नीयत ठीक, पर नीतियों में बदलाव जरूरी

By: Mar 13th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

नीति का सही होना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। नीति सही होती है तो नेता की भ्रष्टता खप जाती है। परंतु नीति गलत होती है तो ईमानदारी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। अतः हमें नेता की नीतियों पर चर्चा पहले और ईमानदारी पर चर्चा बाद में करनी चाहिए। नरेंद्र मोदी सरकार का मूल्यांकन इस चौखटे में करना चाहिए। मोदी सरकार की ईमानदारी स्वीकार है परंतु नीतियां विवादित हैं। आर्थिक विकास दर न्यून बनी हुई है। रोजगार कम ही बन रहे हैं। किसानों की हालत खस्ता हाल बनी हुई है। छोटे उद्योग दबाव में हैं…

पूर्वोत्तर राज्यों में भारी जीत से नरेंद्र मोदी सरकार की ईमानदारी पर जनता के भरोसे की पुष्टि होती है। पूर्व की विभिन्न सरकारों द्वारा खुले आम किए जा रहे घोटालों से जनता त्रस्त हो चुकी थी। मोदी सरकार में वह एक नया युग देख रही है, लेकिन हमारी आर्थिक विकास दर 7 प्रतिशत के करीब टिकी हुई है। बेराजगारी बढ़ रही है। छोटे उद्योग दबाव में हैं। इस वस्तुस्थिति से प्रतीत होता है कि जनहित करने को नेता की ईमानदारी पर्याप्त नहीं होती है-बल्कि विशेष परिस्थितियों में नेता की ईमानदारी हानिप्रद भी हो सकती है। विषय को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। ऋग्वेद में इंद्र की महिमा का पुरजोर गुणगान किया गया है। इंद्र ने धातुओं की खोज की। वज्र बनाया। हल बनाया। उस समय मनुष्य मुख्यतः पशुपालन से जीविका चलाता था। इंद्र ने खेती शुरू की। पशुओं को जोता। अनाज का उत्पादन किया, लेकिन अनाज को सिंचाई की जरूरत थी। पशुपालक चाहते थे कि तालाबों में पड़े पानी का गर्मी के महीनों में पशुओं के पीने के लिए बचा कर रखा जाए। परन्तु इंद्र चाहते थे कि उस पानी को सिंचाई के लिए काम में ले लिया जाए। पशुपालक नहीं माने तो इंद्र ने उनके नेता वृत्र का वध कर दिया और पानी को सिंचाई के लिए छोड़ दिया। ऐसा करने से अनाज का उत्पादन बढ़ा और मनुष्य को सुकून मिला। इसलिए इंद्र की दूसरी कमियों को हिंदू परंपरा ने नजरंदाज किया है जैसे वह सुरापान करता था। एक बार उसने महर्षि गौतम के आश्रम में जाकर उनकी पत्नी के साथ सहवास किया। इंद्र को लंपट कहा जाता है। तुलना में वृत्र को ईमानदार बताया गया है।

वाल्मीकि रामायण मे कहा गया है कि ‘वृत्र का संसार मे सम्मान था। वह धर्म को जानता था और धर्म के अनुसार शासन करता था। इंद्र द्वारा बेदाग वृत्र का वध करना उचित नहीं था।’ तब आश्चर्य है कि हम लंपट इंद्र की पूजा करते है, ईमानदार वृत्र की नहीं। कारण कि इंद्र ने लंपट होने के बावजूद सही नीतियों को लागू किया। हम वृत्र की भर्त्सना करते है चूंकि ईमानदार होने के बावजूद उसने समाज को आगे बढ़ने से रोका। वह ईमानदारी से मनुष्य को पशुपालन से आगे नहीं बढ़ने देना चाहता था। इसलिए समाज ने वृत्र की ईमानदारी को नकारा और इंद्र की लंपटता को स्वीकारा। तात्पर्य है कि नीतियों का सही होना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान युग में भी हमने तमाम ईमानदार नेताओं को नकारा है। औरंगजेब निहायत ईमानदार नेता थे। न्यू वर्ल्ड इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार राज्य के खजाने को औरंगजेब जनता की संपत्ति मानते थे, अपना व्यक्तिगत कोष नहीं। राज्य के खजाने को वह अपने व्यक्तिगत खर्च में उपयोग नही करते थे। वह अत्यंत साधारण जीवन जीते थे। उन्होंने कुरान को कंठस्थ किया था। वह हज यात्रियों के लिए टोपियां बना कर गुप्त रूप से बेचते थे और इस कमाई से अपनी जीविका चलाते थे। मृत्यु के बाद उन्हें खुले आकाश के नीचे साधारण रूप से उनकी इच्छानुसार दफनाया गया। इन्हीं ईमानदार औरंगजेब द्वारा हिंदुओं पर जाजिया टैक्स लगाया गया, उनके मंदिर तोड़े गए।

उन्होंने अपने पिता को जेल मे डाला और अपने तीन भाइयों का मर्डर कराया। गुरु अर्जुन देव, गुरु तेगबहादुर तथा गुरु गोबिंद सिंह को मौत के घाट उतारा। एटलांटिक पत्रिका ने हिटलर के बारे में लिखा है कि वह 17 वर्ष की आयु में अनाथ हो गए थे। उन्होंने मजदूरी करते हुए शिक्षा प्राप्त की। वह अविवाहित थे, शाकाहारी थे, चाय तथा सिगरेट नहीं पीते थे। उनके विषय में एक मशहूर कहानी है कि नाजी नेताओं के बच्चे जब दूसरे नेताओं के घर जाते थे तो उन्हे केक, मिठाई तथा अन्य उपहार मिलते थे। वे जब हिटलर के घर गए तो उन्हे केवल कुछ सादे बिस्कुट मिले। हिटलर को अपनी पुस्तक मीन कंप्फ  से जो रायल्टी मिलती थी, उसका उपयोग वह नाजी लेखकों को सहायता देने मे करते थे। ऐसे गरीब एवं सादे हिटलर ने संपूर्ण विश्व पर युद्ध थोपा और लाखों ज्यू लोगों को मौत के घाट उतारा। स्टालिन एक मोची और धोबन के बेटे थे। उनकी मां ईसाई धर्मनिष्ट थीं। उन्होंने स्टालिन को चर्च के स्कूल में पढ़ने को भेजा। आगे स्टालिन पादरियों की स्कूल जिसे सेमिनरी कहा जाता है, में पढ़ने गए। परंतु फीस अदा न कर पाने के कारण उन्हे सेमिनरी को छोड़ना पड़ा। कुछ समय तक वह बच्चों को पढ़ाते रहे और क्लर्क का कार्य किया। ऐसे गरीब और निष्ठावान स्टालिन ने अपने अनेक विरोधियों को मौत के घाट उतारा। उनके मुख्य विरोधी ट्राटस्की रूस से भाग कर दक्षिण अमरीका को गए। वहां भी स्टालिन ने उन्हे नही छोड़ा। गैंती से उनका मर्डर कराया। स्टालिन के समय लाखों किसान भुखमरी से मरे। आशय है कि नेता की ईमानदारी पर्याप्त नहीं होती है। इतिहास बताता है कि भ्रष्ट नेताओं की तुलना में ईमानदार नेताओ ने समाज को बहुत ज्यादा नुकसान किया है। इस प्रकार हमारे सामने नेता के मूल्यांकन के तीन स्तर उपलब्ध हैं। श्रेष्ठ नेता वह है जो व्यक्तिगत स्तर पर ईमानदार है और सही नीतियां लागू करता है जैसे राम, अब्रहाम लिंकन, नेल्सन मंडेला और मोहनदास गांधी। निकृष्ट नेता वह है जो भ्रष्ट है और गलत पॉलिसी लागू करता है जैसे इंडोनशिया के सुकार्नो अथवा यूगांडा के ईडी अमीन। इन दोनों प्रकार के नेताओं का मूल्यांकन स्पष्ट एवं निर्विवादित है। बीच में दो प्रकार के नेता पड़ते हैं। कुछ ईमानदार होते हैं परंतु गलत पॉलिसी लागू करते है जैसे वृत्र, औरंगजेब, हिटलर और स्टालिन।

अन्य व्यक्तिगत स्तर पर भ्रष्ट होते है परंतु सही नीतियां लागू करते हैं जैसे इंद्र। इन दोनों के बीच चयन करने में सावधानी बरतनी चाहिए। इतिहास ने लंपट इंद्र को सराहा है और ईमानदार वृत्र, औरंगजेब, हिटलर तथा स्टालिन को नकारा है। कारण कि नीति का सही होना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। नीति सही होती है तो नेता की भ्रष्टता खप जाती है। परंतु नीति गलत होती है तो ईमानदारी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। अतः हमें नेता की नीतियों पर चर्चा पहले और ईमानदारी पर चर्चा बाद में करनी चाहिए। नरेंद्र मोदी सरकार का मूल्यांकन इस चौखटे में करना चाहिए। मोदी सरकार की ईमानदारी स्वीकार है, परंतु नीतियां विवादित है। आर्थिक विकास दर न्यून बनी हुई है। रोजगार कम ही बन रहे हैं। किसानों की हालत खस्ता हाल बनी हुई है। छोटे उद्योग दबाव में हैं। मोदी सरकार का अंतिम रिपोर्ट कार्ड आना बाकी है। उत्तीर्ण होने के लिए मोदी को इन समस्याओं के निदान को सही पॉलिसी भी लागू करनी होगी।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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