5000 करोड़ में राम मंदिर

By: Feb 17th, 2018 12:04 am

अयोध्या के राम मंदिर के संदर्भ में अमरनाथ मिश्रा कौन हैं? क्या वह प्रधानमंत्री मोदी, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के परिचित हैं और उनसे मिलते-बात करते रहते हैं? राम मंदिर पर कथित सौदेबाजी के लिए उन्हें किसने अधिकृत किया था? अमरनाथ ने मौलाना सलमान नदवी पर 5000 करोड़ रुपए, 200 एकड़ जमीन और राज्यसभा की सदस्यता की मांग करने के गंभीर आरोप लगाए हैं, लेकिन मौलाना ने पलटकर इनका खंडन किया है। मौलाना का दावा है कि उन्हें दुबई और कुवैत तक नहीं खरीद सके, अमरनाथ की क्या औकात है? हम अमन-चैन, भाईचारे के लिए  राम मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं। भारत जैसे लोकतंत्र में ऐसे बेहूदा आरोप चस्पां किए जाना आम बात है। हम अपनी कोशिशों में लगे रहेंगे। अमरनाथ मिश्रा और मौलाना नदवी की मुलाकात पांच फरवरी को लखनऊ के नदवा कालेज में हुई। मिश्रा का कहना है कि मुलाकात के दौरान मौलाना ने उनसे राम मंदिर निर्माण और मस्जिद के संबंध में प्रस्ताव मांगा था। यहीं सवाल पैदा होता है कि जब घूस जैसा अपराध पांच फरवरी को सामने आ चुका था, तो अमरनाथ ने सात फरवरी को मौलाना नदवी को अपना प्रस्ताव क्यों दिया? उन्हें तुरंत पुलिस से संपर्क करना चाहिए था। क्या उन 5000 करोड़ रुपए में अमरनाथ की भी हिस्सेदारी थी? 5000 करोड़ रुपए के बंदोबस्त को लेकर अमरनाथ ने भाजपा, आरएसएस और विहिप के नाम क्यों लिए? क्या घूस के भुगतान पर इन संगठनों की अमरनाथ के साथ सहमति हो चुकी थी? क्या नवंबर महीने में उन्होंने हिंदू संगठनों के नेताओं को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से मिलाया था और उनकी मदद करने का आग्रह किया था, ताकि वे सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का केस गंभीरता से लड़ सकें? श्रीश्री रविशंकर और मौलाना नदवी के बीच चार मुलाकातें हो चुकी हैं और किसी भी पक्ष ने पैसे का सवाल नहीं उठाया है। ऐसा श्रीश्री के प्रवक्ता गौतम का कहना है। तो श्रीश्री के पूर्व सहयोगी रहे अमरनाथ मिश्रा ने अचानक आरोप क्यों उछाल दिए कि मौलाना 5000 करोड़ रुपए, जमीन और सांसदी के एवज में ‘रामभक्त’ बने हैं? सवाल यह है कि क्या राम मंदिर का सौदा 5000 करोड़ रुपए में किया जा सकता है? अमरनाथ ने मुसलमानों के बारे में कुछ नहीं बोला कि अयोध्या विवाद पर उस पक्ष को कैसे मैनेज किया जाएगा ! अमरनाथ ने शंकराचार्य से भी मुलाकात की थी। सवाल यह भी है कि अयोध्या विवाद के संदर्भ में आज तक अमरनाथ का न तो उल्लेख हुआ और न ही वह इस केस में पक्षकार बने हैं। अलबत्ता उन्हें राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास अयोध्या का महासचिव कहा जाता रहा है। अमरनाथ को ‘समझौता वार्ता प्रभारी’ भी कहते हैं, लिहाजा वह बीते तीन दशकों में विभिन्न धर्मगुरुओं से मुलाकात करते रहे हैं, लेकिन ऐसा ‘सौदेबाज’ का रूप पहली बार सामने आया है। वह श्रीश्री के भी सहयोगी रहे हैं, इस बारे में अलग-अलग मान्यताएं हैं। बहरहाल यह नाम अचानक कहां से प्रकट हो गया, जिसके साथ 5000 करोड़ रुपए का कथित सौदा करने की बात चली? राम मंदिर के लिए मौलाना नदवी ने जिस फार्मूले की बात श्रीश्री से की थी, उसके पीछे सौहार्द, भाईचारा, अमन था या यह सौदेबाजी काम करेगी? अयोध्या और उसके आसपास कहीं भी 200 एकड़ जमीन उपलब्ध नहीं है, तो इतनी जमीन कौन और कहां मुहैया कराएगा? देश के प्रधान न्यायाधीश रहे जस्टिस केहर सिंह ने अदालत से बाहर आपसी सहमति का प्रस्ताव दिया था, ताकि यह मामला संयम और सौहार्द से निपट जाए, लेकिन बातचीत करने वाले ‘सौदेबाजी’ पर उतर आए हैं, लिहाजा भगवान राम का नाम ही ‘अपवित्र’ होता है। मुसलमान जमीन का एक इंच हिस्सा भी राम मंदिर के नाम देने को तैयार नहीं हैं। ऐसी रपटें मोदी सरकार और गृह मंत्रालय को उपलब्ध हुई हैं कि सुप्रीम कोर्ट का कुछ भी फैसला हो, लेकिन बाद में हिंसक स्थितियां बनना लगभग तय है। दंगों की नौबत भी आ सकती है। यहां तक कि निर्मोही अखाड़ा और हनुमान गढ़ी के कथित संत भी ‘अखाड़े’ में कूद सकते हैं, यदि उन्हें फैसला अपने पक्ष में नहीं लगा। आने वाले दिन बेहद नाजुक हो सकते हैं। चूंकि इस सौदेबाजी में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम भी उछले हैं, लिहाजा उन्हें तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए या अमरनाथ का खंडन करना चाहिए, लेकिन इन आरोपों की गंभीर जांच तुरंत बिठाई जानी चाहिए, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।


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