हिमाचल में 393 वर्ग किलोमीटर बढ़ा वन क्षेत्र

By: Feb 14th, 2018 12:16 am

पड़ोसी राज्य उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर से प्रदेश आगे, सघन वन क्षेत्र हुआ 3110 वर्ग किलोमीटर

शिमला—इंडियन स्टेट ऑफ फोरेस्ट-2017 की रिपोर्ट हिमाचल के लिए सुखद संदेश लेकर आई है। सेटेलाइट सर्वेक्षण से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल का वन क्षेत्र 393 वर्ग किलोमीटर बढ़ गया है। पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में वन क्षेत्र की यह वृद्धि पड़ोसी राज्यों उत्तराखंड व जम्मू-कश्मीर से भी ज्यादा है। उत्तराखंड में 23 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र ही बढ़ा है, जबकि जम्मू-कश्मीर में यह आंकड़ा 253 वर्ग किलोमीटर का है। हालांकि इसमें एलओसी के बाहर के क्षेत्र को भी दर्शाया गया है, जो पाकिस्तान व चीन के अनाधिकृत कब्जे में है। हिमाचल का कुल क्षेत्रफल 55673 है। वर्ष 2017 की जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, उसमें प्रदेश में वीडीएफ यानी वैरी डेंस फोरेस्ट कवर 3110 वर्ग किलोमीटर, एमडीएफ यानी मॉडरेट डेंस फोरेस्ट कवर 6705 वर्ग किलोमीटर और ओपन फोरेस्ट क्षेत्र 5285 वर्ग किलोमीटर आंका गया है। जम्मू-कश्मीर का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 222,236 वर्ग किलोमीटर, वीडीएफ 4075, एमडीएफ 8579 जबकि ओपन फोरेस्ट 10567 वर्ग किलोमीटर है। उत्तराखंड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 53483 वर्ग किलोमीटर, वीडीएफ 4969 वर्ग किलोमीटर, एमडीएफ 12884 वर्ग किलोमीटर, जबकि ओपन फोरेस्ट 6442 वर्ग किलोमीटर आंका गया है। वर्ष 2015 के मुकाबले हिमाचल में 0.71 फीसदी वन क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है। उत्तराखंड में 0.04 और जम्मू-कश्मीर में 0.11 प्रतिशत बढ़ोतरी आंकी गई है। पड़ोसी राज्य पंजाब में सोशल फार्म फोरेस्ट्री रंग लाई है। इसके अंतर्गत वहां 66 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बढ़ा है, जबकि हरियाणा में यह दर आठ वर्ग किलोमीटर की है। प्रदेश को कार्बन स्टॉक के हिसाब से भी इस वन क्षेत्र में हुई वृद्धि में काफी मदद मिल सकती है। क्योंकि हिमाचल देश का ऐसा राज्य है, जहां कार्बन क्रेडिट योजना चल रही है। इसके मायने हैं कि देश में कार्बन डाईऑक्साइड जितनी मात्रा में उत्सर्जित होती है, उसे सोखने वाले वन क्षेत्र में हिमाचल में बढ़ोतरी हुई है। जाहिर तौर पर आने वाले वक्त में प्रदेश को इसका बड़ा लाभ भी मिल सकता है।

ग्रीन बोनस के लिए दावा पुख्ता

वर्ष 2017 की रिपोर्ट के बाद अब सालाना 100 करोड़ की दर से ग्रीन बोनस पर हिमाचल की दावेदारी और मजबूत हो गई है। वर्ष 1996-97 से हरे वृक्ष कटान पर प्रतिबंध है। प्रदेश में सघन वन संपदा परिपक्व हो चुकी है। यदि केंद्र  ने इस संपदा के दोहन के लिए हिमाचल को अनुमति नहीं दी तो यह मिट्टी में बदल सकती है। आवश्यक सिल्वीकल्चर प्रक्रिया तो प्रभावित होगी ही, नए पौध की प्राकृतिक तौर पर रिजेनरेशन भी रुकेगी। जरूरत इस बात की है कि केंद्र पर इस मुद्दे को लेकर दबाव बनाया जाए।


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