया हानिप्रद है। मेरे आकलन में इन्हें लाभ ज्यादा है। असंगठित क्षेत्र के लिए जीएसटी, नोटबंदी, मेक इन इंडिया तथा जन-धन हानिप्रद है। डिजिटल इंडिया में डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर से इन्हें लाभ है। अंतिम आकलन में बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं नौकरशाही को लाभ है। यही अर्थव्यवस्था नामक गाय का दूध पी रहे हैं। एनडीए सरकार द्वारा लागू की गई आर्थिक नीतियों का प्रभाव यह हुआ है कि असंगठित क्षेत्र का दूध बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं नौकरशाही को पीने के लिए दिया जा रहा है।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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