आधी आबादी की आशाएं

By: Mar 5th, 2018 12:07 am

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला  से हैं

देश की आधी आबादी होने के बावजूद अगर महिलाओं की स्थिति का आकलन किया जाए, तो बजट में देश के कुल संसाधनों में उनकी हिस्सेदारी बहुत कम है। केंद्रीय बजट को ही देखें तो सार्वजनिक क्षेत्रों में महिलाओं के लिए खर्च की जाने वाली बजट की कुल राशि का 5 से 6 प्रतिशत ही रहती है। जबकि मनुष्य समाज के सृजन से लेकर पालन पोषण तक महिलाओं की भूमिका पुरुषों से आिधक है, लेकिन  परिवार से लेकर नौकरी, समाज, राजनीति, धर्म-कर्म और प्रशासन आदि सभी क्षेत्रों में उन्हें अधिकार देने की बात आती है तो उन्हें हमेशा द्वितीय श्रेणी में ही रखा गया है।

पुरुषों को उत्पादन कर्ता के रूप में देखा जाता है और उन्हें अधिक पारिश्रमिक वाले काम मिलते हैं। पुरुष निर्णयकर्ता और कमाऊ व स्त्री उपभोक्ता तथा घर संभालने वाली मान ली गई है। समाज में महिलाओं की भूमिका आज तक सीमित ही है। हालांकि नैसर्गिक रूप से स्त्री अधिक सहनशील, संवेदनशील, सृजनात्मक और धैर्यवान है, मगर शारीरिक बल के तर्क ने उसे पुरुष प्रधान समाज में अबला बना दिया है। कहने को महिला सशक्तिकरण का बहुत हो-हल्ला किया जाता है मगर वास्तविक स्थिति अभी इस सशक्तिकरण से कोसों दूर है। इस तरह से महिला सशक्तिकरण की दिशा में चाहे कितने भी कदम उठाए जाएं, लेकिन जेंडर बजट के पुख्ता न होने से यह कदम प्रभावी सिद्ध नहीं हो सकते। जेंडर बजट की बातें पिछले दो तीन दशकों से चल रही हैं, लेकिन देश में पूर्ण रूप से इसे अभी तक नहीं अपनाया गया है। जेंडर बजटिंग के माध्यम से सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि बजट महिलाओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो, कुछ योजनाओं में सरकार द्वारा जेंडर बजटिंग आरंभ कर दी गई है, मगर यह ध्यान  देने योग्य बात है कि क्या इस बजटिंग से प्रत्येक महिला को लाभ मिला भी है या नहीं।

जेंडर बजटिंग पर बात करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि जेंडर व लिंग में भेद क्या है? लिंग व जेंडर में स्वाभाविक तौर पर प्राकृतिक व सामाजिक भेद है। ‘लिंग’ शब्द मनुष्य जाति के नर व मादा के जैविक भेद का सूचक है, जो संभवतः समय व स्थान के आधार पर परिवर्तनशील नहीं होता जबकि ‘जेंडर’ नर व मादा के बीच सामाजिक व सांस्कृति स्तर पर निर्धारित भूमिकाएं, अधिकार, अपेक्षाएं व संबंधों को इंगित करता है, जो समय व स्थान के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। सवाल यह भी उठता है कि ‘जेंडर बजटिंग क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी? जेंडर बजट का यह तात्पर्य नहीं कि महिलाओं के लिए अलग से बजट पेश किया जाए, बल्कि मुख्य बजट में ही ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि महिलाओं को इस सामाजिक लैंगिक भेदभाव को दूर करने में मदद मिल सके। वार्षिक बजट में महिलाओं और बालिकाओं के विकास के लिए आबंटित बजट के प्रावधान और खर्च पर समीक्षा करना जेंडर बजटिंग कहलाता है। जेंडर बजट का अर्थ न केवल महिलाओं के लिए बजट आबटंन में बृद्धि करना है, अपितु इसका संबंध महिलाओं के लिए प्राथमिकी करण से भी है।

जेंडर आधारित बजट महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग बजट बनाने की बात नहीं करता है, अपितु सरकार में मुख्यधारा के बजट के आधार पर महिलाओं और पुरुषों पर पड़ने वाले प्रभावों को अलग-अलग दिखाने का प्रयास है। यदि हम भारत में लिंग आधारित सामाजिक भेदभाव की बात करते हैं, तो यह घर से ही आरंभ हो जाता है। लड़कियों के जन्म से लेकर उठने-बैठने, हंसने-बोलने, पहनने, पढ़ाई-लिखाई व खान-पान से लेकर यह अंतर आगे समाज में दिखता है। कंस्ट्रक्शन साइट वर्क में काम पर अधिकतर महिला मजदूर देखने को मिलती हैं, मगर बोर्ड ‘मेन एट वर्क’ का ही होता है। खेतीबाड़ी का 80 प्रतिशत काम महिलाओं द्वारा किया जाता है मगर संबोधन में किसान भाइयो! सुनने को मिलेगा! जज अगर महिला हो तो भी ‘माय लॉर्ड’! वैसे ही मुख्य उद्बोधन जैसे सरपंच, सभापति, सांसद, साहूकार, डाक्टर आदि शब्दों से स्त्रीलिंग आज तक गायब है। इस तरह की जेंडर असमानता परिवार, समाज व देश के लिए ठीक नहीं है। यह खाई विकास में बाधक है।

ऐसे में इस अमान्य लिंग भेद की खाई भरने के लिए जेंडर बजटिंग की आवश्यकता है, जो न केवल तिरस्कृत, उत्पीडि़त महिला को पोषित करे बल्कि सशक्त महिला को पुरस्कृत भी करें। वर्तमान में लगभग 70 देशों में जेंडर बजटिंग पर प्रयोग हो रहे हैं। विश्व स्तर पर महिलाओं की स्थिति सुधारने व जेंडर समानता को सुनिश्चित करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा महिलाओं के प्रति असमानता को समाप्त करने के लिए 18 दिसंबर,1979 को जेंडर बजटिंग को अपनाया गया। महिलाओं के सरोकार जैसे सड़क किनारे मुख्य स्थानों पर शौचालय व वहां सेनेटरी पैड्स की व्यवस्था होने के लिए जेंडर बजट का अंश होना जरूरी है। सभी स्कूलों में जेंडर बजटिंग के तहत शौचालय, सेनेटरी पैड्स मशीन का प्रावधान हो। प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर जिस तरह जुबडहट्टी एयरपोर्ट पर दो सेनेटरी नैपकिन मशीन लगवाई गई, उसी तरह हर सार्वजनिक स्थलों, बस स्टैंड, स्कूल, विश्वविद्यालय, कालेज, गर्ल्ज होस्टल, सिनेमा हाल, रेलवे स्टेशन आदि जगहों पर महिलाओं के लिए जेंडर बजटिंग के तहत सेनेटरी पैड्स मशीन के लिए जेंडर बजट सुनिश्चित हो।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App