नए संदर्भों में नड्डा

By: Mar 17th, 2018 12:05 am

केंद्रीय सत्ता से आशा का प्रतीक बनकर स्थापित हुए जगत प्रकाश नड्डा की राज्यसभा में दूसरी पारी, सीधे हिमाचली सेतु पर सवार होते नए कारवां सरीखी है। राजनीति फिलहाल सरलता से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का आरोहण कर रही है, तो इस चुंबक से चिपके यथार्थ को भी समझना होगा। क्या हिमाचल का असली शिखर अब नड्डा के इर्द-गिर्द स्थापित हो चुका है या अब यही करिश्मा अगले साल लोकसभा चुनाव में परिभाषित होगा। यह इसलिए भी क्योंकि बजट सत्र से गुजर रही जयराम सरकार के लिए केंद्र की अभिव्यक्ति का जरिया नड्डा बन सकते हैं। विशेष राज्य के दर्जे को लेकर हिमाचल की वर्तमान पारी काफी हद तक केंद्रीय मंत्री नड्डा के वजूद की निशानी तभी बन सकती है, यदि आर्थिक पैमानों पर भरपूर मदद मिले। बेशक इसके मुताबिक अधोसंरचना का विस्तार दिखाई दे रहा है और जिस तरह फोरलेन व हाई-वे निर्माण पर गंभीरता दिखाई दे रही है, उसे सही परिप्रेक्ष्य में पढ़ा जा सकता है, लेकिन हिमाचली कर्ज की बैसाखियां तोड़ने का भी यही समय है। ऐसे अनेक रास्ते व वर्षों से लटके मसले हैं, जो हिमाचल को पुनः पटरी पर ला सकते हैं। बीबीएमबी से लेनदारी तथा पंजाब पुनर्गठन में फंसे वित्तीय लाभ अगर नसीब हो जाएं, तो नड्डा का यह दौर किसी शगुन के माफिक होगा। हिमाचल को अतीत में औद्योगिक पैकेज के जरिए जो संबल मिला, उसी तरह का रेल या पर्यटन पैकेज मिल जाए, तो आत्मनिर्भरता के एक साथ कई चिराग जल सकते हैं। सैन्य जरूरतों के आधार पर भानुपल्ली-बिलासपुर-मनाली रेल परियोजना तथा गगल एयरपोर्ट विस्तार की शुरुआत हो जाए, तो प्रदेश एक नई भूमिका में खड़ा होगा। इसी तरह कई सैन्य प्रतिष्ठान हिमाचल की पृष्ठभूमि को अलंकृत कर सकते हैं। रेल विस्तार को धार्मिक पर्यटन के साथ जोड़ते हुए देखें, तो ऊना से चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, कांगड़ा, चामुंडा व दियोटसिद्ध की परिधि में केंद्रीय परिकल्पना का आधार विकसित हो सकता है। पर्यटन के रास्ते केंद्र सरकार हिमाचल को अपनी राष्ट्रीय योजनाओं का प्रश्रय दे तथा अलग से हिमालयन व धौलाधार पर्यटन सर्किट पर गौर करे, तो हिमाचल की बौद्ध परंपराएं और दलाईलामा की उपस्थिति से अंतरराष्ट्रीय हाई एंड टूरिज्म की नई पहचान विकसित होगी। राजनीतिक तौर पर हिमाचल की अपनी दुरुस्ती इसलिए नहीं हो पाती, क्योंकि मात्र चार लोकसभा सांसदों को कभी बड़े पैमाने में देखा नहीं गया, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकी संबंधों के साथ प्रदेश अपने सुर ठीक करने की ख्वाहिश रखता है। कुछ केंद्रीय संस्थान इस दौरान हिमाचल के अस्तित्व के साथ जुड़े, जबकि कुछ अन्य की अभिलाषा यथावत है। राज्यसभा सांसद व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में जगत प्रकाश नड्डा के लिए बिलासपुर में एम्स, ऊना में ट्रिप्पल आईटी, पांवटा साहिब में आईआईएम और कांगड़ा जिला में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना अहम होगी। बतौर स्वास्थ्य मंत्री चंबा, हमीरपुर, नाहन व नेरचौक मेडिकल कालेजों में नड्डा की रुचि मुखातिब है। ऐसे में पहली बार केंद्र व हिमाचल के बीच रिश्तों की बुनियाद की तरह नड्डा अपनी हस्ती का विस्तार कर रहे हैं। भाजपा के केंद्र में नड्डा की सफलता का राष्ट्रीय फलक हिमाचल की किस्मत बदल सकता है। सियासी तौर पर भी हिमाचल के वर्तमान समीकरण साबित कर रहे हैं कि इस बार जयराम सरकार किस तरह भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रही है। अब तक की तमाम नियुक्तियां और मंत्रिमंडल की परिभाषा में पार्टी का संगठन अपनी उपस्थिति में अव्वल रहा है। ऐसे में सहज और स्वाभाविक आरोहण में नड्डा अपने प्रदेश की सियासी तस्वीर को पुख्ता करते हुए प्रशासनिक व आर्थिक सफर के वारिस की तरह दिखाई देते हैं। प्रदेश सरकार के लिए भी आशा की सबसे बड़ी भूमिका में केंद्र से जो मिलेगा, उसका सही मायने में प्रमाण भी यही है कि नड्डा सीधे बहुत कुछ कर सकते हैं। सत्ता के वर्तमान दौर में चमक रहे नड्डा के लिए भी यह एक ऐसा अवसर है, जहां वह जमीनी राजनीति के अर्थ से भाखड़ा व पौंग बांध विस्थापितों के चिरस्थायी मसलों को हल कर सकते हैं। भाजपा के युवा कार्यकर्ताओं में आशा की किरण बनकर उभर सकते हैं, क्योंकि जब आगामी लोकसभा चुनाव सामने होंगे तो बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा होगी और जीएसटी की गिरफ्त में आहत दुकानदारी भी अशांत होगी। प्रदेश को अगर आगामी चुनाव में भाजपा का साथ देना है, तो इसकी पांडुलिपि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को अभी से लिखनी होगी, वरना सियासी महलों के नजदीक झोंपड़ी भी विस्फोटक इरादों को शरण देने में सक्षम हो जाती है।


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