हिमाचली भाषा आठवीं अनुसूची में कब शामिल होगी

By: Feb 4th, 2018 12:05 am

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक भाषाओं का वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में बाइस भाषाओं को शामिल किया गया है। हिमाचली भाषा को इसमें शामिल करवाने के लिए दशकों से चला आ रहा शोर कोई सार्थक मुहिम नहीं बना पाया है। पहाड़ी की ओट में ही पली-बढ़ी डोगरी भाषा ने इसमें स्थान पाने का सौभाग्य पा लिया, लेकिन उसी पहाड़ी के दूसरे छोर में पली-बढ़ी हिमाचली भाषा अब तक आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं पा सकी है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हिमाचली भाषा में साहित्य लेखन व पठन-पाठन नहीं होता है। हिमाचली लेखक समय-समय पर अपने स्तर पर, भाषा एवं संस्कृति विभाग हिमाचल प्रदेश के तत्त्वावधान में मंथन करते आ रहे हैं। प्रत्येक वर्ष इस प्रकार के आयोजनों का सैलाब सा नजर आने लगता है। मिसाल के तौर पर हिम भारती, गिरिराज, फोकस हिमाचल, हिमाचल मित्र, शब्द मंच व हैड न्यूज हिमाचल आदि पत्र-पत्रिकाएं पहाड़ी भाषा के समुचित विकास के लिए प्रयासरत हैं। आकाशवाणी शिमला, धर्मशाला, हमीरपुर, दूरदर्शन केंद्र शिमला एवं विभिन्न समाचारपत्रों में प्रकाशित पहाड़ी भाषा के परिशिष्ट इस दिशा में नए आयाम स्थापित कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार भी पहाड़ी भाषा के विकास व प्रोत्साहन के लिए समय-समय पर साहित्यकारों को सम्मानित करती है तथा उनकी पुस्तकों के प्रकाशनार्थ अनुदान भी देती है। कई जनपदों में लेखक गृह भी निर्मित किए गए हैं। इतने सारे अथक प्रयासों के बावजूद पहाड़ी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं पा सकी है। डोगरी, बंगला, नेपाली, पंजाबी आदि भाषाओं में शायद ऐसा कुछ खास होगा जो हिमाचली भाषा प्रेमियों के लिए आत्ममंथन का विषय है। कुछ वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर ने करीब बीस हजार पांडुलिपियों का पता लगाया। इन पांडुलिपियों में नाहन में मिली तीन सौ वर्ष पुरानी भृगु संहिता व करसोग में मिला पांच मीटर हस्तलिखित पन्ना भी शामिल है। इन शोधों से यह बात प्रमुख रूप से सामने आई थी कि हिमाचल प्रदेश में पांच सौ वर्ष पूर्व भी पहाड़ी भाषा लिखी, पढ़ी और बोली जाती थी। इसमें टांकरी व देवनागरी प्रमुख है।  भाषा एवं संस्कृति विभाग ने साहित्यकारों को इन भाषाओं में विशेषज्ञों से प्रशिक्षण भी दिलाया है। डॉ. गियर्सन ने पहाड़ी भाषा की अधिकतर बोलियों की व्याकरण सहित व्याख्या की है। इसके बाद डॉ. सिद्धेश्वर शर्मा ने जौनसारी, सिरमौरी, बघाटी, क्योंथली, हंडूरी, कुल्लवी, सतलुज समूह मंडियाली, चंबयाली, कहलूरी व कांगड़ी आदि भाषाओं का अध्ययन किया। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉ. प्रत्यूष गुलेरी, डॉ. पीयूष गुलेरी, डॉ. गौतम शर्मा व्यथित, जयदेव विद्रोही, डॉ. शमी शर्मा, प्रोफेसर नरेंद्र अरुण, जयदेव किरण, मदन हिमाचली, कुलदीप चंदेल, अश्वनी गर्ग, मौलूराम ठाकुर, रामलाल पाठक, विद्याचंद सरैक, नवीन हल्दूणवी, विनोद भावुक, नवनीत शर्मा, द्विजेंद्र द्विज, अनूप सेठी, रमेश मस्ताना, प्रभात शर्मा, संदेश शर्मा, कृष्णा ठाकुर, कन्हैया लाल दबड़ा, कृष्ण चंद महादेविया, प्रेमटेसू, पंडित जय कुमार, डॉ. कांता शर्मा, कमल हमीरपुरी, डॉ. प्रेम भारद्वाज, शैली किरण, अशोक दर्द, वीरेंद्र शर्मा वीर, प्रीतम आलमपुरी, डॉ. विद्याचंद ठाकुर, सुरेंद्र मिन्हास, मनशा पंडित, करनैल राणा, डॉ. लैहरू राम सांख्यान, जीतू सांख्यान, रूपेश्वरी शर्मा आदि कितने ही ख्यातिलब्ध व युवा साहित्यकार, कलाकार व लोक गायक इस भाषा को देश-विदेश में जनमानस तक पहुंचाने के लिए समुचित प्रयासरत रहे हैं। हिमाचल भाषा, कला एवं संस्कृति अकादमी द्वारा वर्ष 2008 में प्रकाशित पहाड़ी भाषा व्याकरण में कांगड़ा गजेटियर के अनुसार सन् 1881 में जनगणना के समय कांगड़ा जनपद के छह लाख उन्नीस हजार चार सौ अड़सठ लोगों ने अपनी मातृभाषा पहाड़ी बताई है। हिमाचल प्रदेश के अग्रणी दैनिक समाचारपत्र दिव्य हिमाचल ने पहाड़ी भाषा को संविधान की अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए वर्ष 2004 में ‘डोगरी राष्ट्रीय भाषा तो हिमाचली क्यों नहीं’ शीर्षक से हिमाचली रचनाकारों को बहस कॉलम से लेकर प्रतिबिंब तक एक मंच प्रदान करने व जनपद परिशिष्ट में लोकमंच कॉलम द्वारा इस भाषा की नब्ज को अंदर तक टटोलने का प्रयास किया है। अभी हाल ही में निर्मित हिमाचली फिल्म सांझ को विदेशों में भी पुरस्कृत किया जाना हिमाचली भाषा की लोकप्रियता की मिसाल है। हिमाचल की समृद्ध अलौकिक परंपराओं, सांस्कृतिक धरोहर, प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत होकर राहुल सांकृत्यायन, सोभा सिंह, यशपाल शर्मा, चंद्रधर शर्मा गुलेरी व विजय शर्मा जैसे विश्व प्रसिद्ध रचनाकारों की सृजनशीलता का साक्षात गवाह रही इस देवभूमि के जनमानस की मातृभाषा पहाड़ी भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान पाने को लालायित क्यों न हो। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला में भी पहाड़ी भाषा के संदर्भ में कुछ वर्ष पूर्व साहित्यकारों की बैठक आयोजित हुई थी। हिमाचली बोलियों पर अनेक तुलनात्मक, समीक्षात्मक, भाषा वैज्ञानिक शोध भी हो चुके हैं। प्रत्येक जनपद मुख्यालय में नियुक्त जिला भाषाधिकारी भी हिमाचली भाषा के उत्थान व प्रचार-प्रसार में मासिक साहित्यिक गोष्ठियां व विशेष दिवस आयोजित कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई स्तरों पर मंथन शिविर आयोजित किए जाएं, तभी हिमाचली भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान पाने की दिशा मेंअग्रसर होगी।

-रवि कुमार सांख्यान


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App