अबकी बार, राहुल के वार

By: Mar 20th, 2018 12:05 am

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर अपने पहले संबोधन में राहुल गांधी ने ऐसी आक्रामकता दिखाई, प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस पर निजी प्रहार किए कि पार्टी के छुटभैये प्रवक्ता अभी से लोकसभा  में 272 सीटों, यानी बहुमत का दावा करने लगे हैं। बेशक आज राहुल गांधी के संबोधन और आह्वान में एक नयापन था, कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से जुड़ाव की कोशिश थी, गलतियों के एहसास थे और 2019 के चुनाव के लिए कमर कसने की हुंकार थी। सिर्फ इसी संबोधन से कांग्रेस के दिन फिर जाएंगे, देश में कांग्रेस  की लहर दौड़ने लगेगी, कांग्रेस की परंपरागत भितरघात समाप्त हो जाएगी और वाकई प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और संघ पराजित हो जाएंगे, ऐसा संभव ही नहीं है। राहुल राजनीतिक तौर पर इतने करिश्माई नहीं हैं, लेकिन उनके संबोधन ने राजनीति और शिष्टाचार की मर्यादाएं बार-बार लांघी हैं। मसलन-प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे की रंगत बदल गई है। मोदी का सूट भी बदल गया है। अब वह सूट नहीं पहनते। सूट गायब हो गए हैं। मोदी से देश का भरोसा टूट गया है। भाजपा और प्रधानमंत्री कौरवों की तरह सत्ता के नशे में चूर हैं और कांग्रेस पांडवों की तरह सीमित सेना वाली और विनम्र है। राहुल ने कहा कि कौरव ताकतवर और अहंकारी थे, पर पांडव सच्चाई के लिए लड़े थे। इसी तरह भाजपा सत्ता के लिए लड़ रही है और कांग्रेस पांडवों की तरह सच्चाई के लिए लड़ रही है। वाह! क्या दलील और तुलना है? यह तुलना ही हास्यास्पद है और यह एक पराजित व्यक्ति की बयानबाजी लगती है। प्रधानमंत्री मोदी  अपने आप को ‘भगवान का अवतार’ मानते हैं। भाजपा अध्यक्ष हत्या के आरोपी हैं। राहुल ने आरएसएस पर भी कई हमले किए। सवाल है कि एक लोकसभा चुनाव में इन्हीं मुद्दों पर वोट मिलते हैं या कोई राष्ट्रीय कार्यक्रम पेश करना जरूरी है? देश के प्रधानमंत्री के प्रति कोई मर्यादा, शालीनता, शिष्टाचार होना चाहिए या उसे एक ‘राष्ट्रीय खलनायक’ के तौर पर चित्रित किया जाए? बेशक राहुल गांधी ने कई और मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री और संघ पर प्रहार किए, लेकिन उनके शब्दों में घृणा, नफरत, गाली-गलौज और सिर्फ कोसने का ही भाव था। क्या मोदी, संघ, भाजपा की निंदा मात्र से ही वोट मिलेंगे? राहुल गांधी को कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को एक दृष्टि, भविष्य की रूपरेखा, सोच, राजनीतिक संघर्ष के पायदान आदि का खुलासा करना चाहिए था। सवाल यह भी है कि कांग्रेस सरकार द्वारा 70,000 करोड़ रुपए के कर्ज माफ करने के बावजूद किसान आज भूखा, कर्जदार, गरीब क्यों है? आत्महत्या करने पर विवश क्यों है? इसी तरह देश में बेरोजगारी भी कांग्रेस की ही विरासत है, लेकिन मोदी सरकार ने जो प्रयास किए हैं, उन्हें राहुल गांधी और कांग्रेस मानने को ही तैयार नहीं हैं। क्या कांग्रेस अध्यक्ष और प्रवक्ताओं को तथ्यों की जानकारी भी है या यूं ही जहर उगलते रहते हैं? हमने बीते कल के संपादकीय में दोनों पक्षों की तुलनात्मक व्याख्या की थी, लेकिन राहुल को लगता है कि जोर-जोर से बोलने और कोसने की भाषा का इस्तेमाल करके ही कांग्रेस की चुनावी वापसी हो सकती है, तो ऐसी रणनीति उन्हें और कांग्रेस को ही मुबारक…! बहरहाल कांग्रेस महाधिवेशन के प्रतिनिधियों ने राहुल गांधी की ‘अध्यक्षी’ पर मुहर लगा दी। कार्यसमिति पहले भी मनोनीत की जाती थी और अब भी कांग्रेस अध्यक्ष को अधिकृत किया गया है। राहुल गांधी ने पार्टी के पुराने और वरिष्ठ नेताओं तथा युवा पीढ़ी के बीच की ‘दीवार’ को ढहाने का बीड़ा उठाया है। देखते हैं कि कांग्रेस के भीतर ऐसा ऐतिहासिक परिवर्तन होता है या नहीं! ये तमाम कांग्रेस की भीतरी प्राथमिकताएं हैं, लेकिन राहुल के सामने अहम चुनौतियां ये हैं कि वह कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में कांग्रेस को चुनाव जिताएं। इनमें से तीन महत्त्वपूर्ण राज्यों में भाजपा की सत्ता है। यदि कांग्रेस इन राज्यों में वैकल्पिक सत्ता स्थापित करने में कामयाब रहती है, तो 2019 की संभावनाओं की कुछ उम्मीद की जा सकती है। फिलहाल तो चुनाव हारने और जमानत जब्त कराने की आदी हो चुकी है कांग्रेस। राहुल गांधी को कांग्रेस के ‘अच्छे दिन’ लाकर खुद का नेतृत्व साबित करना होगा। हारे हुए राज्यों में कांग्रेस की वापसी तय करानी होगी। विपक्ष के सहयोगी दलों में अपनी और पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ानी होगी। सबसे अहम यह है कि जिस मोदी को कोसने की राजनीति राहुल गांधी कर रहे हैं, उसी मोदी के मुकाबले खुद को मजबूत दिखाना होगा। उसके बाद 2019 का सपना देखना चाहिए। चीखा-चिल्ली से ही चुनाव नहीं जीते जा सकते।


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