ग्लेशियरों के पिघलने से मैदानों की हरियाली जाएगी

By: Mar 28th, 2018 12:05 am

यदि  ग्लेशियर पिघल गए और वर्षा के जल में भी कमी हो गई, तो मैदानों की हरियाली तो चली जाएगी, साथ ही इन पहाड़ों से चावल की फसल भी इसी शताब्दी में लुप्त हो जाएगी। हमारी गिरती जीवन शैली के कारण यह धरती भी इसी शताब्दी में जीवन विहीन हो जाएगी…

गतांक से आगे…

पिघलते ग्लेशियरों के दुष्प्रभाव :

इसके  कारण कृषि उत्पादन घटकर आधा रह  जाएगा। 15 देशों में  खाद्यान्नों की गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है। फसल की पैदावार को प्रभावित करते इन्हीं कुछ बिंदुओं के उजाले में हिमाचल प्रदेश में चावल की पैदावार का आंकलन करते हैं। प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2001-02 में चावल का उत्पादन 137.42 हजार टन था। वर्ष 2002-03 में 85. 65 हजार टन, वर्ष 2004-05 में 103.13 हजार टन तथा 2005 -06 में यह उत्पादन 112.14 हजार टन था। ये आंकड़े चावलों की पैदावार में लगभग कमी के ही रुझान को प्रदर्शित करते हैं। चावल को गर्मी की ऋतु में भरपूर पानी की आवश्यकता होती है। पानी से भरे खेत के बीच चावल की हरी भरी फसल लहलहाती है। उधर, प्रदेश के ऊंचे क्षेत्रों में चावल की यह फसल बर्फ से पिघलते पानी पर निर्भर करती है। यदि  ग्लेशियर पिघल गए और वर्षा के जल में भी कमी हो गई, तो मैदानों की हरियाली तो चली जाएगी, साथ ही इन पहाड़ों से चावल की फसल भी इसी शताब्दी में लुप्त हो जाएगी। हमारी गिरती जीवन शैली के कारण यह धरती भी इसी शताब्दी में जीवन विहीन हो जाएगी। हम जब तक जीवन की गुणवत्ता के वास्तविक अर्थों को समझ कर जीवन शैली एवं स्तर में सुधार नहीं लाते, तब तक न तो गर्मी का बढ़ना रुकेगा, न उपजाऊ शक्ति सुधरेगी।


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