डाटा से 2019 में जीत

By: Mar 24th, 2018 12:05 am

यह भारत है और हम भारतीय हैं। हमारे देश में चुनाव का गणित, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र बिलकुल भिन्न होते हैं। हम अमरीका या यूरोप नहीं हैं। करीब 90 करोड़ मतदाताओं में से अधिकतर आज भी जाति, धर्म, इलाके और चुनावी नारों के आधार पर वोट देते हैं। मतदाताओं को शराब, पैसा या किसी और लालच पर भी खरीदा जाता रहा है। ऐसे देश और चुनावी परिवेश में फेसबुक या चोरी का डाटा किसी भी दल या गठबंधन को 2019 के आम चुनाव में जिता या हरा सकता है, यह दलील हास्यास्पद लगती है। अमरीकी अखबार ‘न्यूयार्क टाइम्स’ और ब्रिटिश अखबार ‘गार्जियन’ ने हाल ही में भंडाफोड़ किया है कि मतदाताओं को प्रभावित करने के मद्देनजर ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ नामक ब्रिटिश कंपनी ने फेसबुक से डाटा चोरी किया। कंपनी का दावा है कि अमरीकी राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड टं्रप की जीत में उसकी बड़ी भूमिका रही। कंपनी ने 2010 में बिहार में जद-यू की बड़ी चुनावी जीत का श्रेय भी लिया है। 2015 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) ने इसी कंपनी के सहयोग से ऐतिहासिक चुनावी जीत हासिल की थी। 2017 के अंत में गुजरात में कांग्रेस ने इसी कंपनी की सेवाएं लीं और सीटों की संख्या बढ़ाई। यदि कंपनी की वेबसाइट को देखें, तो ऐसे ही कई बड़े दावे मिलेंगे। ये दावे, तर्क और आरोप हमें भारतीय संदर्भ में फिजूल लगते हैं। जहां तक डाटा का सवाल है, तो सबसे ज्यादा डाटा सरकार के अधीन और पास में होता है, लेकिन सरकारें फिर भी चुनाव क्यों हार जाती हैं? देश में जातीय जनगणना तो मोदी सरकार ने कराई थी, उसके बावजूद भाजपा बिहार में क्यों हारी? यह संदर्भ इसलिए उठा है, क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद का आरोप है कि 2019 के चुनावों में जीत तय करने के मद्देनजर कांग्रेस ने ब्रिटिश कंपनी ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ से 2017 में ही करार कर लिया था। राहुल गांधी ने कंपनी के सीईओ एलेक्जैंडर से भी मुलाकात की थी। कंपनी की ओर से भी दावा किया गया है कि ग्राहक की संतुष्टि के लिए उसने 25 करोड़ वोटरों का डाटा चुराया है। उसका विश्लेषण कर वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश होगी। केंद्रीय मंत्री ने राहुल गांधी से स्पष्टीकरण मांगा है। एक तरफ  कंपनी का दावा है कि उसने भारत में कांग्रेस, भाजपा, जद-यू आदि के साथ काम किया है, लेकिन दूसरी तरफ  पार्टियां किसी भी तरह के करार से साफ  इनकार कर रही हैं। पुख्ता सबूत कोई भी दिखाने को तैयार नहीं है। लिहाजा प्राथमिक स्तर पर लगता है कि मोदी सरकार को तुरंत जांच बिठानी चाहिए। भारत में करीब 24.1 करोड़ फेसबुक यूजर्स हैं। फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने यह संदर्भ उठते ही माना है कि फेसबुक से भी कुछ गलतियां हुई हैं। उन्हें दुरुस्त करने के लिए सुरक्षा के कड़े नियम और बंदोबस्त तय किए जाएंगे। जुकरबर्ग ने इस मुद्दे पर माफी भी मांगी है। जुकरबर्ग ने कहा है-हमारा ध्यान सिर्फ अमरीकी चुनाव तक ही नहीं है, बल्कि भारत, ब्राजील में होने वाले चुनाव पर भी है। वे अत्यंत महत्त्वपूर्ण चुनाव हैं। रूस के चुनाव में भी हस्तक्षेप न किया जा सके,उसके लिए भी फेसबुक ने सुरक्षा के दायरे पुख्ता किए। बहरहाल भारत में फेसबुक का इस्तेमाल बेहद औसत और सामान्य है। लोग सोशल साइट पर अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह, बच्चे के जन्म, किसी पार्टी या घूमने-फिरने के ही फोटो अपलोड करते हैं। कुछ कविताएं, छपे लेख की कटिंग, कार्टून, प्रधानमंत्री मोदी या राहुल गांधी के पक्ष-विपक्ष में टिप्पणियां आदि भी पोस्ट की जाती रही हैं। भारत में फेसबुक पर ऐसी कोई गंभीर सूचना हमने नहीं देखी, जो किसी खास वर्ग के मानस को अभिव्यक्त करती हो। तो फिर डाटा चोरी और उसके जरिए लोगों को कैसे प्रभावित किया जा सकता है? ब्रिटिश कंपनी इसी संदर्भ में विशेषज्ञ बताई जाती है। उसने अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ दुष्प्रचार किया था। नतीजा सामने है। भारत के संदर्भ में सवाल है कि क्या आम मतदाता इस कंपनी के प्रचार पर भरोसा करके भाजपा या कांग्रेस को वोट दे सकता है? बेशक ऐसे रुझान और प्रवृत्तियां हमारे लिए नई हैं, लेकिन जो देश डिजिटल होने का दावा कर रहा हो, उसकी आंतरिक सुरक्षा जरूर दांव पर है। हालांकि हमारे साइबर कानून पर्याप्त कड़े हैं, लेकिन मोदी सरकार को उनमें तुरंत संशोधन कर डाटा सुरक्षा और निजता पर आधारित बिल जरूर लाना चाहिए। प्रावधान ऐसे किए जाएं कि किसी भी नागरिक का डाटा, उसकी इच्छा के बिना, न तो इस्तेमाल किया जा सके और न ही उसकी चोरी की जा सके। निजता का उल्लंघन तो किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि चुनाव आयोग भी फेसबुक के साथ अपने सहयोगी रिश्तों की समीक्षा करेगा।


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