100 दिन की गति में मंत्री

By: Feb 19th, 2018 12:05 am

हिमाचल सरकार 100 दिन का एजेंडा तय कर विकास की नई इबारत लिखने जा रही है। इसी टारगेट के तहत प्रदेश के अहम शिक्षा विभाग की तैयारी, शिक्षा नीति की खामियों एवं शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज की कार्य योजना को दखल के जरिए बता रही हैं , प्रतिमा चौहान…

शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को सौ दिन के टारगेट में तैयार किए गए 14 बिंदुओं पर जल्द कार्य करने के निर्देश दिए हैं।  शिक्षा विभाग में अभी तक शिक्षकों के लिए टीचर ऐप लांच कर दी गई है। इस ऐप के माध्यम से शिक्षक छात्रों को पढ़ाने के नए तौर तरीकों को सिखा पाएंगे। वहीं क्लस्टर विवि को भी सौ दिन के टारगेट में रखा गया है। शिक्षा मंत्री का दावा है कि सौ दिन में क्लस्टर विवि में कक्षाएं लगनी शुरू हो जाएंगी। शिक्षा विभाग में ट्रांसफर पालिसी लाने का मामला भी शिक्षा मंत्री की ओर से ही लाया गया है। जल्द ही प्रदेश में शिक्षकों के लिए ट्रांसफर एक्ट लागू किया जाएगा, ताकि शिक्षक पहुंच के आधार पर अपनी ट्रांसफर न करवा सकें व स्कूली छात्रों की पढ़ाई भी प्रभावित न हो। शिक्षा मंत्री ने कम छात्र वाले स्कूलों को बंद करने को लेकर भी शिक्षा विभाग से रिपोर्ट मांगी है ।  कहा जा रहा है कि जल्द ही कम छात्र वाले स्कूलों को मर्ज किया जाएगा। इसके अलावा स्कूलों में प्री-नर्सरी कक्षाओं को शुरू करने को लेकर भी योजना बनाई जा रही है। शिक्षा मंत्री का कहना है कि मंत्रिमंडल से बातचीत की जा रही है। आंगनबाड़ी को खत्म कर स्कूलों में ही तीन साल के बाद छात्रों के लिए प्री-नर्सरी कक्षाएं शुरू की जाएंगी। कुल मिलाकर अभी तक पूरी तरह से टीचर ऐप के कार्य को ही अमलीजामा पहनाया गया है। उम्मीद है शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर, जो टारगेट तय किया उसे सौ दिन में पूरा किया जाएगा।

नियामक आयोग लाने की योजना

सरकार निजी स्कूलों पर शिकंजाकसने के लिए नियामक लाने की तैयारी में भी है। इस आयोग पर जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा। सरकार नियामक आयोग अगर लागू कर पाती है तो इससे निजी स्कूल अपनी मर्जी से फीस बढ़ोतरी नहीं कर पाएंगे।

शिक्षा नीति में होगा बदलाव

प्रदेश में जब से नई सरकार ने सत्ता संभाली है, तब से शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर दावे किए जा रहे हैं, जिसमें ट्रांसफर एक्ट सबसे अहम है। अगर ट्रांसफर एक्ट लागू होता है, तो इससे शिक्षकों के तबादलों में पारदर्शिता तो आएगी ही साथ ही छात्रों की पढ़ाई भी प्रभावित नहीं होगी।  आने वाले समय में  पहली कक्षा से लेकर जमा दो तक के लिए लर्निंग आउट प्लान तैयार किया जा सकता है। इससे छात्रों को शिक्षा के नए तौर-तरीके बताए जाएंगे।

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करना

सरकार व शिक्षा विभाग का यह भी दावा है कि स्कूलों को डिजिटलाइजेशन की ओर ले जाया जाएगा, जिसके माध्यम से छात्रों को ऑनलाइन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाई जाएगी, ताकि स्कूल से ही छात्रों को ऑनलाइन परीक्षाओं के बारे में जानकारी हो।

कान्वेंट स्कूलों की तरह होगी पढ़ाई

शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज इस बात को कह चुके हैं कि सरकारी स्कूलों की ओर छात्रों का रुझान बढ़ें, इसके लिए सरकारी स्कूलों में कान्वेंट स्कूलों की तरह शिक्षा नीति को अपनाया जाएगा।

निजी स्कूलों में पढ़ पाएंगे निर्धन बच्चे

गरीब परिवार के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ सकें, इसके लिए सरकार ने दावा किया है कि निजी स्कूलों में भी राइट-टू-एजुकेशन नियम बनाया जाएगा। इसके लिए जल्द ही निजी स्कूल प्रबंधकों के साथ बैठक आयोजित की जाएगी।

विवि में अनुसंधान में विकास की उम्मीदें

शिक्षा मंत्री का दावा है कि प्रदेश विवि में अनुसंधान को लेकर कार्य किया जाएगा। छात्र शोध कार्यों को सही ढंग से कर सकें, इसके लिए कई परिवर्तन किए जाएंगे व विभिन्न विभागों को भी शोध के लिए विषय निर्धारित करने के निर्देश दिए जाएंगे।

शिक्षकों की कमी, असुविधाएं कर गई हैं घर

प्रदेश के शैक्षणिक ढांचे में कई कमजोरियां इस तरह से घर कर चुकी हैं कि अब चाह कर भी सरकार इसे बदलने में जल्द सफल नहीं हो पाएगी। स्कूलों में शिक्षकों की कमी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में इस तरह से घर कर चुकी है कि अगर इस पर जल्द सोच विचार व कार्य नहीं किया गया तो आने वाले समय में शिक्षकों की कमी और बढ़ सकती है।

प्रदेश का शिक्षा ढांचा, शिक्षा नीति नहीं बना पाई सरकार

हिमाचल प्रदेश में शिक्षा किस आधार पर छात्रों को मिल रही है, इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रदेश में शिक्षा को लेकर अभी तक कोई नीति लागू नहीं हो पाई है। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से दावा किया गया था कि जल्द ही शिक्षा को लेकर कोई नीति बनाएगी, लेकिन साढ़े तीन साल का वक्त केंद्र में भाजपा सरकार को हो चुका है, बावजूद इसके अभी तक शिक्षा पर कोई नीति नहीं बन पाई है। आज भी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं।  छात्रों को ढांचागत सुविधाएं भी सही ढंग से नहीं मिल पा रही हैं। वही सरकारी स्कूलों में डिजिटलाइजेशन करने के दावे भी धरातल पर सही साबित नहीं हो पा रहे हैं।

800 स्कूलों में निर्धारित संख्या से कम छात्र

शिक्षा विभाग के पिछले वर्ष के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश भर में करीब 800 स्कूल ऐसे हैं, जहां पर निर्धारित संख्या से कम छात्र पढ़ रहे हैं। जानकारी के अनुसार इन 800 स्कूलों में दस से कम छात्र पढ़ रहे हैं। ऐसे ज्यादातर स्कूल  शिमला, सिरमौर व किन्नौर में हैं। शिक्षा विभाग की ओर से उपनिदेशकों से कम छात्र वाले स्कूलों की इस साल की रिपोर्ट शिक्षा विभाग के पास तो नहीं पहुंच पाई है, लेकिन शिक्षा विभाग का दावा है कि निर्धारित संख्या से कम छात्र वाले स्कूलों के आंकड़ों में कोई ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। वहीं, दस से कम छात्र वाले स्कूलों को शिक्षा विभाग बंद करेगा, इसको लेकर शिक्षा विभाग के पास लिखित में कोई आदेश नहीं आए हैं।

15430 मिडल व प्राथमिक और 2759 वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल

प्रदेश में 15430 प्राथमिक व मिडल स्कूल हैं और 2759 वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल हैं। वहीं, भाजपा सरकार अब कांग्रेस के कार्यकाल में खोले गए स्कूलों का रिव्यू करेगी

प्रदेश में 137 सरकारी कालेज

हिमाचल में 137 सरकारी कालेज हैं। इनमें अधिकतर ऐसे कालेज भी हैं, जहां पर निर्धारित संख्या से कम छात्र हैं। उच्च शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार लगभग 16 कालेज ऐसे हैं जहां पर सौ से भी कम छात्र है। वहीं, कालेजों की स्थिति भी सरकारी स्कूलों की तरह ही है। यहां पर भी अधिकतर कालेजों में स्टाफ नहीं है। तो वहीं, ढांचागत सुविधा भी छात्रों के लिए उपलब्ध नहीं है,

यूं सुधरेगा स्तर…

प्रदेश सरकार को सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए कई सुधार करने चाहिए। स्कूलों में सबसे पहले माडर्न शिक्षा प्रणाली को लागू करना चाहिए। निजी व कान्वेंट स्कूलों की तरह छात्रों का ड्रेस कोड होना चाहिए। सरकारी स्कूलों में छात्रों को डिजिटल ढंग से पढ़ाना शुरू करना चाहिए। इसके साथ ही शिक्षकों के खाली पदों को भी जल्द भरना चाहिए व ऐसी व्यवस्था स्कूलों में करनी चाहिए,जिससे कि शिक्षक पूरा सत्र स्कूलों में छात्रों को मिले, ताकि छात्रों की पढ़ाई प्रभावित न हो।

अंग्रेजी विषय को दें तवज्जो

सरकारी स्कूलों में शिक्षक सहित शिक्षा विभाग के कर्मचारी अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में भेजें इसके लिए जरूरी है कि स्कूलों में कान्वेंट स्कूलों की तरह सुविधाएं छात्रों को दी जाएं। अंग्रेजी के विषय को भी पहली कक्षा से पढ़ाना शुरू किया जाए।

कर्मचारी भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाएं बच्चे

इसके साथ ही जिस तरह से लोग कान्वेंट व निजी स्कूलों की ओर आकर्षित होते हैं, उसी तरह सरकारी स्कूलों में भी ऐसी व्यवस्था हो कि शिक्षा विभाग के कर्मचारी ही नहीं, बल्कि सभी विभागों के कर्मचारी, अधिकारी भी अपने नौनिहालों को सरकारी स्कूलों में ही भेजें। ऐसा करने से शिक्षा के स्तर में भी सुधार आएगा, साथ ही सख्या भी बढ़ेगी।

शिक्षा प्रणाली में जल्द बड़ा सुधार लाएगी सरकार

दिहिः  शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कैसे लाया जा रहा है ? ताकि हिमाचल अन्य राज्यों की बराबरी कर सके।

सुरेश भारद्वाजः प्रदेश में गुणात्मक शिक्षा देने के लिए नए प्रयोग किए जाएंगे, इसके लिए संबंधित विभागों के साथ चर्चा चल रही है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि शिक्षा के क्षेत्र में और राज्य हिमाचल से आगे हैं, पर फिर भी हिमाचल की शिक्षा प्रणाली में जल्द बड़ा सुधार होगा।

दिहिः सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या क्यों कम हो रही है। छात्रों का पलायन कैसे रोकेंगे?

सुरेश भारद्वाजः सरकारी स्कूलों में छात्रों की कम हो रही संख्या चिंतनीय है। इस बारे में मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है।  छात्रों की संख्या को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इसके बारे में एक पत्र प्रदेश के चुने हुए नुमाइंदे, नगर पंचायतों, संस्थाओं तथा सांसदों सहित स्कूल प्रबंधन कमेटी तक पहुंचाया जाएगा व उनसे इसके बारे सुझाव लिए जाएंगे। अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजें, इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा। नर्सरी कक्षाएं शुरू करने की भी योजना बनाई जाएगी।

दिहिः परीक्षा प्रणाली छात्रों पर बोझ क्यों बनी हुई है, इसको कैसे छात्र मित्र बनाया जा सकता है?

सुरेश भारद्वाजः परीक्षा को लेकर न केवल छात्र स्ट्रेस में रहते हैं, बल्कि अभिभावक भी काफी चिंतित रहते हैं। छात्र परीक्षाओं को बोझ न समझें, इसी मकसद से 16 फरवरी को प्रधानमंत्री ने देश भर में छात्रों से सीधा संवाद किया। प्रधानमंत्री ने स्ट्रेस पर लिखी  अपनी पुस्तक के बारे में छात्रोें को बताया। हिमाचल के सरकारी स्कूलों में भी छात्र प्रधानमंत्री से संवाद कर सके, इसके लिए पूरी व्यवस्था की गई थी। छात्र पढ़ाई को बोझ न समझें, इस पर विचार किया जाएगा व शिक्षा के तौर-तरीकों को बदलने का भी प्रयास किया जाएगा।

दिहिः पाठ्यक्रम कब बदलेंगे, जो छात्रों को किताबों से बांधे रखे। शिक्षा विभाग में स्थानांतरण नीति कब तक अपेक्षित है?

सुरेश भारद्वाजः सरकारी स्कूलों में छात्रों को क्या पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा, इसके बारे में एनसीईआरटी ही तय करती है, बाकी अगर आवश्यकता होगी तो एनसीईआरटी के नियमों के तहत ही सिलेबस में बदलाव किया जाएगा। शिक्षकों के लिए ट्रांसफर एक्ट लाने की तैयारी है। प्रदेश में कौन सा एक्ट सही साबित होगा, इस पर अध्ययन किया जा रहा है, जल्द कोई फैसला लिया जाएगा।

दिहिः शिक्षा के क्षेत्र में आप कौन से नए प्रयोग करने वाले हैं, जिनसे बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो सकें?

सुरेश भारद्वाजः हिमाचल में अभी तक स्कूल तो बहुत खोल दिए हैं, लेकिन छात्रों को गुणात्मक शिक्षा मिल सके, इस पर अभी तक कोई ध्यान नहीं दिया गया है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कॉमर्स-मैथ के स्टाफ भी कम है। स्कूली छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो सकें, इसके लिए सेल्फ स्टडी को लिमिट किया जाएगा। कोशिश रहेगी  स्कूल उतने रहें, जितने में शिक्षक पहुंच  सके। वहीं, डिजिटल की तरफ स्कूलों को किया जाएगा, स्मार्ट डिजिटल बोर्ड भी स्कूलों में लगाए जाएंगे

दिहिः शिक्षा में विज्ञान, तकनीक व अनुसंधान को कब प्राथमिकता दी जाएगी?

सुरेश भारद्वाजः शिक्षा के क्षेत्र में विज्ञान तकनीक को बढ़ावा देने के लिए कार्य चल रहा है। वहीं, हमारा मुख्य उद्देश्य यही है कि शिक्षण संस्थान अपने लेवल पर शोध करवाए। विश्वविद्यालय को भी अपने आधार पर छात्रों को शोध करवाने को लेकर निर्देश दिए जाएंगे। अनुसंधान के मामले पर सभी मंत्रियों को पत्र भेजा है व कहा है कि वे अपने विभाग में जिस विषय पर शोध करवाना चाहते हैं, उसके बारे में विवि को आदेश दें, ताकि विभिन्न विषयों में पीएचडी करने वाले अनुसंधान के नए-नए विषयों को जानने का मौका मिल सके। प्रदेश में अनुसंधान को प्राथमिकता मिल सके।

दिहिः प्रदेश विश्वविद्यालय में कब से अनुसंधान प्राथमिक होंगे और वहां के छात्र और प्राध्यापक अनुसंधान पर कब केंद्रित करेंगे?

सुरेश भारद्वाजः पीएचडी की डिग्री के लिए अनुसंधान आवश्यक होता है, लेकिन बावजूद इसके अभी तक विवि में अनुसंधान सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। विवि में कुलपति बनने के बाद ही इस बारे में विवि प्रशासन से प्रोजेक्ट मांगे जाएंगे व रिसर्च पर कार्य कराने के निर्देश दिए जाएंगे।

दिहिः प्रस्तावित शिक्षा परिषद का गठन कब तक होगा?

सुरेश भारद्वाजः प्रस्तावित शिक्षा परिषद के गठन को लेकर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इस पर विधानसभा में विधेयक लाने की जरूरत है। विधानसभा में विधेयक पास होने के बाद ही इस मामले पर कुछ कहा जा सकता है।

दिहिः निजी स्कूलों में राइट टू एजुकेशन को कब जरूरी बनाएंगे, ताकि वहां निर्धन बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर सकें?

सुरेश भारद्वाजः निर्धन बच्चे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ सकें, यह जरूरी है। प्रयास किया जा रहा है कि निजी स्कूलों में भी राइट टू एजुकेशन को लेकर कोई कानून बने, इस मामले पर निजी स्कूल प्रबंधनों से बात की जाएगी।

दिहिः स्कूलों में खेलें व शारीरिक व्यायाम लगभग बंद हो चुके हैं। इस दिशा में क्या करेंगे?

सुरेश भारद्वाजः प्रयास किया जाएगा कि हर स्कूल में मैदान की व्यवस्था हो। इसके साथ स्कूलों में विभिन्न खेलों के लिए उचित समय निर्धारित किया जाए, इसके बारे में भी अधिकारियों से चर्चा की जाएगी। संभव हो सका तो हर स्कूल में जिम की व्यवस्था भी की जाएगी। इसके साथ ही अहम यह भी रहेगा कि किस स्कूल में कौन सी गेम को ज्यादा बढ़ावा दिया जा सकता है।

दिहिः आज अध्यापक पढ़ाने की बजाय अन्य गैर पाठन कार्यों में व्यस्त हैं। कब अध्यापक सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई ही करवाएंगे?

सुरेश भारद्वाजः शिक्षक हर गांव, शहर के स्कूल में सेवाएं देकर अपनी भूमिका निभा रहे हैं। प्रदेश में सबसे बड़ा शिक्षा विभाग ही है। चुनाव व मतगणना में शिक्षा के हर कर्मचारी व शिक्षकों की आवश्यकता पड़ती ही है। प्रयास किया जाएगा कि चुनाव व मतगणना के अलावा शिक्षकों पर और गैर पाठन कार्यों का बोझ न डाला जाए।

* अगर सरकारी स्कूलों में भी कान्वेंट स्कूलों की तरह पढ़ाई हो और शिक्षक उपलब्ध हों तो सरकारी स्कूलों में हमें अपने बच्चों को भेजने में कोई एतराज नहीं हैं

वीरेंद्र चौहान; अध्यक्ष, राजकीय अध्यापक संघ

* ढांचागत व अन्य सुविधाएं जो निजी स्कूलों में हैं, वे सुविधाएं सरकारी स्कूलों में सरकार अभी तक दिलवाने में नाकाम रही है।  यही कारण है कि हम अपने बच्चों को चाह कर भी सरकारी स्कूलों में नहीं भेज पा रहे हैं

चितरंजन काल्टा; अध्यक्ष, पीजीटी यूनियन

* सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। शिक्षा नीति को लेकर कोई नियम नहीं हैं।  कभी भी शिक्षकों की ट्रांसफर हो जाती है। जब यह सारी व्यवस्था सुधर जाएगी,उसके बाद शिक्षकों को अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने में कोई एतराज नहीं होगा।

त्रिलोक ठाकुर; अध्यक्ष,  गैर शिक्षक संघ

* मेरे बच्चों ने सरकारी स्कूलों से ही शिक्षा ली है, लेकिन सरकारी स्कूलों में सुधार की बहुत आवश्यकता है। शिक्षकों पर छात्रों को पढ़ाने के अलावा अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहिए। प्री-नर्सरी कक्षाएं शुरू होनी चाहिए।

गुरुचरण बेदी; अध्यक्ष, प्राइमरी टीचर फेडरेशन

* मेरे दोनों बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं, यहां छात्रों की संख्या घटना चिंतनीय विषय है।  छात्रों की संख्या घटने के कारण को सरकार को तलाशने होंगे

राजेश शर्मा; प्रेस सचिव, कम्प्यूटर शिक्षक संघ

शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट के कारण

सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट का एक कारण यह भी माना गया है कि प्रदेश में जो भी सरकार आती है वह कई नए स्कूलों को खोल तो देती है,लेकिन वहां पर शिक्षा प्रणाली कैसी है, इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा से पांचवीं तक छात्रों को फेल न करने का नियम भी सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट लाने में अहम भूमिका अदा करता है।

इसलिए घट रहे छात्र…

मॉडर्न शिक्षा प्रणाली आज की जरूरत

मॉडर्न शिक्षा प्रणाली आज के दौर में जरूरी है। सरकारी स्कूलों में छात्रों के पलायन की वजह यही है कि आज भी सरकारी स्कूलों में पुराने पैटर्न की तरह छात्रों को पढ़ाया जाता है। आठवीं तक सरकारी स्कूलों में बच्चों को फेल नहीं किया जाता, कारणवश बड़ी कक्षाओं में पहुंचने के बावजूद छात्रों को अंकों व अक्षरों का ज्ञान नहीं हो पाता। वहीं, दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी के विषय पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिस वजह से अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में दाखिला करवाने के लिए ज्यादा महत्त्व देते है।

अध्यापकों की कमी बड़ी खामी

प्रदेश में कई ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जहां 5, 6 छात्रों के लिए, 6-7 शिक्षक हैं तो कहीं 200 से 300 छात्रों वाले स्कूलों में मात्र दो या तीन ही शिक्षक पढ़ाते हैं। इस तरह जब तक सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाओं को सुधारा नहीं जाएग, तब तक स्कूलों से छात्रों की संख्या और घटती जाएगी।

तबादलों का झमेला, पढ़ाई प्रभावित

सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में कमी आने का दूसरा कारण शिक्षकों के तबादले भी हैं। अकसर सामने आता है कि शिक्षक पूरा साल अपने तबादलों में ही लगे रहते हैं, जिस वजह से सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की पढ़ाई प्रभावित होती है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्रणाली का सुदृढ़ न होने का एक कारण यह भी है कि सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों की तरह छात्रों व शिक्षकों के लिए नियम नहीं हैं। ज्यादातर सरकारी स्कूलों में छात्र आज भी अपनी इच्छानुसार स्कूल आते हैं व कक्षाएं लगाते हैं।

मैथ में पिछड़े सरकारी स्कूलों के छात्र

प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग की ओर से छात्रों के ऑनलाइन टेस्ट व अन्य एक्स्ट्रा परीक्षाएं लेकर इस साल सर्वें किया गया, जिसमें सामने आया कि स्कूली छात्र हिसाब व समाजिक विभाग में काफी पिछड़े हैं। नेशनल अचीवमेंट सर्वें में भी सरकारी स्कूलों के छात्र 60 अंकों से ज्यादा नंबर नहीं ले पाए।  सर्वें का यह टेस्ट पहली कक्षा से सातवीं कक्षा तक के छात्रों का लिया गया था।

ऑनलाइन टेस्ट में भी फिसड्डी

दिल्ली की एक संस्था की ओर से भी इस साल नवीं, दसवीं के छात्रों का सर्वें टेस्ट लिया गया है। हैरानी की बात है कि आज के इस डिजिटल दौर में नवीं व दसवीं के छात्र ऑनलाइन टेस्ट में खरे नहीं उतर पाए। प्रदेश भर से छात्रों ने परीक्षा में भाग लिया था, लेकिन शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार इसमें भी कोई भी छात्र 60 से ज्यादा अंक नहीं ले पाया। जिसका कारण यह बताया गया कि छात्र ऑनलाइन टेस्ट देते समय कन्फ्यूज की स्थिति में थे।

55 कालेज कांग्रेस कार्यकाल में खुले  16 हो सकते है बंद

प्रदेश में कांग्रेस कार्यकाल में 55 नए कालेज खोले गए हैं। इन कालेजों में 16 ऐसे कालेज हैं,जहां पर 100 से भी कम छात्र हैं। जानकारी के अनुसार कई कालेजों में तो एक भी छात्र नहीं है। उल्लेखनीय है कि पिछले छः माह में पूर्व कांग्रेस सरकार ने 9 नए कालेजों को खोला है, जिसमें सिर्फ एक कालेज में ही छात्र है। वही आठ कालेजों में तो एक भी छात्र नहीं हैं। इस तरह से भाजपा सरकार प्रदेश में निर्धारित संख्या से कम 16 कालेजों को बंद करने की तैयारी में है।


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