हिमाचली धाम जैसा स्वाद और कहां

By: Feb 4th, 2018 12:05 am

हिमाचल प्रदेश अपनी अनोखी सांस्कृतिक विरासत व एतिहासिक पृष्ठभूमि के लिए विश्वविख्यात है। इसके बावजूद भी यहां के रीति-रिवाज, खान-पान, वेशभूषा व अन्य तीज-त्योहार आज भी अपनी पहचान को यथावत समेटे हुए हैं। हिमाचल के प्रत्येक इलाके के विशिष्ट व्यंजन और इसकी विशिष्ट भूगौलिक पहचान है।

आज जहां शादी-ब्याह में भोजन का आयोजन आधुनिक तरीके से किया जा रहा है, वहीं इस राज्य के अधिकांश भागों में हिमाचली धाम (लंच) का प्रचलन आज भी यथावत है। धाम के लिए स्थानीय लोग कुछ समय पूर्व ही चौल छंडाई (चावल साफ करना) की  प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। यह कार्यक्रम शादी के कुछ दिन पहले गांव की आस-पड़ोस की महिलाएं सामूहिक होकर विवाह के सुरम्य ताल के साथ गीत गाते हुए चावलों को बड़ी ही बरीकी से साफ करती हैं, ताकि उसमें एक भी कंकड़ नहीं रह जाए। धाम बड़ी ही सादगी, शिद्दत व लुत्फ के साथ बनाई जाती है। धाम के दौरान चावल का अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इसको बनाने के लिए घर के आंगन के इर्द-गिर्द एक अस्थायी तौर से रसोई बनाई जाती है, जिसे स्थानीय लोग तीण कहते हैं। जमीन को लंबी व गहरा खोद जाता है, ताकि उसमें पांच-छह बड़ी-बड़ी ढेगचीनुमा चरौटी बरतन रखे जा सकें।  धाम को बनाने वाले रसोइयों ने इसमें महारत हासिल की होती है। चावल के अलावा पल्दा, मदराह, नाना प्रकार की दालें तैयार की जाती है। इनमें कई तरह के मेवों का मिश्रण भी डाला  जाता है, जो खाने की लाजवाब व लजीज बना देता है। अतिथियों को चटाईनुमा लंबी दरियों में पंक्तबद्ध, जिसे स्थानीय भाषा में पैंठ कहा जाता है, में बिठाया जाता है।  मजेदार व रोचक बात यह है कि चावल को टोकरीनुमा, जिसे स्थानीय लोग छड़ कहते हैं में रखकर परोसते हैं। दाल व अन्य सब्जियों को डोंगो में डालकर इतनी तीव्रता व बड़े ही नाप- तोल के साथ सर्व किया जाता है कि पता नहीं चलता है कि कोई कमी रह गई हो। परोसने वाले जहां पीली धोती पहनते  हैं, वहीं सर्व करने के दौरान जूते अथवा चप्पल पहनना वर्जित माना जाता है। इस अवसर पर जब दूल्हा-दुल्हन खाने बैठते हैं तो दुल्हन रूठ बैठती है। उसे मनाने के लिए दूल्हे वाले उसे अंगूठी, गले का हार अथवा अन्य तोहफा देकर दुल्हन  को खाना खाने के लिए मनाते हैं। यही काम दूल्हे का दुल्हन के घर  में दी गई धाम में भी रहता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। थोड़ा परिवर्तन अब यह आ गया है कि अब दूल्हा-दुल्हन अथितिगणों की कतार में न बैठकर दोनों को थाली में अलग से खाना परोसकर दिया जाता है।  धाम में खाने के आखिर में रंगदार मीठे चावल का मिष्ठान परोसा जाता है। इसमें भी अनेक प्रकार के मेवों का समावेश होता है। कहते हैं कि यह मिष्ठान न दिया जाए, तो धाम अधूरी सी लगती है। धाम का एक नियम यह भी है जब तक कोई न खा ले, तब तक कोई भी अपने स्थान से नहीं उठता।  अब धामों का आयोजन अन्य अनुष्ठानों में किया जाने लगा है। अगर हिमाचल प्रदेश में किसी ब्याह अथवा अनुष्ठान में  शिरकत करने जाएं तो इस प्रीतिभोज का लुत्फ जरूर उठाएं।

— तुलसी राम डोगरा, पालमपुर


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