चामुंडा देवी शक्तिपीठ

By: Mar 24th, 2018 12:08 am

सावार्णि मन्वंतर में जब देवासुर संग्राम हुआ था तो देवी कौशिकी ने अपनी भृकुटी से चंडिका उत्पन्न की और चंड- मुंड दैत्यों के साथ घोर संग्राम कर उनका वध कर दिया। देवी चंडिका उन दोनों दैत्यों के सिरों को काट कर भगवती कौशिकी के पास ले कर आई। भगवती पर प्रसन्न हो कर देवी कौशिकी ने वरदान दिया कि तुमने चंड और मुंड दैत्यों को मारा है। अतः तुम संसार में चामुंडा नाम से प्रसिद्ध होंगी…

बहुत पुराने समय की बात है कि योल में एक चंद्रभान नाम का राजा राज्य करता था। उसके राज्य में राक्षस प्रतिदिन बहुत सारे आदमियों को मार देते थे। उसके राज्य में लोगों ने राजा सेएक दिन फरियाद की और कहा कि आप तो सत्यवादी हैं, लेकिन राक्षस बहुत अत्याचार कर रहे हैं। हर रोज लोगों को मार कर खत्म कर रहे हैं। प्रजा को दुखी देखकर राजा ने अपने गुरु को याद किया। बाण गंगा के किनारे नदी के पार गुरु जी रहते थे। जब वह गुरु जी के पास गए, तो गुरु जी से क्षमा मांग कर अपने राज्य की शांति के लिए वचन मांगा।  गुरु जी ने कहा कि इस कैलाश पर्वत पर शिव एवं पार्वती रहते हैं। तुम श्रीचामुंडा माता के नाम से यज्ञ करो और विद्वान ब्राह्मणों को बुलाओ एवं चामुंडा माता को प्रसन्न करो। राजा की भक्ति से मां चामुंडा प्रसन्न हो गई और कहा कि तुम जाओ, आज के बाद राज्य में कोई भी नुकसान नहीं होगा, पर मुझे एक बलि एवं भोग प्रसाद रोज देना होगा। राजा ने उनकी बात मान ली। अब हर घर में से एक व्यक्ति की बलि दी जाती थी। यहां से 12 मील ऊपर पहाड़ पर माता रहती थी। उस राज्य में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहते थे। वे शंकर भगवान के सच्चे भक्त थे। शंकर भगवान ने आधी  उम्र में उनकी प्रार्थना पर प्रसन्न होकर एक लड़का दिया था।  एक दिन बलि के लिए उनके लड़के की बारी आ गई। वे दोनों शिव जी से प्रार्थना करने लगे,हमारे लड़के की रक्षा कीजिए। भगवान शंकर साधु का रूप धार कर उनके पास आए और कहा आप दुखी न हों, कल हम इस लड़के को अपने साथ ले जाएंगे। सुबह होते ही राज दरबार से दूत लड़के को लेने आ गए, उधर भगवान भी साधु के रूप में वहां आ गए और लड़के को साथ लेकर चामुंडा की ओर चलने लगे। भगवान लड़के के साथ जहां शिव मंदिर स्थित है, वहां आ गए और आंखें बंद करके बैठने को कहा। तब चामुंडा माता ने राजा को स्वप्न दिया और कहा कि तुम्हारे राज्य का नाश कर दूंगी। राजा ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और अपनी फौज को लड़के को ढूंढने के लिए भेज दिया। जब सैनिक जहां आए, तो देखा कि लड़का और साधु वियावान जंगल में बैठे हैं। सैनिक साधु के पास आकर बोले कि राज दरबार से तुम्हें दंड दिया जाएगा। भगवान शंकर कहने लगे कि अगर तुम्हारी माता में इतनी शक्ति है, तो इस लड़के को यहां से ले जाए।  इतनी बात सुनकर माता ने विकराल रूप बना लिया और क्रोध में आ गईं। क्रोध में आकर पहाड़ से तीन चट्टानें फैंकी। दो चट्टाने इधर-उधर पड़ी और एक को महादेव ने अपनी अंगुली से रोक लिया। आज उसी स्थान पर नंदीकेश्वर मंदिर है। जब माता की शक्ति ने काम नहीं किया, तो माता ऊपर पहाड़ से नीचे आ गई और महादेव को देखकर माता जैसे ही वापस होने लगीं, तो महादेव ने उन्हें रोका और कहा कि आज से पहले आरती पूजा होगी और बाद में आपके लिए भोग प्रसाद व जिंदा आदमी की जगह मुर्दा आएगा। यदि किसी दिन नागा पड़ जाए, तो दूसरे दिन दो आएंगे। यहां साल में रोज मुर्दे आते हैं। लगभग हर रोज एक मुर्दा चामुंडा श्मशानघाट में जलता है।

इतिहास- भारत वर्ष के उत्तर में जालंधर पीठ के अंतर्गत चामुंडा नंदिकेश्वर धाम पौराणिक काल से ही शिव-शक्ति का अद्भुत सिद्ववरदायी स्थान रहा है। यह स्थान जालंधर पीठ के इतिहास में उत्तरी द्वारपाल के रूप में जाना जाता है। यहां जालंधर राक्षस और महादेव के मध्य युद्ध के दौरान भगवती चामुंडा को अधिष्ठात्री देवी एवं रुद्रत्व पद प्राप्त हुआ था। जिससे यह क्षेत्र रुद्र चामुंडा के रूप में भी विख्यात है। सावार्णि मन्वंतर में जब देवासुर संग्राम हुआ था, तो देवी कौशिकी ने अपनी भृकुटी से चंडिका उत्पन्न की और चंड- मुंड दैत्यों के साथ घोर संग्राम कर उनका वध कर दिया। देवी चंडिका उन दोनों दैत्यों के सिरों को काट कर भगवती कौशिकी के पास ले कर आई। भगवती पर प्रसन्न हो कर देवी कौशिकी ने वरदान दिया कि तुमने चंड और मुंड दैत्यों को मारा है। अतः तुम संसार में चामुंडा नाम से प्रसिद्ध होंगी।

चामुंडा मंदिर की समयसारिणी- मंदिर के खुलने का समय गर्मियों में सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक और सर्दियों में 6 बजे से रात 9 बजे तक रहता है। माता का भोग गर्मियों में दोपहर 12 बजे और रात्रि 9 बजे रहता है, जबकि सर्दियों में भी दोपहर 12 बजे और रात्रि 7 बजे रहता है। आरती का समय गर्मियों में सुबह 8 बजे, रात्रि 8 बजे और सर्दियों में सुबह 8:30 और रात्रि 6:30 बजे। शैय्या गर्मियों में रात्रि 10 बजे और सर्दियों में 9 बजे। स्नान व शृंगार गर्मियों में सुबह 5 बजे, सायं 5 बजे और सर्दियों में सुबह 6:30 और सायं 4:30। मंदिर में नारियल, मिसरी, इलायची व मेवों का प्रसाद चढ़ाया जाता है। चामुंडा मंदिर का प्रबंध कार्य कमेटी के संविधान अनुसार समय-समय पर इसका निर्वाचन होकर नई प्रबंध कमेटी करती है। 14 मार्च सन् 1994 को हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस कमेटी को भंग करके ट्रस्ट बनाकर मंदिर अधिनियम 1984 के अनुसार अधिग्रहण किया।

पूजा, विधान और यज्ञ परंपरा- श्रीचामुंडा नंदिकेश्वर धाम की अपनी विशिष्ट परंपरा है, जिनके कारण 1950 से यज्ञ करवाने की महान परंपरा चली आ रही है। यहां दोनों समय माता जी का लंगर चलता है। वर्ष के शरद नवारत्र, चैत्र नवरात्र, गुप्त नवरात्र, शिवरात्रि, कृष्ण जन्माष्टमी, दीपावली, लोहड़ी आदि त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। मंदिर परिसर में धार्मिक पुस्तकों का विशेष केंद्र है। मंदिर न्यास द्वारा क्षेत्र में संस्कृत विश्वविद्यालय भी चलाया जा रहा है।

पूजा, विधान और यज्ञ परंपरा- श्रीचामुंडा नंदिकेश्वर धाम की अपनी विशिष्ट परंपरा है, जिनके कारण 1950 से यज्ञ करवाने की महान परंपरा चली आ रही है। यहां दोनों समय माता जी का लंगर चलता है। वर्ष के शरद नवारत्र, चैत्र नवरात्र, गुप्त नवरात्र, शिवरात्रि, कृष्ण जन्माष्टमी, दीपावली, लोहड़ी आदि त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। मंदिर परिसर में धार्मिक पुस्तकों का विशेष केंद्र है। मंदिर न्यास द्वारा क्षेत्र में संस्कृत विश्वविद्यालय भी चलाया जा रहा है।

निकटवर्ती धर्म स्थल- चामुंडा मंदिर में माता चामुंडा के अलावा मनसा देवी मंदिर, भैरव मंदिर, दुर्गा माता मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, हनुमान मंदिर दर्शनीय स्थल हैं। श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के उत्तर में पर्वत शिखर के नीचे चंद्रधार की चोटी पर आदि चामुंडा का उद्गम स्थान है। चंद्रधार का नाम महाराजा चंद्रभान के नाम से पड़ा है। यह वीर योद्धा यहां अपने दुर्ग में रहता था तथा भगवती चामुंडा का प्रबल उपासक था। आदि चामुंडा को हिमानी चामुंडा के नाम से भी पुकारा जाता है। यहां पहुंचने के लिए 14 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है। इस स्थान की ऊंचाई 10, 500 फुट है। पर्वतरोहियों के लिए इसके आगे तालंग जोत जो 17,500 फुट पर स्थित है के साथ अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं। तालंग जोत लांघकर प्रायः गद्दी लोग अपनी भेड़, बकरियों के साथ धौलाधार के इस उत्तुंग शिखर को पार कर गंधेरन तथा दूसरी और जाते हैं। इस शिखर की यात्रा द्वापर युग में पांडवों ने की थी ऐसी जनश्रुति है। हिमानी चामुंडा के शिखर के दूसरी ओर हिमाच्छादित सरोवर है। यह झील पानी से सारा साल ढकी रहती है। यही स्थान बाण गंगा(बनेर) का उद्गम स्रोत है, जो चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के पास से प्रवाहित होकर प्राकृतिक सौंदर्य बिखेरती है। इस झील को अर्जुन ताल के नाम से पुकारते हैं। चामुंडा मंदिर से पूर्व दिशा की ओर 6 किमी. की दूरी पर भृर्तहरि तथा त्रयंबकेश्वर मंदिर है। श्री चामुंडा धाम से 8 किमी. की दूरी पर भयभंजनी गढ़ माता मंदिर है। चामुंडा से 2 किमी. की दूरी पर नागा पांडव का मंदिर है। इस गांव में पत्थर की एक भव्य शिला है। चामुंडा से 2 किमी. की दूरी पर पठियार गांव के पास टीका टंबर में एक बड़ी शिला है। जिस पर ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपी में प्राचीन शिलालेख अंकित है। मलां सड़क मार्ग से सामने पहाड़ी पर झरेट में कन्या देवी मंदिर है। नदी के सामने पहाड़ी पर डीनू नाग का सुप्रसिद्ध मंदिर है। सेराथाना गांव की पहाड़ी पर अगस्त्येश्वर का भव्य मंदिर है, चामुंडा से पांच किमी. की दूरी पर नैना देवी भगवती मंदिर है। इसके अतिरिक्त अघंजर महादेव, तपोवन, कुनाल पथरी, भागसू नाग के प्रसिद्ध देवालय इस क्षेत्र के बिलकुल समीप हैं।

आवास सुविधा- श्री चामुंडा मंदिर में सराय, होटल के अलावा लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह, यात्री निवास व मंदिर सराय के अलावा आधुनकि तथा प्राइवेट सराय यात्रियों के ठहरने के लिए उपलब्ध है।

– संजू धीमान, चामुंडा


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