अपनों की तलाश में भारत ने खुदवाया पहाड़

By: Mar 21st, 2018 12:13 am

आईएस आतंकियों ने चार साल पहले मोसूल से अगवा कर मौत के घाट उतारे थे भारतीय, बादुश गांव के पास दफनाए थे शव

नई दिल्ली— इराकी अधिकारियों को 39 भारतीय कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के शव मिल चुके हैं, जिन्हें खूंखार आतंकी संगठन आईएस ने उत्तरी इराक के मोसूल शहर से चार साल पहले अगवा करके मार डाला था। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंगलवार को संसद में दिए अपने बयान में इस बात की तस्दीक की। भारतीयों के शवों को मोसूल के उत्तर-पश्चिम में बादुश नाम के गांव के नजदीक दफनाया गया था। पिछले साल जुलाई में इराकी सेना ने मोसूल को आईएस के कब्जे से मुक्त कराया था। इराकी अधिकारी नाजिहा अब्दुल-अमीर अल-शिमारी ने मंगलवार को कहा कि यह आतंकी दाएश गिरोह की तरफ से किया गया एक जघन्य अपराध था। बता दें कि आईएस का अरबी नाम दाएश है। इस्लामिक स्टेट के साथ लड़ाई में मारे गए लोगों से जुड़े मुद्दों को देखने वाले इराक के सरकारी निकाय के प्रमुख नाजिहा ने कहा कि ये शव हमारे मित्र देश भारत के नागरिकों के हैं। उनकी गरिमा की रक्षा होनी चाहिए थी, लेकिन बुरी ताकतें इस्लाम के सिद्धांतों को बदनाम करना चाहती थीं। अगवा हुए वर्करों में ज्यादातर उत्तर भारत के थे और मोसूल के नजदीक एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम कर रहे थे, जब आतंकियों ने शहर पर कब्जा किया, उसी दौरान इन वर्करों को अगवा कर लिया। रिश्तेदारों के मुताबिक मोसूल पर आईएस के कब्जे के पांच दिन बाद तक कुछ वर्करों के उनके पास फोन आए, जिनमें वे मदद की गुहार लगा रहे थे। बता दें कि इराक में अभी 10,000 भारतीय काम करते हैं। इराकी अधिकारियों ने टीले के नीचे शवों के दफनाए जाने की पुष्टि के लिए रेडार का इस्तेमाल किया। शवों के दफनाए जाने की पुष्टि होने के बाद वहां खुदाई की गई और शवों को निकाला गया। इसके बाद भारतीय अधिकारियों ने लापता मजदूरों के रिश्तेदारों के डीएनए सैंपल्स को इराक भेजा। पिछले साल जुलाई में स्वराज ने संसद में जोर देकर कहा था कि वह बिना पुख्ता सबूत के 39 भारतीयों को मृत घोषित नहीं करेंगी। सुषमा स्वराज ने 2017 में लोकसभा में दिए अपने बयान में कहा था कि बिना किसी पुख्ता सबूत के किसी व्यक्ति को मृत घोषित करना पाप है। मैं यह पाप नहीं करूंगी। मारे गए 39 भारतीयों में ज्यादातर वर्कर पंजाब के थे और वे मोसुल के नजदीक नौकरी कर रहे थे।

ऐसे हुई शवों की पहचान

सरकार ने विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह को जुलाई, 2017 में इराक के इरबिल भेजा था, ताकि 39 लापता भारतीयों के बारे में पुख्ता जानकारी मिल सके। भारतीय एजेंसियों ने इराक के मोसूल, बादुश, तलाफार में तलाश शुरू की। इस टीम में वीके सिंह के अलावा इराक में भारत के राजदूत प्रदीप राजपुरोहित और इराक सरकार के एक अफसर शामिल थे, जब सर्च टीम मोसूल के पास मौजूद एक गांव बदुश पहुंची तो वहां एक शख्स ने बताया कि गांव के करीब एक पहाड़ पर एक साथ कई लोगों को दफनाया गया था। इसके बाद भारत ने इराक से मदद मांगी। इराकी एडमिनिस्ट्रेशन ने डीप पेनिट्रेशन राडार से पता लगाया कि पहाड़ में कई लाशें दफन हैं। भारत की गुजारिश पर पूरा पहाड़ खुदवाया गया। वहां से अवशेषों में लंबे बाल, कड़ा, आईडी कार्ड्स और गैर-इराकी जूते मिले। इन अवशेषों को बगदाद भेजा गया। ये अवशेष भी 39 लाशों के ही थे। इसके बाद लापता भारतीयों के परिवार के लोगों के डीएनए सैंपल जुटाए गए। पंजाब, हिमाचल, पश्चिम बंगाल और बिहार सरकार ने ये सैंपल जुटाए। ये डीएनए सैंपल इराक भेजे गए। वहां इराकी प्रशासन, मार्टियर्स फाउंडेशन और रेडक्रॉस की मदद से मारे गए लोगों के डाटाबेस से डीएनए सैंपल्स का मिलान शुरू हुआ। डीएनए सैंपल्स की मैचिंग के बाद पुष्टि हुई कि सभी भारतीय वहां मारे जा चुके हैं।

मैंने तो पहले ही बताई थी सच्चाई

इराक में करीब चार साल पहले अगवा हुए 39 भारतीय नागरिकों के मारे जाने का सबसे पहले खुलासा करने वाले हरजीत मसीह ने इस बारे में सुषमा स्वराज के बयान के बाद कहा कि उन्होंने तो इस बारे में पहले ही सच बयां कर दिया था। आईएस के चंगुल से छूटे मसीह ने ही सबसे पहले कहा था कि इराक के मोसूल से अगवा किए गए 40 लोगों में से केवल वह ही बच निकलने में कामयाब रहे, जबकि 39 अन्य नागरिकों को आईएस आतंकवादियों ने मार दिया।

कब, क्या हुआ

 जून, 2014 में आईएस ने 39 भारतीयों को किडनैप किया था। बाद में इन्हें बादुश ले जाया गया।

 जून, 2017 में मोसूल को आईएस आतंकियों से मुक्त कराया गया।

 जुलाई, 2017 में वीके सिंह उनकी जानकारी जुटाने इराक गए।

 अक्तूबर, 2017 में लापता भारतीयों के परिवारों के डीएनए सैंपल लिए गए।

 दिसंबर, 2017 में डीएनए सैंपल्स की इराक में मैचिंग शुरू हुई।

 मार्च, 2018 में डीएनए मैच हुए और भारतीयों के मारे जाने की पुष्टि हुई।


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