जीने की कला सिखाते : श्रीश्री रवि शंकर
जीवन परिचय
श्रीश्री रवि शंकर का जन्म तमिलनाडु में 13 मार्च, 1956 को हुआ। उनके पिता का नाम वेंकट रतनम था, जो भाषाविद थे। उनकी माता श्रीमति विषलाक्षी सुशील महिला थीं। आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए उनके पिता ने उनका नाम शंकर रख दिया।शंकर शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। मात्र 4 साल की उम्र में वह भागवतगीता के श्लोकों का पाठ कर लेते थे। बचपन में ही उन्हों ने ध्यान करना शुरू कर दिया था। उनके शिष्य बताते हैं कि फिजिक्स में अग्रिम डिग्री उन्होंने 17 वर्ष की आयु में ही ले ली थी। उन्हों ने अपने नाम रवि शंकर के आगे श्रीश्री जोड़ लिया, जब प्रख्यात सितार वादक रवि शंकर ने उन पर आरोप लगाया कि वह उनकी नाम की कीर्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं। रवि शंर लोगों को सुदर्शन क्रिया सिखाते हैं। आर्ट ऑफ लिविंग की स्थापना- सन् 1982 में श्रीश्री रवि शंकर ने आर्ट ऑफ लिविंग की स्थापना की। 1997 में इंटरनेशनल एसोसिएशन फार ह्यूमन वैल्यू की स्थापना की। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर उन मूल्यों को फलाना है, जो लोगों को आपस में जोड़ते हैं।
दर्शन
श्रीश्री रवि शंकर कहते हैं कि सांस शरीर और मन के बीच एक कड़ी की तरह है, जो दोनों को जोड़ती है। इसे मन को शांत करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वह इस बात पर भी जोर देते हैं कि ध्यान के अलावा दूसरे लोगों की सेवा भी इनसान को करनी चाहिए। वह विज्ञान और अध्यात्म को एक- दूसरे का विरोधी नहीं, बल्कि पूरक मानते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय भी संगठन के कार्यकर्ता सक्रिय रहते हैं। दुनिया भर के कैदियों के उत्थान को भी संस्था निरंतर कार्य करती रहती है।
सुदर्शन क्रिया
सुदर्शन क्रिया आर्ट ऑफ लिविंग कोर्स का आधार है। सुदर्शन क्रिया शरीर, मन और भावनाओं को ऊर्जा से भर देती है तथा उन्हें प्राकृतिक रूप में ले आती है।
इससे जुड़ी संस्थाएं
वेद विज्ञान विद्यापीठ
श्रीश्री सेंटर फार मीडिया स्टडी
श्रीश्री कालेज और आयुर्वेदिक साइंस
एंड रिसर्च अवार्ड
नेशनल वेटरेन्स फाउंडेशन अवार्ड-2007
कन्नडिगा ईटीवी-2007
संपर्क मंगोलिया का आर्डर पोल स्टार-2006 पुरस्कार
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