ज्वालामुखी शक्तिपीठ

By: Mar 17th, 2018 12:07 am

जहां- जहां सती के शव के टुकड़े गिरे, वहीं-वहीं शक्तिपीठ बन गए। उन सभी शक्तिपीठों के साथ भगवान शंकर के मंदिर भी स्थापित हो गए। ज्वाला जी मंदिर में माता सती की जीभ गिरी थी, जिससे ज्वाला निकल रही थी, इसलिए ही इस स्थान का नाम ज्वालामुखी पड़ा है। राजा भूमि चंद ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसे एक ग्वाले ने बताया कि जंगल में आग की लपटें जलती हुई दिखाई दे रही हैं…

विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जनपद के कालीधार के जंगलों में विराजमान एक ऐसा मनोरम व सुंदर शक्ति स्थल है, जहां मां की पवित्र व अखंड ज्योतियों के दर्शन मात्र से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। बिना घी तेल या ईंधन से निरंतर सदियों से जलती चली आ रही इन दिव्य शीतल ज्योतियों की आभा ही कुछ निराली है। अग्नि रूप में प्रज्वलित होने के बावजूद इन ज्योतियों में मां की ममता व मामत्व की शालीनता महसूस की जाती है। हर साल लाखों लोगों की मन की मुरादें पूरी करने वाली मां ज्वाला जी देश-विदेश के करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है। आज पूरे विश्व में एक बटन दबाते ही इंटरनेट के माध्यम से ज्वालामुखी मंदिर को बेबसाइट पर देखा जा सकता है। यहां होने वाली आरतियों की झलक देखी जा सकती है । आज इस मंदिर की मान्यता विश्व में है। विश्व भर से मां के भक्त यहां आते हैं और मनचाहे मनोरथ हासिल कर झोलियां भर के जाते हैं। पूरे विश्व में ऐसा प्रत्यक्ष दर्शन ज्योतियों के रूप में कहीं नहीं होता यही कारण है कि मां की महिमा अपरंपार है।

कथा- एक कहानी के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री पार्वती का विवाह भगवान शिव शंकर से हुआ था। एक बार राजा दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया तथा हर देवी-देवता को उसमें आमंत्रित किया, परंतु अपने दामाद भगवान शंकर व पुत्री पार्वती को आमंत्रित नहीं किया। जिस पर माता पार्वती भगवान शंकर के बार-बार मना करने पर भी अपने पिता के घर चली जाती है, परंतु अपने पिता के मुंह से पति की निंदा माता पार्वती सुन नहीं पाती हैं और जलते हुए हवन कुंड में छलांग लगाकर आत्मदाह कर लेती हैं। पूरी सृष्टि में हाहाकार मच जाता है। भगवान शंकर तक जब यह समाचार पहुंचता है, तो वह क्रोधित हो उठते हैं। उन्होंने अपने गणों को बुला कर यज्ञ को विध्वंस कर दक्ष का सिर काट देने की आज्ञा दी। गणों ने यज्ञ को विध्वंस कर भगवान शंकर की आज्ञा के अनुसार दक्ष का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। जिस पर सभी देवताओं के आग्रह और स्तुति करने से भगवान शंकर ने दक्ष को बकरे का सिर लगा कर जीवित कर दिया और सती के अधजले शरीर को उठा कर सृष्टि का भ्रमण करने लगे। चारों ओर हाहाकार मच गया। तब श्री हरि विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए। जहां- जहां सती के शव के टुकड़े गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गए। उन सभी शक्तिपीठों के साथ भगवान शंकर के मंदिर भी स्थापित हो गए। ज्वाला जी मंदिर में सती की जीभ गिरी थी, जिससे ज्वाला निकल रही थी, इसलिए ही इस स्थान का नाम ज्वालामुखी पड़ा है।

इतिहास- राजा भूमि चंद ने यहां के मंदिर की जीर्णाेद्धार करवाया था। उसे एक ग्वाले ने बताया कि जंगल में आग की लपटें जलती दिखाई दे रही हैं। तब राजा भूमि चंद को रात में माता ने स्वप्न में कहा कि यहां पर मेरा मंदिर बनाओ, तुम्हारे वंश का सदा कल्याण होगा। राजा भूमि चंद ने मां का दरबार बनाया तथा शाक द्वीप से दो भोजक ब्राह्मण मां की पूजा- आराधना के लिए लाकर, यहां मां की पीढ़ी दर पीढ़ी पूजा-अर्चना करके परिवार का पालन पोषण करने को कहा । उसी परिवार के वंशज आज डेढ़ सौ के लगभग परिवार हो चुके हैं, जो आज भी विशेष पूजा पद्वति से मां की पूजा करते चले आ रहे हैं तथा विश्व शांति व जन कल्याण के लिए साल में दो बार मां का जन्म दिवस व भंडारे का स्वयं अपनी निधि से आयोजन करते हैं, ताकि मां की कृपा हमेशा सब पर बनी रहे । ज्वालाजी शहर चारों ओर से पहाडि़यों से धिरा हुआ रमणीय स्थल है। यहां ज्वालाजी के अलावा कई छोटे-छोटे  मंदिर हैं। जहां मां की महिमा का गुणगान किया जाता है।

पहुंचने का रास्ता व रूट चार्ट

विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री ज्वालामुखी मंदिर को दिल्ली से वाया चंडीगढ़ होकर,पठानकोट से वाया कांगड़ा होकर, हमीरपुर से वाया नादौन होकर, जालंधर से वाया चिंतपूर्णी होकर पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा रेलवे नैटवर्क में रानीताल रेलवे स्टेशन से बीस किलोमीटर की दूर पर ज्वालामुखी के लिए टैक्सी या बस से पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से आने के लिए कांगड़ा के गग्गल हवाई अड्डे से टैक्सी या बस से ज्वालामुखी पहुंचा जा सकता है। ज्वालामुखी मंदिर में बस के माध्यम से पठानकोट, चंडीगढ़ से आ सकते हैं। रेल के माध्यम से पठानकोट से यहां आ सकते है। हवाई जहाज से आना हो तो गग्गल एयरपोर्ट से ज्वालामुखी के लिए टैक्सी या बस मिल जाती है। यहां ठहरने के लिए कई अच्छे होटल व सराय हैं। मंदिर न्यास के सौजन्य से यात्रियों के लिए काफी सुविधाएं उपलब्ध हैं ।

आवास सुविधा

ज्वालामुखी में रात्रि विश्राम के लिए बहुत होटल व सराय विद्यमान है। यहां पर हिमाचल टूरिजम का होटल ज्वाला जी मौजूद है। इसके अलावा दर्जन भर धर्मार्थ सराय हैं। कई छोटे गेस्ट हाउस भी हैं, जहां मामूली रेट पर भी कमरे आसानी से मिल जाते हैं।

खान- पान

यात्रियों की सुविधा के लिए मंदिर न्यास ने दो समय दोपहर व शाम को लंगर भंडारे का आयोजन किया है। इसके बावजूद शहर में होटल व ढाबे काफी संख्या में हैं, जहां पर यात्री भोजन कर सकते हैं।

नजदीक के धार्मिक स्थल

ज्वालामुखी के नजदीक महा कालेश्वर मंदिर, धरोहर गांव परागपुर, जजिस कोर्ट परागपुर, चनौर का ठाकुरद्वारा, रघुनाथेश्वर टेढ़ा मंदिर, अंबिकेश्वर मंदिर, भैरों बाबा मंदिर, गणेश मंदिर, माता अष्टदसभुजा माता मंदिर, संगीतमयी फुब्बारा,नादौन का महाराजा पैलेस ,क्रिकेट मैदान अमतर नादौन, ध्यानू भक्त की समाधि नादौन, जलाधारी महादेव थुरल, नागनी मंदिर सपड़ी व अन्य कई आकर्षण स्थल हैं, जहां पर भक्त लोग समय बिता सकते हैं।

विशेषताएंः

ज्वालामुखी के पेड़े बहुत मशहूर हैं। यह दूध से बने मेवे से बनते है, जिसे पहाड़ी में खोया भी कहा जाता है। जिसको भूनकर  चीनी बूरा मिला कर इनको बनाया जाता है और मां के दरबार में इसका भोग लगाकर प्रसाद के रूप में बांटा व ले जाया जाता है। इसके अलावा यहां का धूप भी बहुत मशहूर है। इसके अलावा फाले की टिक्की, दीपक के चाय ब्रेड पकोड़े, घलौर के अजीत लाल के चने व इमली क्षेत्र की चर्चित विशेषताएं हैं, जिनको लेने के लिए दूर- दूर से लोग आते हैं।

          -शैलेश शर्मा, ज्वालामुखी


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