नौकरी, व्यापार और सत्ता का रिश्ता

By: Mar 1st, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

हिंदुत्व एक बड़ी लहर है, पर इस अकेली लहर के सहारे बहुमत मिल जाए, ऐसा मुश्किल लगता है। लब्बोलुआब यह कि जब नौकरियां नहीं हैं और व्यापार बढ़ने के आसार भी कम हैं तो चुनाव में वर्तमान सरकार को दोबारा जनता का विश्वास मिलने में अड़चनें आएंगी ही। नौकरी, व्यापार और सरकार का यही रिश्ता है और जो राजनीतिज्ञ इस सच की उपेक्षा करेगा, वह या तो सत्ता तक पहुंचने के लिए गठबंधन पर निर्भर रहेगा या फिर विपक्ष में सिमट जाएगा…

हमारे देश में विभिन्न रोजगार कार्यालयों में लगभग पांच करोड़ बेरोजगार युवकों के नाम दर्ज हैं और इनमें हर रोज औसतन तीस हजार नाम और जुड़ जाते हैं। यह सच है कि हमारे देश में इस समय युवाओं की बहुसंख्या है, लेकिन इसके साथ ही कड़वा सच यह भी है कि जहां देश में हर रोज औसतन सत्तर हजार नए युवक-युवतियां मतदान की उम्र पा लेते हैं, वहां उनमें से सिर्फ 500 युवा ही किसी रोजगार में लग पाते हैं। इस तरह हर रोज बेरोजगारों में संख्या में विस्फोटक वृद्धि हो रही है। देश में असंतोष और आंदोलनों का यह सबसे बड़ा कारण है।

देश की कुल आबादी के 77 प्रतिशत घरों में नियमित आय का कोई साधन नहीं है और निजी क्षेत्र की नौकरियों में लगे 90 प्रतिशत लोगों का वेतन पंद्रह हजार रुपए मासिक के आसपास है। मनरेगा योजना के अंतर्गत आने वाले लोगों को छह हजार रुपए प्रति माह की आय ही प्राप्त हो पाती है। इस सारे जोड़-घटाव का मतलब यह है कि देश में ज्यादातर घरों की औसत आय 6,000 रुपए से 15,000 रुपए प्रति माह के बीच है। जिससे रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं हो पाती, खुशी-गमी और बीमारी की बात तो छोड़ ही दीजिए। एक समय था जब गांव के लोग शहर इस उम्मीद में आते थे कि शहर में आकर उन्हें रोजगार मिल जाएगा, लेकिन निवेश की कमी और मंदी की मार से परेशान निजी क्षेत्र में भी नई नौकरियां पैदा नहीं हो रही हैं। रीयल एस्टेट को नौकरियों और रोजगार का बड़ा स्रोत माना जाता था लेकिन नोटबंदी और जीएसटी की मार से त्रस्त यहां भी मंदी का माहौल है।

हाल के दिनों में हमने आरक्षण के लिए उग्र आंदोलन देखे हैं, लेकिन सरकारी नौकरियां इतनी कम हैं और मांग इतनी ज्यादा है कि यदि शत-प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया जाए तो भी समस्या का समाधान नहीं होगा। बाकी कसर हमारी अक्षम शिक्षा प्रणाली ने पूरी कर दी है जो अयोग्य शिक्षितों को जन्म देती है। इससे समस्या और भी विकराल होती जा रही है। जिन बच्चों के पास डिग्रियां हैं, उनमें से अधिकांश अपनी शिक्षा के अनुरूप रोजगार के काबिल नहीं हैं। बढ़ता आटोमेशन भी नौकरियां खा रहा है और नौकरियों के बहुत से पुराने पद समाप्त होते जा रहे हैं। यही नहीं, रोजगार के बहुत से अवसरों पर भी इसका असर पड़ा है। इस वर्ष कई राज्यों में चुनाव होंगे तथा यदि राज्यों और लोकसभा के चुनाव साथ-साथ न हों, तो भी अगले वर्ष के शुरू में लोकसभा के चुनाव हो जाएंगे। मोदी सरकार इस समय गहरी सांसत में है। नोटबंदी और जीएसटी ने तो व्यापार चौपट किया ही, दानवाकार उद्यमों ने छोटे व्यापारियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। न काला धन वापस आया है, न रोजगार बढ़े हैं। स्मार्टफोन और इंटरनेट के मेल से युवाओं में भी राजनीति की समझ बढ़ी है। फसल की पूरी कीमत न मिल पाने से किसानों में असंतोष की स्थिति है। कुल मिलाकर व्यापारी परेशान हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और युवा वर्ग निराश है। इसका मिला-जुला परिणाम हमें गुजरात और राजस्थान में देखने को मिला। गुजरात में खुद प्रधानमंत्री की जनसभाओं के बावजूद भाजपा पिछली विधानसभा की सीटों की गिनती तक भी नहीं पहुंच पाई। हिमाचल में भी जहां भाजपा कांग्रेस को हटाकर गद्दीनशीन हुई है, वहां वह मुख्यमंत्री पद के अपने उम्मीदवार को भी नहीं जिता पाई। गुजरात के उपचुनावों में भाजपा तीनों सीटें हार गई, जबकि वहां वह सत्ता में है और उपचुनावों में सत्ता पक्ष के लिए सरकारी मशीनरी और पूरी पार्टी का जोर शामिल होता है।

दरअसल सन् 2014 में यूपीए-2 से लोग बेतहाशा परेशान थे। भ्रष्टाचार चरम पर था। महंगाई की मार सबको सता रही थी और डा. मनमोहन सिंह बेबस थे। राहुल गांधी किसी रूप में भी नरेंद्र मोदी के समकक्ष नहीं आते थे। इसके विपरीत नरेंद्र मोदी एक सक्षम प्रशासक और मजबूत नेता के रूप में उभर रहे थे। उनके आकर्षक नारों और डिजिटल मीडिया में उनकी बढ़त ने उनके पक्ष में एक मजबूत लहर पैदा कर दी। मोदी के पक्ष में चली लहर का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में वहां के क्षेत्रीय दलों का सफाया हो गया और देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र में भी भाजपा ने शिवसेना से बाजी मार ली। समूचे उत्तर व पश्चिम भारत में मोदी की मजबूत लहर के चलते भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिल गया और देश के सबसे पुराने और बड़े राजनीतिक दल को 44 सीटों की अपमानजनक संख्या पर सिमट जाना पड़ा। तब मोदी की लहर बनाने के लिए बहुत से लोग उनके साथ जुड़े थे। बहुत से उद्यमियों का समय और श्रम मोदी को अनायास ही मिल गया, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। मोदी का साथ देने वाले कई लोग उनसे निराश होकर छिटक चुके हैं। विकास के नारे तो बहुत लगे, लेकिन असली विकास कहीं दिख नहीं रहा है। जब लोग बेरोजगार हों तो उन्हें विकास के नारे सुनाई ही नहीं देते। हिंदुत्व का झंडा अब भी मोदी का बड़ा सहारा है और वह ध्रुवीकरण की कूटनीति पर चल रहे हैं। देश में हिंदुओं का बहुमत है, इसलिए लोकसभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभर सकती है लेकिन ऐसा मुश्किल लगता है कि भाजपा के पक्ष में मोदी कोई लहर फिर से चला पाएं। मोदी तभी प्रधानमंत्री बने रह सकते हैं, यदि कुछ बड़े राज्यों में अच्छी संख्या में सीटें जीत सकें।

बीते वर्षों में मोदी ने बहुत सी योजनाओं का सूत्रपात किया, आकर्षक नारे दिए, स्मार्ट पुलिस, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत अभियान, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, उज्ज्वला योजना आदि। लेकिन जैसा कि अकसर होता है, इन योजनाओं का जमीन पर प्रभाव ऐसा नहीं है जिससे मोदी की छवि में चार चांद लगते। सर्जिकल स्ट्राइक एक बड़ा कदम था, लेकिन उसके बाद हम हर रोज पाक द्वारा सीमा के उल्लंघन को झेल रहे हैं। रोज गोलीबारी होती है, जवान शहीद होते हैं और आम नागरिकों का जीना मुहाल है। सेना के ठिकानों पर लगातार होने वाले हमलों ने आग में घी ही डाला है। सरकार के पास न महंगाई का कोई इलाज है, न बेरोजगारी का, न भ्रष्टाचार का और न आतंकवाद का। इन सभी मुद्दों पर मोदी की असफलता जगजाहिर है। मोदी भाजपा में मजबूत हुए तो भाजपा को नुकसान सहना पड़ा, क्योंकि वह पार्टी से भी बड़े हो गए। आज भाजपा का हाल यह है कि मोदी नहीं हैं तो भाजपा नहीं है। भाजपा की समस्या यह है कि अब मोदी कोई ऐसा बड़ा विचार नहीं दे पा रहे हैं, जिससे कोई नई लहर पैदा हो सके।

हिंदुत्व एक बड़ी लहर है, पर इस अकेली लहर के सहारे बहुमत मिल जाए, ऐसा मुश्किल लगता है। लब्बोलुआब यह कि जब नौकरियां नहीं हैं और व्यापार बढ़ने के आसार भी कम हैं तो चुनाव में वर्तमान सरकार को दोबारा जनता का विश्वास मिलने में अड़चनें आएंगी ही। नौकरी, व्यापार और सरकार का यही रिश्ता है और जो राजनीतिज्ञ इस सच की उपेक्षा करेगा, वह या तो सत्ता तक पहुंचने के लिए गठबंधन पर निर्भर रहेगा या फिर विपक्ष में सिमट जाएगा।

ई-मेल : indiatotal.features@gmail.com


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