उजड़ता पर्यटन सिसकते होटल

By: Mar 19th, 2018 12:05 am

प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज हिमाचल सैरगाह के रूप में उभर कर सामने आया तो यहां सैलानियों की आमद भी बढ़ने लगी। खासकर कुल्लू-मनाली, कसौली, शिमला सैलानियों की पहली पसंद बन गए । इसके चलते प्रदेश के पर्यटन को भी पंख लगे । देखते ही देखते यहां आलीशन होटल खड़े हो गए, लेकिन नियमों की अनदेखी से अवैध निर्माण बढ़ता चला गया। इस बार के दखल में जानें कि एनजीटी के आदेश के बाद पर्यटक व्यवसाय किस तरह आ गया उजड़ने के कगार पर … 

पर्यटन का हिमाचल की आर्थिकी में बड़ा योगदान है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन क्षेत्र का योगदान करीब 6.6 फीसदी है।  हर साल लाखों की तादाद में सैलानी आते हैं और इनके लिए विभिन्न जगहों पर भारी तादाद में होटलों का निर्णाण किया गया है। हिमाचल में होटलों की बात करें तो मौजूदा समय में 81,514 बिस्तरों की क्षमता के 2907 होटल यहां पंजीकृत हैं। इसके अतिरिक्त राज्य में होम स्टे योजना के तहत 7044 बिस्तरों वाली लगभग 1220 इकाइयां भी पंजीकृत हैं। राज्य में शिमला, कसौली, धर्मशाला, डलहौजी, कुल्लू, मनाली बड़े पर्यटन स्थलों के तौर पर उभरे हैं। इनके अलावा कई अन्य छोटे स्थल भी पर्यटन के लिए उभरने लगे हैं। राज्य में हजारों लोग पर्यटन से अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। होटल चलाने वाले, टैक्सी आपरेटर, घोड़े व अन्य गतिविधियों से लोगों को रोजगार मिल रहा है, लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी के आदेशों से हिमाचल में पर्यटन को बड़ा झटका लगा है।  एनजीटी ने हिमाचल में ऐसे कई फैसले दिए हैं,जिनका सीधा असर हिमाचल के पर्यटन पर पड़ा है। एनजीटी ने रोहतांग दर्रे में जाने वाले वाहनों की संख्या को कम करने और वहां चलने वाली पर्यटन गतिविधियों को नियंत्रित करने का बड़ा फैसला सुनाया है। वहीं,एनजीटी ने अवैध भवनों या होटलों के संबंध में भी बड़ा फैसला दिया। इसके तहत ऐसे भवनों को नियमित करने के लिए भारी भरकम शुल्क का प्रावधान किया था । वहीं एनजीटी ने भवनों की मंजिलों के निर्धारण को लेकर भी अहम फैसला दिया है। एनजीटी के फैसले में कहा गया है कि अढ़ाई मंजिल से अधिक भवनों का निर्माण नहीं किया जा सकेगा। हालांकि यह फैसला शिमला के बारे में दिया गया है लेकिन इस फैसले का असर पूरे हिमाचल में होने की संभावना है। वहीं राज्य में अवैध रूप से चल रहे होटलों को बंद करने के आदेश दिए हैं।

सूत्रधारः

खुशहाल सिंह और टेकचंद वर्मा के साथ पवन कुमार शर्मा, शालिनी राय भारद्वाज,  हेमंत शर्मा व मोहर सिंह पुजारी

होटल    2907

होम स्टे 1220

हजारों की रोजी-रोटी पर संकट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 6 जुलाई,2015 को रोहतांग में व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगा दी । इसके बाद 17 अगस्त, 2015 को यहां के लिए वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इससे यहां पर्यटन कारोबार से जुड़े हजारों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया था। हालांकि बाद में एनजीटी ने सीमित संख्या में वाहनों को दर्रे तक जाने की अनुमति दे दी। एनजीटी ने पहले यहां व्यावसायिक गतिविधियों पर पूर्ण रोक लगा दी थी, हालांकि बाद में इसमें सशर्त छूट दे दी थी।

अढ़ाई मंजिला से ऊंचे भवनों को अनुमति नहीं

एनजीटी ने प्रदेश में अवैध भवन निर्माण को लेकर सख्त आदेश पारित कर रखे हैं। इसके तहत शिमला और इसके आसपास के क्षेत्रों में अढ़ाई मंजिल से ऊंचे भवन निर्माण पर भी रोक लगा दी गई है।

कारोबारियों ने भी खींचे हाथ

कारोबारियों की मानें तो अढ़ाई मंजिल तक होटल बनाने से उनको घाटे का सौदा होगा। इसके चलते कारोबारी अब नई होटल इकाइयों के निर्माण से हाथ खींच रहे हैं, हालांकि यह फैसला अभी शिमला के बारे में ही आया है, लेकिन जानकार मानते हैं कि एनजीटी के इस फैसले का असर पूरे प्रदेश पर पड़ने की संभावना है।

एनएच किनारे भी होटलों पर संकट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राष्ट्रीय राजमार्गों के तीन मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के निर्माण पर रोक लगा दी है। इससे इन राजमार्गों के आसपास कोई भी होटल या भवन नहीं बन पाएगा, वहीं पहले से बने होटलों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

नियमों के विपरीत बहुमंजिला भवन

प्रदेश में कई लोगो ने नियमों के विपरीत बहुमंजिला होटलों का निर्माण तो किया है, लेकिन इसके लिए जरूरी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के भी इंतजाम नहीं किए हैं। कुछ समय पहले एनजीटी ने कसौली में होटलों पर कार्रवाई के निर्देश दिए थे।  इसका पर्यटन गतिविधियों पर असर पड़ने की संभावना है।

वन भूमि पर बना डाले होटल

राज्य में वन विभाग के क्षेत्र पर भी अवैध रूप से दर्जनों होटल, ढाबों और रेस्तरां का निर्माण हुआ है। एनजीटी के आदेश के बाद अब प्रशासन डिमार्केशन कर सभी अवैध कब्जाधारकों पर कार्रवाई करेगा।

रिव्यू होना चाहिए फैसला

एनजीटी के फैसले की मार प्रदेश पर्यटन व्यवस्था पर पड़ी है। पहाड़ी प्रदेश के लिए एनजीटी का अढ़ाई मंजिल का फैसला तर्कसंगत नहीं है। इसलिए एनजीटी को इस फैसले को रिव्यू करना चाहिए। यह बात टूरिज्म इंडस्ट्री होटल स्टेक होर्ल्ड्स एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र सेठ ने कही। लोगों ने ऊंचे दाम पर जमीन खरीदी है। ऐसे में केवल मात्र अढ़ाई मंजिल का निर्णय जनता पर भारी पड़ रहा है। प्रदेश के कई स्थानों पर अंग्रेजों के समय में भी बहुमंजिला इमारते बनी हैं, जो आज  भी सुरक्षित हैं। इसलिए एनजीटी को उक्त फैसले को रिव्यू करना चाहिए और पहले की तरह पांच मंजिल का निर्णय ही कैरी होना चाहिए।

कसौली में 60 फीसदी घटा कारोबार

कसौली में वर्षों से अवैध रूप से निर्माण कर कारोबारी गतिविधियां कर रहे होटल कारोबारियों पर एनजीटी का डंडा किसी सदमे से कम नहीं रहा है।  काबिले गौर है कि एनजीटी की यह कार्रवाई हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम द्वारा तैयार किए जा रहे उस होटल निर्माण के चलते हुई, जिसे लेकर कसौली की सामाजिक संस्था स्पोक (सोसायटी फार प्रिवेंशन ऑफ  कसौली एंड इट्स एन्वायरनस) ने एनजीटी में शिकायत दर्ज करवाई।  संस्था ने  इस होटल निर्माण से आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण की शिकायत दर्ज करवाई।   सुनवाई के दौरान ही एनजीटी ने कसौली में चल रहे दूसरे होटलों द्वारा प्रदूषण, टीसीपी व अन्य विभागों से ली गई एनओसी की स्टेटस रिपोर्ट को भी तलब किया। इसी रिपोर्ट आधार पर होटल निर्माण में कई तरह की खामियों को देखते हुए एनजीटी ने मई 2016 में एक हाई पावर कमेटी का निर्माण करते हुए पर्यटन क्षेत्र के सभी होटलों की जांच के निर्देश दिए। निदेर्शों पर अमल के दौरान कमेटी ने 78 होटलों की रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी, जिसमें होटलों द्वारा पॉल्यूशन व टीसीपी नियमों की अवहेलना का जिक्र किया गया।  कसौली में होटलों पर एनजीटी के एक्शन के बाद कारोबार में 60 फीसदी तक की गिरावट आई है, तो दर्जनों लोगों को रोजगार से भी हाथ धोना पड़ा। इसके चलते सैलानियों ने भी अब उत्तराखंड की ओर रुख कर लिया है, जिससे कसौली के पर्यटन व्यवसाय पर विपरीत असर पड़ा है।

राहत देने के लिए सरकार की तैयारी

राज्य में सबसे बड़ा मसला भवनों या होटलों के अवैध होने का है। राज्य में कई होटलों का नक्शे के अनुरूप निर्माण नहीं किया गया है। कई होटल मालिकों ने मंजूर मंजिलों से अधिक मंजिलें अपने होटलों में बना डाली हैं। एनजीटी ने ऐसे होटलों पर कार्रवाई के आदेश दिए थे।  प्रदेश में ऐसे कई होटलों पर कार्रवाई भी की गई तथा कइयों को सील किया गया।  ऐसे होटलों में बिजली-पानी कटने से होटल मालिकों में हड़कंप मच गया था। होटलियरों ने प्रदेश सरकार के सामने यह मसला रखा था। ऐसे में राज्य सरकार ने इन होटलों के लिए एक रास्ता निकाला है। सरकार ने शिमला सहित अन्य शहरों में नगर नियोजन नियमों की अनदेखी कर निर्मित भवनों को नियिमत करने के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग नियम में संशोधन किया है। सरकार ने संशोधित नियमों को अधिसूचित कर इस बारे में लोगों से सुझाव और आपत्तियां मांगी हैं।  इससे राज्य में होटलियरों से लेकर हजारों भवन मालिकों को बड़ी राहत मिलेगी। इससे धर्मशाला, शिमला, कुल्लू-मनाली के होटल मालिकों को भी राहत मिलेगी।

शिमला में 34 होटलों की बिजली-पानी के कनेक्शन काटने के निर्देश

अवैध होटलों पर शिमला में भी प्रशासन ने कार्रवाई की है। शिमला में जिला में पर्यटन विभाग के पास करीब 480 होटल पंजीकृत हैं। इन होटलों की भी जांच की जा रही है। शिमला जिला में पर्यटन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की संयुक्त टीम ने करीब 279 होटलों की जांच की है।  बताया जा रहा है कि शिमला में ऐसे कुल 34 होटलों के बिजली-पानी के कनेक्शन काटने के आदेश संबंधित अधिकारियों द्वारा दिए गए हैं। इनमें से 28 होटलों पर प्रदूषण बोर्ड के नियमों का पालन न करने पर कार्रवाई की गई है।   वहीं एनजीटी ने शिमला में बड़े होटलों के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के निर्देश दिए थे। इसमें कहा गया था कि 25 कमरों से अधिक वाले होटलों को सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने ही होंगे।

मकलोडगंज में 151 होटल बंद 700 को बदलना पड़ा ठिकाना

पर्यटन नगरी मकलोडगंज में   हाई कोर्ट ने नियमों को पूरा न करने वाले अवैध होटलों की बिजली-पानी बंद करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट के आदेशों के चलते मकलोडगंज, भागसूनाग व धर्मकोट सहित आसपास के करीब 151 होटल बंद कर दिए थे। हाई कोर्ट ने बाकायदा यह भी निर्देश दिए थे कि जो कारोबारी नियमों को पूरा कर लेते हैं, उनकी सुविधाएं बहाल की जाएं। इसके चलते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अब तक करीब 14 होटलों की सुविधाएं बहाल करवा दी हैं। अन्य होटलियर को भी जल्द नियमों को पूरा करने के लिए कहा गया है। विभागीय नियमों को पूरा न करने वाले कारोबारियों को तो इससे नुकसान उठाना पड़ा है, साथ ही इन संस्थानों में काम करने वालों को भी रोजगार के लिए दूसरे संस्थानों में स्थान पाने को जद्दोजहद करनी पड़ी। इस प्रक्रिया से करीब सात सौ लोगों को अपना ठिकाना बदलना पड़ा। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एसडीओ वरुण ने बताया कि कारोबारियों को नियमों को पूरा करने और संबंधित दस्तावेज पूरे करने के लिए भी संबंधित सभी विभाग पूरा मार्गदर्शन कर रहे हैं। हाल ही में विभाग ने वर्कशॉप का आयोजन किया था।

सैलानियों की दिक्कतें बरकरार

राज्य के प्रमुख पर्यटक स्थल धर्मशाला मकलोडगंज में आने वाले सैलानियों को इस बार भी पुरानी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। पर्यटन सीजन की आहट शुरू हो गई है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या पार्किंग का कोई समाधान नहीं है। न ही सिटी बसों की व्यवस्था अभी तक हो पाई है। पर्यटन पुलिस लगाने को कोई खाका भी तैयार नहीं हो पाया है। हालांकि पर्यटन को बढ़ावा देने के दावे पिछले कई वर्षों से हो रहे हैं। सरकारें व अधिकारी बदल जाते हैं और व्यवस्थाएं पुराने ढर्रे पर ही चलती रहती हैं।

कसोल-मनाली पर चला डंडा

हरे-भरे देवदारों ने सुंदरता को चार चांद लगाए। यह सुंदरता जब विश्व के मानचित्र में दर्ज हुई, तो विश्व यहां आने के लिए बेताब हुआ और पर्यटन का उदय हुआ। यहां की सुंदरता के प्रति हर साल विश्वभर से लाखों सैलानी आने आरंभ हुए, जिससे पर्यटन कारोबार बढ़ने लगा और बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के द्वार खुले। जब पर्यटन अग्रसर होने लगा तो उसी बीच देवदार के बीच बने आलीशान होटलों पर हाई कोर्ट और एनजीटी का डंडा भी चलना शुरू हो गया है,जिससे कई पर्यटन कारोबारियों की रोजी-रोटी भी छिन गई। रोजगार वाला बेराजगार हो गया। हम यहां बात कर रहे हैं, विश्व के मानचित्र में पर्यटन के लिए अलग पहचान बनाने वाले प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कसोल और मनाली की। यहां पर हाई कोर्ट और एनजीटी की कार्रवाई से कई लोग बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर हो गए हैं।

पूरा कसोल ही अवैध

कसोल को तो इजरायल से आए पर्यटकों ने अपनी मनपसंद सैरगाह बना लिया और बीच जंगल में देखते ही देखते एक समृद्ध कस्बा यहां बस गया, लेकिन इसके लिए किसी ने भी उस समय कानूनों की कोई परवाह नहीं की। यही वजह है कि  हाई कोर्ट का अब आदेश आया तो सारा कसोल ही अवैध निकला। कसोल को वन भूमि पर बसाया गया है।

42 होटलों पर लटका ताला

कोर्ट के आदेश के बाद कसोल में 42 होटलों को सील कर दिया गया है।  इस बड़ी कार्रवाई से अवैध भवन, होटल, रेस्तरां-ढाबा व अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठान संचालकों में हड़कंप मच गया है।  नक्शे पास करवाए बिना ही बने कई भवनों पर हाई कोर्ट ने अपने आदेशों में विशेष तौर पर कसोल का जिक्र करते हुए कार्रवाई के आदेश दिए थे। कुल्लू के  उपायुक्त को इस संदर्भ में हुई कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है। हाई कोर्ट की सख्ती से हरकत में आए प्रशासन ने कसोल में पहली कार्रवाई करते हुए 31 भवनों पर कार्रवाई करते हुए बिजली-पानी बंद कर दिया।

150 बीघा ही मिलकियत भूमि 

जानकारी के मुताबिक कसोल कस्बा इतना बड़ा भी नहीं है। कसोल कस्बे में लगभग 150 बीघा के करीब मिलकियत भूमि है और इतनी बड़ी संख्या में अवैध भवन हैं।  प्रशासन की जांच में पता चला है कि कसोल में 42 होटल, ढाबे और रेस्टोरेंट अवैध हैं।

कसोल में सबसे पहले बना है शिवा मामा कैफे

कसोल में शिवा मामा कैफे सबसे पहले बना था। जैसे-जैसे विदेशी पर्यटकों का आना शुरू हुआ तो कसोल में अन्य होटल, रेस्तरां बनने शुरू हुए।  यहां पर मौजूदा समय में 25 के करीब होटल पंजीकृत हैं, जबकि यहां बनाए गए 42 होटलों पर हाई कोर्ट का डंडा चला है।

200 लोग हुए बेरोजगार

कसोल के होटल सील होने से 200 के करीब युवा बेराजगार हो गए हैं। युवा रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं।  कसोल की प्रकृति और गर्म पानी मणिकर्ण घाटी की ओर पर्यटकों को लाता है। जहां मिनी इजरायल के नाम से विख्यात कसोल पर्यटकों की मनपसंद सैरागाह है। वहीं, इसके साथ-साथ मणिकर्ण, छलाल, कटागला, चोज, गोज, ग्राहण, रसोल, मलाणा, तोष, कालगा, पुलगा, कुटला में देशी नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक पहुंच रहे हैं।

1700 होटल जांच की जद में

एनजीटी के आदेशों पर प्रशासन पहले 25 से अधिक कमरे वाले होटलों का निरीक्षण कर रहा था, लेकिन अब प्रशासन सभी छोटी-बड़ी होटल इकाइयों की जांच करने में जुटा है।   गौरतलब है कि जिलाभर में सरकारी रिकार्ड के अनुसार 1700 होटल यूनिट कार्रवाई की चपेट में आ गए हैं।

इतने होटल हैं पंजीकृत

पर्यटन विभाग के पास कुल्लू में 181 और मनाली में 583 होटल पंजीकृत हैं। होम स्टे के तहत मनाली में 117 और कुल्लू में 184 पंजीकृत हैं। हालांकि होटलों की संख्या देखा जाए तो यह पंजीकृत से तीन गुना ज्यादा है।

छिन गया रोजगार, अब प्रदेश सरकार से आस

मणिकर्ण होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष किशन ठाकुर कहते हैं कि इस कार्रवाई से॒ रोजगार छिन गया है। जिला के कई होटलों पर ताले लटके हुए हैं। व्यवसाय पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। मनाली होटिलियर्ज एसोसिएशन के अध्यक्ष गजेंद्र ठाकुर का कहना है कि अब उनकी उम्मीद नई सरकार से टिकी है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के समक्ष मसला उठाया गया, उम्मीद है कि प्रदेश सरकार उनके हक के पक्ष में खरा उतरेगी।


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