नेताओं में लघुता का बड़प्पन

By: Mar 18th, 2018 12:05 am

जो जितना अल्प ज्ञानी है, उसे उतना बड़ा विद्वान बनाने की होड़ छिड़ी है। औसत बुद्धि को भी पछाड़ कर हम कमतरी को सम्मान देने में जुटे हैं। जो जितना बड़बोला, वह उतना माननीय और तुल्य। जो जितना घाघ, वही कौटिल्य। चाणक्य की कथित नीतियों में राजनीति धूल फांक रही है। बुद्धि को जैसे मूर्खता जांच रही है…

ज्ञान को किसी विशेष विचारधारा से बद्ध कर हम अपना प्रहसन कर दिया करते हैं। किसी व्यवस्था विशेष के गुरुत्व में दबकर अपने शिष्यत्व की कब्र भी खोद लिया करते हैं। यह काल अपने क्षुद्रत्व और लघुता के लिए विशेष हो चला है। कथित महान होने की क्षुधा, सुरसा की भांति भूखी है। थोथे को बढि़या चना बताकर, ढोल पीटा जा रहा है। मानो आकृति के फीते से समाज गढ़ा जा रहा है। जो जितना अल्प ज्ञानी है, उसे उतना बड़ा विद्वान बनाने की होड़ छिड़ी है। औसत बुद्धि को भी पछाड़ कर हम कमतरी को सम्मान देने में जुटे हैं। जो जितना बड़बोला, वह उतना माननीय और तुल्य। जो जितना घाघ, वही कौटिल्य। चाणक्य की कथित नीतियों में राजनीति धूल फांक रही है।

बुद्धि को जैसे मूर्खता जांच रही है। कौशल के आगे कुशलता नतमस्तक है। चढ़ता अब नेता है, सूरज मानो अस्त है। भाषा की प्रांजलता मंचों की शान है। लफ्फाजी के आगे दी जा रही जान है। रौशनी की बीनकर अंधेरे को प्रश्रय। आस्था को तवज्जोह, मारा जा रहा संशय। सवाल न करने को अहमियत देने से हम निरंकुशता की चादर बिछा रहे हैं। लोकतंत्र में मानो राजतंत्र ला रहे हैं। गरिमा, भाषा की नहीं, ज्ञान की होती है।

आपके नेता असहज हैं, अविवेकी हैं तो यह आपकी कमजोरी है। आप अपनी नादानियों से बचकर लोकतंत्र को मजबूत नहीं कर सकते। आप अपनी मूर्खताओं के जल से नेताओं का अभिषेक करोगे तो लोकतंत्र का मंत्र भुला दिया जाएगा। उनकी बढ़ रही शक्ति की गठरी आप की कमजोर समझ का धमाल है। उनके चरणों की धूल बनना छोडि़ए। उन्हें माथे का तिलक न बनाइए। वे आपकी किस्मत का राज नहीं। वे आपके भाग्य का ताज नहीं।

अपने कौशल पर भरोसा कीजिए। अपने संशय के तीर चलाएं। उनकी आंख में आंख डाल चिल्लाएं। वे हमारे कानों पर बैठी जूं के अलावा कुछ नहीं। कान पर चपत नहीं धरनी, थोड़ा होशियारी से नाखून की पकड़ से है धर लीनी। आइए, कमतर बुद्धि का यशोगान छोड़ें। जहां के हैं वे, आइए, उनको वहीं जा मोड़ें। भाषणों के शोर को अलविदा कहें। अपने वोट के जोर को गहरे से गहें।


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