100 दिन की गति में मंत्री

By: Feb 12th, 2018 12:05 am

हिमाचल प्रदेश की जयराम सरकार कुछ हटकर करने का इरादा लेकर फील्ड में उतरी है। प्रदेश सरकार ने विकास को रफ्तार देने के लिए 100 दिन का एजेंडा निर्धारित किया है। टारगेट के तहत तीन अहम विभागों के मंत्री गोविंद ठाकुर के विजन पर रोशनी डाल रहे हैं..

शकील कुरैशी

हिमाचल प्रदेश के परिवहन मंत्री के सामने परिवहन निगम को करोड़ों रुपए के घाटे से बाहर निकालकर इस निगम को लाभ में लाने की अहम चुनौती है।  निगम का घाटा लगातार बढ़ रहा है। हर साल निगम को 100 करोड़ रुपए का घाटा होता है, जो कि 543 करोड़ रुपए से ऊपर का हो चुका है। ऐसे में प्रदेश के लोगों को बेहतर परिवहन सुविधा प्रदान करने और घाटे को लाभ में बदलने के लिए जयराम सरकार को कोशिश करनी होगी। इसके लिए प्रदेश के परिवहन मंत्री गोविंद  सिंह ठाकुर राज्य में परिवहन निगम में आमूलचूल परिवर्तन करने के लिए प्रयासरत हैं। नई सरकार ने परिवहन नीति को बदलने पर काम शुरू कर दिया है और उम्मीद है कि बजट से पहले नई नीति प्रदेश में लागू कर दी जाएगी। वर्तमान सरकार ने परिवहन क्षेत्र में अभी तक कोई बदलाव नहीं किया है। सड़कों के किनारे खड़ी लो-फ्लोर बसों को सड़कों पर दौड़ाने के लिए रूट परमिट के लिए आवेदन किया है, जिसके साथ मनाली क्षेत्र में इलेक्ट्रिक बसों को सड़कों पर उतारा गया है। इसके साथ अभी शिमला में टैक्सियों की संख्या को बढ़ाने के साथ यहां किराया कम किया गया है। वहीं वोल्वो बसों का किराया बढ़ाया गया है। नई सरकार के सामने प्राइवेट कंपनियों से वैट लीजिंग पर चल रही बसोें का भी मसला है जिस पर इन बसों को हटाने की कोशिशें की जा रही हैं।

543 करोड़ से ज्यादा घाटे में एचआरटीसी

प्रदेश परिवहन मौजूदा समय में घाटे में चल रहा है। यह घाटा 543 करोड़ से भी ऊपर हो चुका है। परिवहन मंत्री के लिए इस घाटे से निगम को उबारना सबसे बड़ी चुनौती होगा।

308 लो-फ्लोर बसों के पहिए जाम

प्रदेश की सड़कों पर 308 लो-फ्लोर बसें अभी खड़ी हैं क्योंकि इनको क्लस्टर से बाहर चला दिया गया था, जिस कारण इनको बंद कर दिया गया। ऐसी प्रदेश के पास कुल 791 बसें आई थीं जो कि पूर्व सरकार के समय में केंद्र सरकार से मिलीं। वर्तमान में एचआरटीसी के 4364 रूट हैं, जिन पर बसें चलाई जा रही हैं।

परिवहन निगम के बेड़े में 3260 बसें

परिवहन निगम के पास मौजूदा समय में 3260 बसें हैं,जिनके जरिए प्रदेश के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन की सुविधा प्रदान की जा रही है। पूर्व सरकार ने काफी ज्यादा संख्या में बसों की खरीद की है, जिसकी खरीद पर वर्तमान सरकार ने सवाल उठाए हैं। प्रदेश में इनके अलावा 3700 के करीब निजी बसें भी सड़कों पर दौड़ रही हैं। निजी बस आपरेटर प्रदेश में न्यूनतम किराए में बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं, जिसे लेकर सरकार को लिखित रूप में दिया गया है। हिमाचल प्रदेश, देश में इलेक्ट्रिक बस सेवा प्रदान करने वाला भी पहला राज्य है। इन बसों को सुचारू रूप से चलाने की चुनौती है और अधिक से अधिक बसें 100 दिनों में चलाने को कहा गया है। इसके साथ प्रदेश में इलेक्ट्रिक  टैक्सियां भी चलाई गई हैं, जिसकी शुरुआत वर्तमान सरकार ने की है।

परिवहन मंत्री का एजेंडा

परिवहन क्षेत्र के लिए भी सरकार ने 100 दिन का एजेंडा तैयार कर रखा है। इसके तहत खड़ी बसों को रूट पर चलाना है, जिसके लिए रूट परमिट को आवेदन किया गया है। प्रदेश में नए बस अड्डों का निर्माण भी इस सरकार की प्राथमिकता में है। जिन क्षेत्रों में बस अड्डों का निर्माण आखिरी दौर में है, उनको 100 दिन के भीतर पूरा करने के लिए कहा गया है। इसके साथ अभी पुराने घाटे वाले रूटों को बंद करने की भी योजना है, जिनको समायोजित करके लाभ में पहुंचाने के लिए निगम काम कर सकता है। नए रूटोें का खुलासा भी परिवहन नीति के बाद ही होगा,जो कि जल्दी सामने आएगी।

एक छत के नीचे देंगे सुविधाएं

परिवहन विभाग ने अपने सौ दिन के एजेंडे में वाहन मालिकों को एक ही छत के नीचे सभी सुविधाएं देने की बात कही है। आरटीओ कार्यालय में जहां लोगों को कैशलैस सुविधा प्रदान की जाएगी, वहीं ई-चालान की सुविधा भी यहीं पर मिलेगी। इसके साथ आबकारी विभाग को दिए जाने वाले एक टैक्स को भी अब आरटीओ कार्यालय में ही दिया जा सकेगा, जिसके लिए चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।

जरा ठहरिये ! हर महकमे की रंगत बदलेगी

दिहि : तीन विभागों की जिम्मेदारी आपको मिली है, इसको कैसे निभा रहे हैं। इनमें से कौन सा विभाग आपकी प्राथमिकता में है ?

गोविंद : मेरे लिए तीनों ही विभाग महत्त्वपूर्ण हैं। मगर वन विभाग प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखा गया है। क्योंकि यह सीधे लोकहित से जुड़ा है। थोड़ा और इंतजार करिए हर महकमे की रंगत बदलती हुई मिलेगी।

दिहि : सरकार बनने के बाद एचआरटीसी के कई नए सब-डिपो खुलने की घोषणा हुई है। कई बार लगता नहीं कि कई जगह तो निगम ने अनावश्यक ही डिपो खोल दिए हैं, क्या कुछ को बंद करने की भी योजना है ?

गोविंद : हम कोई सब-डिपो बंद नहीं करेंगे। जहां आवश्यकता होगी, वहां खोले भी जाएंगे।  लोगों की अपेक्षा के अनुरूप कई ऐलान भी किए गए हैं।

दिहि :  कहां-कहां नए बस स्टैंड बनाना आपकी प्राथमिकता है। क्या आप भी बीओटी को इस क्षेत्र में प्राथमिकता देंगे?

गोविंद : जरूरत के मुताबिक बस स्टैंड भी खोले जाएंगे। बीओटी के साथ-साथ अन्य मॉडल भी अपनाए जा सकते हैं।

दिहि : पूर्व कांग्रेस सरकार और वर्तमान भाजपा सरकार की परिवहन नीति में क्या आधारभूत अंतर होगा ?

गोविंद : परिवहन नीति बदलने जा रहे हैं। इसमें सभी हितधारकों का ख्याल रखा जाएगा।

दिहि : हिमाचली युवा को किस तरह से उत्साहित और प्रोत्साहित करेंगे। कौन सी नई नीतियां आप युवाओं के लिए लाने वाले हैं ?

गोविंद :  युवा नीति को नए सिरे से तैयार किया जाएगा। यह संतुलित होगी, जिसमें कई नए कदम उठाए जाने की तैयारी है।

दिहि : युवाओं से संबंधित गतिविधियों को किस दिशा में पहुंचाएंगे? हिमाचली युवा के लिए आपका संदेश क्या है ?

गोविंद :  खेल, साहसिक खेलों के साथ-साथ स्वरोजगार के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हिमाचल में इसकी अपार संभावनाएं हैं। इस दिशा में कारगर कदम उठाए जा रहे हैं।

दिहि : प्रदेश में कितने और कहां-कहां नए यूथ व स्पोर्ट्स होस्टल देखने को मिल सकते हैं ?

गोविंद : इंतजार करिए हिमाचल आगे बढ़ता हुआ ही मिलेगा।

दिहि : साहसिक खेलों व गतिविधियों के दौरान मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इस पर कैसे रोक लगाएंगे?

गोविंद : हिमाचल में पहली बार साहसिक खेलों के लिए नियम बनाए जा रहे हैं।  18 वर्षों के बाद यह कार्य होगा। पहले वर्ष 2002 में यह किया गया था। मगर वे इतने कारगर नहीं थे। अब मौजूदा अपेक्षाओं के अनुरूप यह कार्रवाई पूरी कर ली गई है। जल्द मंत्रिमंडल में इसे पेश कर कार्यान्वित करने का प्रयास होगा। मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान को और मजबूत बनाया जाएगा, ताकि साहसिक खेलों को बढ़ावा देने के साथ-साथ यह पूरा कार्य नियमबद्ध हो सके।

दिहि : क्रिकेट के क्षेत्र में तो प्रदेश में बहुत विकास हुआ, कुछ अच्छे स्टेडियम बने, पर बाकी खेलें नजरअंदाज हैं? इन्हें आप किस तरह मुख्य धारा में लाएंगे?

गोविंद : प्रदेश में सभी तरह के खेलों को बढ़ावा दिया जाएगा। प्रदेश के गांवों में प्रतिभाएं बसती हैं। उन्हें आगे लाने के लिए हिमाचली खेलों के साथ-साथ भारतीय खेलों को ही क्रिकेट की तर्ज पर विकसित किया जाएगा।

दिहि : बढ़ते अवैध कटान व वन भूमि पर कब्जों ने हडक़ंप मचाया हुआ है, सरकार इस पर किस तरह से लगाम लगाएगी ?

गोविंद :  अवैध कटान व अवैध गतिविधियों के खिलाफ पूरा विभाग सक्रिय कर दिया गया है। यही वजह है कि शिमला से लेकर ऊना तक माफिया में हड़कंप मचा है। पूर्व सरकार के संरक्षण में यह तमाम कार्य चलता रहा। अब ऐसे अवैध धंधाधारकों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।

दिहि  : स्पोर्ट्स वेलफेयर फंड निष्क्रिय पड़ा है, क्या करेंगे?

गोविंद : हमने स्पोर्ट्स वेलफेयर फंड का रिव्यू किया है। वर्ष 1995 के बाद इसमें कुछ नहीं किया गया। अब जल्द नए ऐलान सुनने को मिलेंगे, ताकि खेल व खिलाड़ी दोनों मजबूत बनाए जा सकें।

दिहि  : परशुराम अवार्ड पर प्रदेश में किंतु-परंतु होती है, वजह क्या है?

गोविंद : अब ऐसा नहीं होगा। परशुराम अवार्ड नियमित मिलेगा। आखिर खिलाडि़यों का मनोबल भी तो बढ़ाना है। हिमाचल को खेल व खिलाड़ी के जरिए नया गौरव मिल सके, इसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है।

रेस्लिंग से नई पहल

प्रदेश के खेल प्रेमियों को यहां जल्दी ही डब्ल्यूडब्ल्यूई का रोमांच मिलेगा। राज्य सरकार इन खेल प्रेमियों के लिए और प्रदेश में रेस्लिंग को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है, जिसमें ग्रेट खली उर्फ दिलीप सिंह राणा की मदद ली जा रही है। अप्रैल में इसका आयोजन  मंडी और शिमला में किया जाएगा । इस तरह का आयोजन पहली दफा यहां पर होने जा रहा है। पूर्व सरकार को भी ग्रेट खली ने इसका प्रस्ताव दिया था, लेकिन  उस सरकार ने इसपर ध्यान नहीं दिया परंतु जयराम सरकार ने खेलों को प्रोत्साहित करने के नजरिए से इसका आयोजन करने की ठानी है। नए खेल मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने इस सिलसिले में खली से बातचीत की,जिसके बाद खली ने सीएम से मुलाकात कर पूरा मसौदा दिया है।

खेल मैदान बड़ी चुनौती

प्रदेश में खेल मैदानों की कमी अकसर सामने आती है। बच्चों को खेलने के लिए मैदान नहीं हैं और उनको खेल सुविधाएं प्रदान करने के लिए मैदान होने जरूरी हैं, जो चुनौती इस सरकार के सामने भी है। प्रदेश के बड़े खेल मैदान शिमला के शिलारू, बिलासपुर, ऊना का अमतर,  धर्मशाला, नादौन, मंडी, कुल्लू, सोलन आदि क्षेत्रों में हैं परंतु इनमें संख्या केवल एक-एक ही है। इनके अलावा बड़े मैदान नहीं हैं। राजधानी शिमला की बात करें तो यहां विश्वविद्यालय और कुछ स्कूलों के अपने मैदान हैं,जबकि खेल विभाग का कोई मैदान विकसित नहीं हो सका है। आलम यह है कि बच्चे सड़कों और रिज पर खेलते हुए दिखाई देते हैं। इसके लिए भी सरकार ने जगह तलाशने की बात कही है। खेल मंत्री का मानना है कि खेल गतिविधियों और खिलाडि़यों को प्रोत्साहित करने के लिए नीति में परिवर्तन करना जरूरी है, जिसे खिलाडि़यों के माफिक बनाएंगे।

परशुराम अवार्ड की होगी शुरुआत

प्रदेश की खेल प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए सरकार ने विशेष रूप से कार्य करने की बात कही है। नए खेल मंत्री ने 100 दिन के भीतर परशुराम अवार्ड  शुरू करने को कहा है। लंबे समय से ये अवार्ड नहीं दिए जा सके थे, जिनको अब दिया जाएगा। इसके लिए सरकार खिलाडि़यों का चयन कर रही है। इसके साथ खेल मंत्री ने भी सुनिश्चित बनाने को कहा है कि खिलाडि़यों को आगे लाया जाएगा न  कि पीछे धकेलेंगे। उन्होंने साफ किया था कि अब तक अच्छा करने वाले खिलाडि़यों को आगे लाने की कोशिशें नहीं हुई हैं परंतु भविष्य में ऐसा नहीं होगा। 100 दिन के भीतर प्रदेश में युवा नीति में बदलाव करने के लिए कहा गया है  और इसके साथ यूथ बोर्ड को भी बदला जाएगा।

खेलो इंडिया से निखरेंगी प्रतिभाएं

अभी तक वर्तमान सरकार ने खेल ढांचे को बदलने की कवायद ऊपरी स्तर पर शुरू की है, जिसमें निचले स्तर पर कोई काम फिलहाल नहीं हो सका है। माना जा रहा है कि सरकार के आगामी वित्त वर्ष के बजट के बाद ही खेल गतिविधियों का नया कैलेंडर जारी होगा । राजीव गांधी खेल योजना का नाम बदला गया है, जिसके बाद अब खेलो इंडिया नाम से हिमाचल में भी योजना शुरू कर दी गई है। ग्रामीण स्तर पर खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए इसका आगाज होगा।

बांकेतुओं पर कसेगा शिकंजा

जयराम सरकार को वन विभाग के तहत  दो बड़ी कामयाबियां शुरुआत में ही हासिल हो गईं। इससे यह भी साफ हो गया कि प्रदेश में वन काटु बड़े पैमाने पर मौजूद हैं और आला अधिकारियों के साथ नेताओं की भी संलिप्तता वन कटान के मामलों में रहती है। कोटी रेंज में जहां 400 से ज्यादा पेड़ों का अवैध रूप से कटान सामने आया है,वहीं चौपाल क्षेत्र में सिडारवुड ऑयल का मामला प्रकाश में आया। इन मामलों ने वन विभाग और वर्तमान सरकार को झकझोरकर रख दिया है। प्रदेश में अवैध वन कटान के मामले पूर्व सरकार के  समय में भी सामने आते रहे हैं,लेकिन उन मामलों में भी कोई पकड़ा नहीं जा सका। ऐसे में अब नए वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर के लिए सबसे अहम महकमा वन विभाग है, जिसमें वनों को  बचाने की बड़ी चुनौती है। कोटी रेंज के मामले में जांच का काम चल रहा है जिसमें अभी एक गॉर्ड पर गाज गिरी ,लेकिन इसमें आला अधिकारियों व नेताओं की संलिप्तता सामने आई है, जिसकी जांच चल रही है। इन पर क्या कार्रवाई होगी और कौन-कौन लोग इसमें शामिल हैं उनका पर्दाफाश यह सरकार करेगी या नहीं इसपर सभी की नजरें टिकी हैं। वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने कहा है कि वन विभाग के प्रधान मुख्य अरण्यपाल  से लेकर निचले स्तर के अधिकारी व कर्मचारी तक को अब जंगलों में उतरना होगा, जो लोग अभी तक कुर्सी पर बैठकर काम कर रहे हैं, उनको फील्ड में जाना होगा इसे 100 दिन में सुनिश्चित बनाया जाएगा। वन विभाग के लिए 100 दिन के एजेंडे में सबसे प्रमुख काम वन माफिया को खदेड़ना है, जिसके बाद प्रदेश की हरियाली बढ़ाने के लिए साल भर वन महोत्सव जैसा अभियान चलाना है। केवल पौधे रोपने ही नहीं बल्कि उनका सरवाइवल करना अहम है और इसे सुनिश्चित बनाने के लिए काम किया जाना है। सभी रेंज अफसरों  को   निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में ऐसा सर्वे करेंगे, जिसमें पता चले कि वहां पर कौन-कौन सी प्रजातियों के पौधे अधिक पनप सकते हैं। इसकी पूरी रिपोर्ट मांगी गई है। अप्रैल से मई महीने के बीच यह ब्यौरा सामने आने के बाद मई महीने में पौधारोपण मुहिम चलाई जाएगी और साल भर ये अभियान चलेगा, जिसमें पौधों के संरक्षण पर जोर दिया जाएगा।राज्य में वन काटुओं की धरपकड़ के लिए विशेष निर्देश दिए गए हैं। विभाग ने टीमें बनाई हैं जो विशेष रूप से इन पर नजर रख रही हैं। बताया जाता है कि संवदेनशील क्षेत्रों में जंगलों की रैकी का काम भी चल रहा है। वहीं वन विभाग में वनों को आग से बचाने के लिए भी वर्तमान सरकार विशेष रूप से प्रयास करेगी। इसके लिए भी वन अधिकारियों को फुलप्रूफ प्लानिंग के लिए कहा गया है। वैसे पूर्व सरकार ने भी नीति बनाई है, लेकिन कागजों में ही काम होते रहे हैं। औषधीयों पौधों को बचाने के लिए भी वन विभाग में विशेष नीति बनाने के लिए कहा गया है। पूर्व सरकार की नीति में संशोधन करके औषधीय पौधों को बढ़ावा देने के लिए भी काम किया जाएगा।

बंदरों की समस्या का चैलेंज

बंदरों की समस्या का मुद्दा वन मंत्री अपने विधायक रहते भी उठाते रहे हैं। इनसे निजात दिलाने के लिए उन्होंने कई दफा मुद्दा उठाया और अब गेंद उनके पाले में हैं। हालांकि सरकार ने अभी तक इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठाया है, जिसके लिए अभी नीतियों और नियमों को ही देखा जा रहा है। मगर बजट में सरकार इस दिशा में कोई कारगर कदम उठाने की सोच सकती है। पहले भी इस संदर्भ में घोषणाएं होती रही हैं,अब देखना यह है कि नई सरकार बंदरों से निजात के लिए क्या युक्ति सुझाती है। अभी केंद्र सरकार ने 37 पंचायतों में बंदरों को वर्मिन घोषित किया गया है।


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