अनंत ज्ञान व विज्ञान के भंडार

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

यजुर्वेद मंत्र 17/2 में एक, दस और सौ आदि अनंत संख्याओं  का ज्ञान देता है, जिसमें शून्य का ज्ञान भी है। इसी प्रकार अथर्ववेद में चिकित्सा विज्ञान आदि का भरपूर ज्ञान दिया है। सामवेद मंत्र 377 में कहा कि परमेश्वर की असंख्य भूमि (लोक) एक साथ घूम रही है आपस में टकराती नहीं है…

गतांक से आगे…

ऋग्वेद मंत्र 1/32/1-2 में सूर्य द्वारा वर्षा होना सिद्ध है। यही आधुनिक विज्ञान की भी खोज है। ऋग्वेद मंत्र 8/77/4 में कहा कि सूर्य अपनी किरणों से सरोवर आदि का पानी भाप बनाकर ऊपर ले जाता है और वर्षा ऋतु में पुनः पृथ्वी पर बरसाता है। सूर्य बादलों में स्थित पानी को अपनी तीक्षण किरणों द्वारा बरसाता है और नदी-नाले व समुद्र आदि को पानी से भरपूर कर देता है। ऋग्वेद मंत्र 10/51/5,8 में जल से बिजली उत्पादन का ज्ञान दिया है, जिससे मनुष्य को अनेक लाभ हैं। ऋग्वेद मंत्र 8/5/8 में ऐसा शीघ्रगामी यान बनाने का संकेत है कि जिसमें बैठकर तीन दिन और तीन रात्रि लगातार यात्रा की जा सकती है।

ऋग्वेद मंत्र 1/28/2 में कहा कि मनुष्यों को योग्य है कि जैसे दोनों जांघों की सहायता से मार्ग का चलना-चलाना सिद्ध होता है वैसे ही एक तो पत्थर की शिला नीचे रखें और दूसरा ऊपर से पीसने के लिए बट्टा जिसको हाथ में लेकर पदार्थ पीसे जाएं, इससे औषधि आदि पदार्थों को पीसकर यथावत भक्ष्य आदि पदार्थों को सिद्ध करके खावें यह भी दूसरा साधन ओखली मूसल के समान बनाना चाहिए। यह वैज्ञानिक प्रचलन घर-घर में हैं। ऋग्वेद मंत्र 1/15/1 में कहा समय का विभाग करने वाला सूर्य वसंत आदि पदार्थों के रस को पीता है। यजुर्वेद मंत्र 18/24 में एक से लेकर अनंत संख्याओं का ज्ञान दिया जाता है, जिसे शून्य का ज्ञान भी है तथा अगले मंत्र में संख्या चार का पहाड़ा दिया गया है। यजुर्वेद मंत्र 17/2 में एक, दस और सौ आदि अनंत संख्याओं  का ज्ञान देता है, जिसमें शून्य का ज्ञान भी है। इसी प्रकार अथर्ववेद में चिकित्सा विज्ञान आदि का भरपूर ज्ञान दिया है। सामवेद मंत्र 377 में कहा कि परमेश्वर की असंख्य भूमि (लोक) एक साथ घूम रही हैं आपस में टकराती नहीं है।  भाव यह है कि अंतरिक्ष में ग्रह घूम रहे हैं, परंतु आपस में टकराते नहीं हैं। भाव यह है कि तिनके से लगाकर ब्रह्म तक का संपूर्ण ज्ञान व विज्ञान का भंडार चारों वेदों में है।  यहां लेख बड़ा होने के भय से ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के समान ही विज्ञान प्रस्तुत किया है। हमने वेदों का अध्ययन छोड़ दिया इसलिए हम विद्वान नहीं बन पाए।


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