त्रिपुरसुंदरी कल्याणी स्तोत्रम का महत्त्व

By: Mar 31st, 2018 12:05 am

निम्नलिखित स्तोत्र भगवती त्रिपुरसुंदरी का महाशक्तिशाली तथा सिद्धिदायक स्तोत्र है। इसके पाठ से साधक को भगवती श्रीविद्या की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है तथा भगवती सदा उस पर कृपालु बनी रहती हैं…

-गतांक से आगे…

हन्तुः पुरामधिगलम परिपूर्णमानः

कू्ररः कथन्न भविता गरलस्य वेगः।

नाश्वासनाय यदि मातरिदम् तवार्द्ध

देहस्य शश्वद मृताप्लुत शीतलस्य।।

सर्वज्ञतां सदसि वाक-पटुतां प्रसूते

देवि त्वन्दघ्रि सरकी रुहयोः प्रणामः।

किंच स्फुरन्मुज्ज्वल मातपत्रम द्वे

चामरे च महतीं वसुधां दधाति।।

कल्पद्रुमैरभिमत प्रतिपादनेषु कारुण्य

वारिधि भिरम्ब भवत कटाक्षैः।

आलोकय भगवती त्रिपुरसुंदरी मननार्थ

त्वयेव भक्ति भरितम त्वयि बद्धदृष्टिम।।

हन्तेतरेष्वपि निधाय मनान्सि चान्ये

भक्ति वहन्ति किल सा-परदैव तेषु।

त्वामेव देवि मनसाह मनु स्मारामि

त्वामेव नौमि शरणम जननि त्वमेव।।

लक्षेषु सत्स्वपि तवाक्षि विलोक

नानामालोकय त्रिपुरसुंदरि मां कथंचित।

नूनम मया च सदृशं करुणैक पात्रम्

जातो जनिष्यति जनो न च जायते वा।।

ह्रीं ह्रीं मिति प्रतिदिनं जपतां तवाख्यां

किन्नाम् दुर्लभ मिह त्रिपुरा भिधाने।

माला किरीट मदवारण माननीयाम्

स्तान्सेवते मधुमती स्वयमेव लक्ष्मीः।।

सम्पत कराणि सकलेन्द्रिय नंदनानि

साम्राज्य दान कुशलानि सरोरुहाणि।

त्वद्वंदनानि दुरितोद्धरणो द्यतानि

मामेव मातरनिशं कलयंतु नान्यम्।।

कल्पोप संहरण कल्पित तांडवस्य

देवस्य खंड परशोः पर भैरवस्य।

पाशांकुशैक्ष वशरासन पुष्पबाणाः सा

साक्षिणी विजयते तव मूर्ति-रेका।।

लग्नम सदा भवतु मातरिदम् त्वदीयं

तेजः परम् बहुल कुंकुम पंक शोणम्।

भास्वत्किरीट ममृतम् कुशला वतंसम्

रूपम त्रिकोण मुदितम परमा मृताकृतम्।।

ह्रींकारत्रयसंपुटेन महता मंत्रेण संदीपितं

स्तोत्रं यः प्रतिवासरे तव पुरो मातर्जपेन्मंत्रवित।

तस्य क्षोणिभुजो भवंति वशगा लक्ष्मीश्चिरं

स्थायिनी वाणी निर्मलसूक्ति भावभरिता जागर्ति दीर्घयशः।।

निम्नलिखित स्तोत्र भगवती त्रिपुरसुंदरी का महाशक्तिशाली तथा सिद्धिदायक स्तोत्र है। इसके पाठ से साधक को भगवती श्रीविद्या की कृपा सहज ही प्राप्त हो जाती है तथा भगवती सदा उस पर कृपालु बनी रहती हैं। स्तोत्र इस प्रकार है :

कदंबवनचारिणीं मुनिकदंब कादंबिनीं

नितंबजितभूधरां सुरनितंबिनी सेविताम्।

नवांबुरुहलोचनाम् भिनवांबुद श्यामलां

त्रिलोचन कुटुंबिनी त्रिपुरसुंदरि माश्रये।।

कदंब वनवासिनीं कनक वल्लकीधारिणीं

महार्हमणि हारिणीं मुखसमुल्लसद्वारुणीम्।

दयाविभव कारिणीं विशद् लोचनीं

चारिणीं त्रिलोचनकुटुंबिनीं त्रिपुरसुंदरिमाश्रये।।

कदंब वनशालया कुचभारोल्लसंमालया

कुचोपमितशैलया गुरकृपालसद्वेलया।

मदारुणकपोलया मधुरगीतवाचालया कयापि

घननीलया कवचिता वयं लीलया।।


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