कहां है ट्रैफिक पुलिस

By: Mar 23rd, 2018 12:04 am

राजधानी शिमला के नजदीक सड़क हादसों की वजह भले ही राज्य के अन्य भागों की तरह हो, लेकिन यातायात नियमों के सुराख कातिल होंगे तो ट्रैफिक पुलिस के इंतजाम पूछे जाएंगे। शिमला की जिस कार दुर्घटना ने चार लोग लील दिए, वहां मौत का साया सफर की शुरुआत से ही मंडरा रहा था। छोटे से वाहन में क्षमता से अधिक आठ लोगों का सवार होना अगर मौत को निमंत्रण देने जैसा है, तो राजधानी के करीब ट्रैफिक पुलिस की चौकसी है क्या। यातायात नियंत्रण के वैज्ञानिक व मानवीय समाधान की आवश्यकता हिमाचल में भी बढ़ रही है, लेकिन विभागीय तौर पर इस दिशा में न कोई स्थायी रणनीति और न ही योजना दिखाई दे रही है। यातायात नियमों का कड़ाई से पालन न होने की वजह पुलिस का अपना भाईचारा है, जो नागरिक समाज को उल्लंघन करने की लगातार छूट दे रहा है। ऐसे में जब कभी सड़क हादसे होते हैं, तो उन कारणों की समीक्षा में फर्ज की कोताही का सवाल टै्रफिक पुलिस व्यवस्था से भी जुड़ता है। वाहनों का पर्वतीय संचालन मैदानी इलाकों से पूर्णतः भिन्न होना चाहिए, लेकिन हिमाचल ने प्रगति की इस रफ्तार को अपना ढर्रा बनाकर खतरा मोल ले लिया है। वाहन चालन की जांबाजी में युवा वर्ग का उत्साह जिस शिखर पर है, वहां सड़कों पर चौकसी लाजिमी हो जाती है। घातक दुर्घटनाओं के आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल में दोपहिया वाहन चालकों की मौत के आंकड़े निरंतर बढ़ रहे हैं। कारण वही दुस्साहस है, जो हर बार पर्वतीय परिवहन के एहतियात को तोड़ता है। शहरी परिप्रेक्ष्य में यातायात का दबाव और भी जालिम हो चुका है और जहां युवा वाहन चालकों के अलावा टैक्सी व निजी बसों के ड्राइवर अपनी अनावश्यक प्रतिस्पर्धा का एक रुख हमेशा मौत से जोड़कर चलते हैं। हिमाचल में यातायात अनुशासन न के बराबर हो चला है और इस तथ्य को सुधारने के लिए सख्त कदमों की जरूरत है। ट्रैफिक नियंत्रण केवल किसी चौक-चौराहे की निगरानी नहीं, बल्कि हर वक्त और हर सड़क पर वाहन चालकों के व्यवहार को परखने की पद्धति को विकसित करने की चुनौती है। ओवरलोडिंग, ओवर स्पीडिंग के साथ-साथ सड़कों पर बेतरतीब पार्किंग के खतरे बढ़ते जा रहे हैं। प्रदेश भर के चौराहों को यातायात के अनुरूप तथा सड़कों से हटकर बस स्टॉप बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा। प्रदेश में उगते शहरीकरण के बीच यातायात व्यवस्था को नए सिरे से समझने तथा सार्वजनिक परिवहन को संबोधित करने की आवश्यकता है। शिमला को ही लें, तो अब उन गलियों तक वाहन घूम रहे हैं, जहां कभी केवल पैदल चलना ही एकमात्र विकल्प था। क्या शिमला की यातायात जरूरतों का समाधान केवल निजी वाहनों की बढ़ती खेप है या सार्वजनिक परिवहन को एरियल ट्रांसपोर्ट के नेटवर्क से जोड़ना होगा। प्रदेश के शहरी विकास मंत्रालय की निरंतर बढ़ रही जिम्मेदारी में सार्वजनिक परिवहन की नई व्याख्या चाहिए। दुर्भाग्यवश हिमाचल में राजनीतिक हिस्सेदारी की तरह लो-फ्लोर बसों का आबंटन हुआ और पहले की व्यवस्था और डरावनी हो गई। जवाहर लाल नेहरू अर्बन मिशन से प्राप्त बसों को सामान्य परिवहन में इस्तेमाल करके पिछली सरकार ने मूल उद्देश्य ही परास्त कर दिया था, तो अब पुनः एक अवसर है कि खड़ी बसों से शहरी कस्बों के बीच यातायात की नई परिपाटी विकसित की जाए। हालांकि इलेक्ट्रिक वाहनों का आबंटन जिस तरह हुआ है, उससे नहीं लगता कि समाधान के ठोस उपाय हो रहे हैं या राजनीतिक मजबूरियां शांत की जा रही हैं। हिमाचल को अब पर्वतीय परिवहन के विभिन्न विकल्पों पर गौर करते हुए ऐसी ठोस नीति बनानी होगी, जिसके तहत हर तरह का यातायात व यात्री सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हों। निजी वाहनों के लिए यातायात के अनुशासित पथ कुछ इस दृष्टि से बनें, ताकि तमाम वाहन चालक दिशा-निर्देशों का पालन करें अन्यथा ट्रैफिक पुलिस व्यवस्था इतनी सक्षम व सुसज्जित की जाए कि जरा सा उल्लंघन भी कानून की जद में कार्रवाई तक पहुंचे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App