कश्मीरी हिंदुओं को दो सियासी हक

By: Mar 24th, 2018 12:08 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

राज्य सरकार और भारत सरकार दोनों ही उनकी इस मांग की अवहेलना करती रही हैं, लेकिन जब आतंकवाद के कारण कश्मीर से विस्थापित हिंदुओं को देश के किसी भी हिस्से में रहते हुए भी, जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के चुनावों में अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में मत देने का अधिकार दिया गया है, तो मुजफ्फराबाद, मीरपुर, पुंछ, गिलगित, बालतीस्तान से विस्थापित होने वाले नागरिकों को यह अधिकार क्यों नहीं मिल सकता…

1947 के आक्रमण में पीओके को पाकिस्तान ने अपने कब्जे में ले लिया और अब तक भी उसी के कब्जे में है। 22 फरवरी 1994 को संसद ने एक संकल्प पारित करके इस क्षेत्र को मुक्त करवाने का संकल्प लिया था, लेकिन इस संकल्प की पूर्ति हेतु भारत-पाक में यदा-कदा  होती रहने वाली द्विपक्षीय वार्ताओं में भारत ने कभी इस प्रश्न को नहीं उठाया। उसी संकल्प को याद करने के लिए अध्ययन केंद्र ने अपने इस सेमिनार को पाकिस्तान द्वारा हथियाए गए भाग पर केंद्रित किया था। रियासत का लगभग एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है। इसमें जम्मू संभाग के पंजाबी भाषी क्षेत्र, गिलगित और कारकिल तहसील को छोड़कर पूरा बालतीस्तान शामिल है। सेमिनार में एक अलग यथास्थिति से सामना हुआ, जिसकी अभी मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं हुई है, लेकिन जो अंदर ही अंदर आग बनकर सुलग रही है और कभी भी ज्वालामुखी फट सकता है। वह समस्या है राज्य में विस्थापितों के सांविधानिक अधिकारों की।

1947 में राज्य के जिन हिस्सों पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था, वहां रह रहे बहुत से हिंदू सिखों को  आक्रमणकारियों ने मार दिया था, लेकिन इसके बावजूद बहुत से हिंदू- सिख परिवार अपनी जान बचाकर राज्य के उन स्थानों, जिन्हें या तो पाकिस्तानी सेना अपने कब्जे में नहीं ले सकी, या फिर भारतीय सेना ने उन क्षेत्रों को पाक के कब्जे से मुक्त कर लिया था, आ गए थे। जम्मू, श्रीनगर, ऊधमपुर, कठुआ आदि इलाकों में इन विस्थापितों की संख्या लाखों में है। गिलगित व बालतीस्तान से आने वाले कुछ शरणार्थी लेह में भी हैं। जम्मू- कश्मीर की विधानसभा में कुल सदस्य संख्या 111 है, लेकिन चुनाव  केवल 84 स्थानों के लिए ही करवाए जाते हैं, क्योंकि 24 सदस्यों वाला  शेष क्षेत्र अभी भी पाकिस्तान के कब्जे में है। खाली पड़े इन 24 क्षेत्रों के लाखों लोग जो जम्मू श्रीनगर या अन्य स्थानों पर रहते हैं, वे एक लंबे अरसे से मांग कर रहे हैं  कि उनकी जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से इन 24 क्षेत्रों में से कुछ सीटों के चुनाव करवाए जाएं और उन्हें भी राज्य के संविधान में प्रदत्त राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेने का अवसर दिया जाए।

राज्य सरकार और भारत सरकार दोनों ही उनकी इस मांग की अवहेलना करती रही हैं, लेकिन जब आतंकवाद के कारण कश्मीर से विस्थापित हिंदुओं को देश के किसी भी हिस्से में रहते हुए भी, जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के चुनावों में अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में मत देने का अधिकार दिया गया है, तो मुजफ्फराबाद, मीरपुर, पुंछ, गिलगित बालतीस्तान से विस्थापित होने वाले नागरिकों को यह अधिकार क्यों नहीं मिल सकता? विस्थापित उस व्यक्ति को माना जाता है जिसे अपनी इच्छा के खिलाफ बलपूर्वक अपना स्थान छोड़ने के लिए वाध्य किया जाता है। जम्मू कश्मीर के अब लाखों विस्थापित  जो अपने ही राज्य के एक हिस्से से निकलकर दूसरे हिस्से में रह रहे हैं, अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए मुखर हो रहे हैं। युवा पीढ़ी में विशेष रोष देखा जा सकता है। ऐसे अनेक विस्थापित सेमिनारों में अपना रोष प्रकट कर रहे थे।

ताज्जुब की बात है कि चौबीस घंटे कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन की बात करती रहती राज्य सरकार इन विस्थापितों के राजनीतिक अधिकारों के प्रति आंखें मूंदे हुए है। विस्थापितों का गुस्सा अभी तो अंदर ही अंदर सुलग रहा है, लेकिन यदि इन विस्थापितों को ज्यादा देर राज्य की राजनीति में हाशिए पर रखा गया, तो  यकीनन यह दावानल किसी भी समय फट सकता है।  राज्य सरकार का कहना है कि अभी भी इन विस्थापितों को वोट देने और विधानसभा के चुनाव में खड़े होने का अधिकार है, लेकिन असली प्रश्न तो यह है कि उनको उन विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ने का अधिकार होना चाहिए जो उनके लिए ही सुरक्षित रखें गए हैं। राज्य सरकार का कहना है कि वे क्षेत्र पाक के कब्जे में हैं, इसलिए वहां पोलिंग बूथ कैसे स्थापित किए जा सकते हैं, लेकिन विस्थापितों का कहना है कि जिस प्रकार भारत सरकार ने राज्य की इसी विशेष स्थिति को देखते हुए संविधान में धारा 370 का समावेश किया था, उसी प्रकार विशेष स्थिति को देखते हुए यह पोलिंगबूथ जम्मू, कश्मीर व लद्दाख में स्थापित किए जा सकते हैं। असली प्रश्न तो मतदाता का है।

इन 24 विधानसभा क्षेत्रों के काफी संख्या में मतदाता भी तो जम्मू व श्रीनगर में ही रहते हैं। फिर जब श्रीनगर की विधानसभा सीटों के लिए विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के लिए पोलिंगबूथ दिल्ली में बनाए जा सकते हैं तो मुजफ्फराबाद व मीरपुर के विस्थापितों के लिए जम्मू-श्रीनगर में क्यों नहीं बनाए जा सकते?

इससे दुनिया भर में एक और संदेश भी जाएगा कि भारत जम्मू-कश्मीर के पाक द्वारा कब्जाए इलाके को वापस लेने के प्रस्ताव से ही संतुष्ट नहीं है, बल्कि उसके लिए प्रयत्नशील भी है। भारत सरकार को जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा की खाली पड़ी इन 24 सीटों के आनुपातिक हिस्से पर विस्थापितों के अधिकार को मानने की प्रक्रिया प्रारंभ करनी चाहिए, नहीं तो पहले से ही समस्याओं से घिरे राज्य में एक और समस्या विकराल रूप धारण कर लेगी।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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