कब रुकेगी परीक्षाओं में धांधली

By: Mar 21st, 2018 12:05 am

योगेश कुमार गोयल लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

इन दिनों देशभर में परीक्षाओं का दौर चल रहा है और विडंबना यह है कि परीक्षाओं के इस दौर में हमें बार-बार परीक्षाओं में पेपर लीक अथवा अन्य प्रकार की धांधली की खबरें सुनने को मिल रही हैं और परीक्षा देने वाले छात्र ऐसे में स्वयं को ठगा सा महसूस करने लगते हैं। अभी 15 मार्च को सीबीएसई की बोर्ड की 12वीं कक्षा का अकाउंटेंसी का पेपर लीक होने की खबरें आई हैं। हालांकि दिल्ली सरकार ने शिक्षा निदेशालय को इसकी जांच का निर्देश दे दिया है, किंतु बोर्ड द्वारा अभी भी पेपर लीक होने की खबरों को पूरी तरह निराधार बताया जा रहा है जबकि खबरें यही मिल रही हैं कि पेपर दिल्ली के रोहिणी में लीक हुआ और देखते ही देखते व्हाट्सऐप द्वारा कई छात्रों के मोबाइल तक पहुंच गया। अभी हाल ही में महाराष्ट्र के बीड़ जिले में 10वीं और 12वीं कक्षा की परीक्षाओं के दौरान लगभग 1420 उत्तर पुस्तिकाएं जली हुई पाई गइर्ं। कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं में धांधली के मुद्दे पर देशभर में युवाओं का आंदोलन कई दिनों से लगातार चल रहा है। हालांकि सीबीएसई की ही तर्ज पर एसएससी ने भी युवाओं के विरोध के बावजूद प्रश्न पत्र लीक होने के आरोपों को शुरुआत में सिरे से खारिज कर दिया था, किंतु बाद में देशभर में परीक्षार्थियों के बढ़ते दबाव के मद्देनजर सरकार को इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश देना पड़ा। वैसे बात सिर्फ एसएससी द्वारा पिछले माह आयोजित की गई परीक्षा में धांधली तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देशभर में एसएससी हो या यूपीएससी अथवा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा आयोजित की जाने वाली इसी तरह की परीक्षाएं, अधिकांश ऐसी परीक्षाओं में कहीं न कहीं पेपर लीक की खबरें अब अकसर सामने आती रहती हैं, लेकिन इनके विरोध में मांग उठती रहने के बावजूद व्यवस्था में कोई ऐसा परिवर्तन करने के प्रयास नहीं किए गए, जिससे परीक्षार्थियों के मन में सरकारी नौकरियों के लिए अपनाई जाने वाली चयन प्रक्रिया के प्रति भरोसा कायम हो सके बल्कि ऐसी धांधलियों के खिलाफ आवाज उठाने पर व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने के बजाय शुरुआत में तो संबंधित विभागों या बोर्ड द्वारा इन आवाजों को ही दबाने की कोशिशें की जाती हैं। विडंबनाजनक स्थिति यह है कि जहां इस प्रकार की धांधलियों की शिकायतें मिलने पर संबंधित परीक्षा आयोजक या सरकार के कान तुरंत खड़े हो जाने चाहिएं और धांधली के तमाम सबूत जुटाकर तीव्र गति से ऐसे मामलों की जांच आरंभ कर छात्रों अथवा युवाओं में व्यवस्था के प्रति भरोसा कायम करने के प्रयास करने चाहिए, वहीं जैसा कि हालिया घटनाक्रम में देखा गया है कि एसएससी पेपर लीक मामले में लीपापोती की कवायद करने की कोशिशें होती दिखीं। सबूत जुटाने का काम जांच एजेंसियों के बजाय स्वयं परीक्षार्थियों ने ही किया। समय के बदलाव के साथ भले ही आज बहुत सारी प्रतियोगी परीक्षाओं में ऑफलाइन परीक्षा अर्थात पारंपरिक ओएमआर प्रक्रिया को कम्प्यूटर आधारित ‘ऑनलाइन’ परीक्षा मोड में बदला जा चुका है, किंतु जिस प्रकार ऑनलाइन परीक्षाओं में भी सेटिंग तथा धांधली के आरोप प्रायः लगते रहे हैं, ऐसे में ऑफलाइन या ऑनलाइन हर तरह की परीक्षा व्यवस्था तथा चयन प्रक्रिया की समूची व्यवस्था पर ही सवाल खड़े होते हैं। ऑनलाइन परीक्षाओं की तो पहली शर्त ही यह होती है कि जिन कम्प्यूटरों पर परीक्षाएं दी जानी हैं, वे किसी भी तरह इंटरनेट से न जुड़े हों किंतु एसएससी की सीजीएल परीक्षा में धांधली के आरोपों के बाद जिस प्रकार के ‘स्क्रीन शेयर सॉफ्टवेयर’ आइकॉन वाले स्क्रीनशॉट परीक्षार्थियों द्वारा उपलब्ध कराए गए, उनसे साफ है कि ऐसी परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर धांधलियां हो रही हैं। आज ऑनलाइन हों अथवा ऑफलाइन, इन परीक्षाओं के आयोजन के दौरान जिस प्रकार परीक्षा केंद्रों पर परीक्षार्थियों के जूते, घड़ी, बैल्ट, रूमाल, कानों की बालियां, मंगलसूत्र और यहां तक कि हाथ में बंधे धागे तक निकलवा लिए जाते हैं, फिर भी अगर पेपर लीक होते हैं, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या इसकी पूरी जिम्मेदारी परीक्षाओं का आयोजन कराने वाले बोर्ड अथवा विभाग की ही नहीं होनी चाहिए? क्या ऐसे बोर्डों में सर्वोच्च पदों पर बरसों से विराजमान अधिकारियों पर ऐसे मामलों को लेकर कठोरतम कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, ताकि भविष्य के लिए दूसरे अधिकारियों को भी सबक मिले और इस तरह के मामलों पर अंकुश लगने की उम्मीद जगे? परीक्षा के लिए जी-तोड़ मेहनत करने के बाद जब छात्रों को पता चलता है कि इतनी कड़ी मेहनत करके वे जो परीक्षा दे रहे हैं, वहां पेपर लीक करके उनकी जगह कुछ अयोग्य युवाओं को अवसर प्रदान करने का जुगाड़ किया जा रहा है, तो ऐसे में मेहनती युवा स्वयं को छला और ठगा तो महसूस करेंगे ही! परीक्षार्थियों पर आज के बेरोजगारी के माहौल में पहले से ही कितना दबाव है, इसका इसी से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि महज कुछ सौ पदों के लिए ही कई लाख युवा आवेदन करते हैं और उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं। सफाई कर्मचारी सरीखे छोटे से छोटे सरकारी पदों के लिए भी आज हजारों-लाखों उच्च शिक्षित युवा भी कतार में हैं। यदि ऐसे हालातों में उनका भरोसा इस प्रकार की चयन प्रक्रिया से उठ गया, तो इसके बहुत घातक परिणाम होंगे। ऐसी परिस्थितियों में अगर युवा चयन परीक्षाओं में धांधली के खिलाफ सड़कों पर उतरा है, तो देश की युवा शक्ति की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। चूंकि इस प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं की बदौलत ही हजारों-लाखों युवाओं के भविष्य का निर्धारण होता है। इसलिए ऐसी धांधलियों या इन परीक्षाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार अथवा सेटिंग के मामलों को लेकर गैरजिम्मेदार तथा असंवेदनशील बने नहीं रहा जा सकता, बल्कि परीक्षाओं में धांधली के मामलों की त्वरित उच्चस्तरीय जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कठोर कदम उठाते हुए युवा शक्ति को एक सकारात्मक संदेश देने की नितांत आवश्यकता है।


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