पश्चिम बंगाल में हिंसा का तांडव

By: Mar 31st, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

ममता बनर्जी की मंशा दोषियों को सजा दिलवाने में इतनी नहीं है। उनकी मंशा इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का राजनीतिक लाभ उठाने की लगती है। ममता बनर्जी को आने वाले चुनावों में मुसलमानों के एकमुश्त वोट चाहिए। उन्हें हिंदुओं के वोटों पर भरोसा नहीं है। हिंदुओं के वोट तो दस जगह बंटेंगे। साम्यवादी, कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी, लालूवादी, जनता दल और न जाने कौन-कौन उनके वोटों के दावेदार निकल आएंगे। लेकिन एक बार मुसलमान वोटर काबू आ जाएं, तो वे मतदान केंद्रों पर एकमुश्त बटन दबाएंगे। ममता इसी रणनीति पर चल रही लगती हैं…

पश्चिमी बंगाल में राम नवमी के दिन हिंसा का जो तांडव हुआ और जो अभी भी किसी सीमा तक जारी है, उसकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। जो भी दोषी हैं वे चाहे किसी भी मजहब को मानने वाले हों उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए। लेकिन यह तभी संभव है, यदि राज्य सरकार प्रदेश में न्याय व्यवस्था बहाल करने में रुचि रखती हो। दुर्भाग्य से पश्चिम बंगाल में आम जन को वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की इसी मंशा पर संदेह है। ममता बनर्जी की मंशा दोषियों को सजा दिलवाने में इतनी नहीं है। उनकी मंशा इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का राजनीतिक लाभ उठाने की लगती है। दरअसल पश्चिम बंगाल में राम नवमी के दिन भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस दोनों ही प्रदेश भर में शोभा यात्रा निकालते हैं। बंगाल में राम नवमी के दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है। कुछ प्रांतों में यह पूजा दशहरा में विजय दशमी के दिन की जाती है। इतने बड़े देश में अलग-अलग परंपराएं होना किसी आश्चर्य का विषय नहीं है। लेकिन जब से पश्चिम बंगाल में बंगलादेश से आए अवैध शरणार्थियों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है, तब से उन्होंने शस्त्र पूजा पर आपत्ति करना शुरू कर दिया है। अवैध रूप से बंगलादेश से भारत में घुस आए इन लोगों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि प्रदेश के अनेक स्थान मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए हैं। शायद यह मामला भी ऐसे ही चलता रहता। लेकिन जिन स्थानों पर मुसलमान बहुसंख्यक हो जाते हैं, वहां उनका व्यवहार बदलने लगता है। इसलिए उन्होंने अब शस्त्र पूजा की पारंपरिक विरासत को चुनौती देना शुरू कर दिया है।

लेकिन वे विरोध किसी मुस्लिम संगठन के माध्यम से नहीं करते। वह यह विरोध सत्ता प्रतिष्ठानों के माध्यम से करते हैं। जिन दिनों पश्चिम बंगाल में सत्ता वामपंथियों के हाथ में थी, तब वे उनके साथ ही नहीं थे, बल्कि उनके संगठन में भी घुसे हुए थे। जब ममता बनर्जी ने साम्यवादियों को पश्चिम बंगाल की सत्ता से निकाल बाहर किया, तब वे नई परिस्थिति के अनुकूल तृणमूल कांग्रेस में घुस गए। अब वे तृणमूल कांग्रेस का नकाब पहन कर राम नवमी और शस्त्र पूजा का विरोध कर रहे हैं। ममता बनर्जी को इससे एक दूसरा लाभ भी है। वह कह सकती हैं कि तृणमूल कांग्रेस राम नवमी का विरोध नहीं कर रही। उनकी पार्टी तो खुद आगे आकर राम नवमी पर भगवान राम की शोभा यात्रा निकाल रही है। उनकी पार्टी के अंदर घुसे हुए सांप्रदायिक सोच के अवैध बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठिए, जब राम नवमी के अवसर पर निकाली जा रही शोभा यात्रा पर पत्थर बरसाते हैं, तो आसानी से इसे दो राजनीतिक पार्टियों का झगड़ा कह कर प्रचारित किया जा सकता है। लेकिन वास्तव में यह दो राजनीतिक पार्टियों का झगड़ा नहीं है। प्रदेश में पिछले सत्तर साल से वैध-अवैध मुसलमानों की संख्या बढ़ जाने के कारण, यह उनका अपनी शक्ति का आभास कराने का एक खास अंदाज है। इसके लिए वे अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग राजनीतिक दलों का अपनी सुविधा और रणनीति के अनुसार प्रयोग करते हैं। पश्चिम बंगाल में उनकी सुविधा की पार्टी फिलहाल ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी इस गोरखधंधे को समझ नहीं पा रही हैं। वे इसे बखूबी समझ रही होंगी। जिस ममता ने लाल झंडे वालों के तीस साल के सिंहासन को एक झटके से गिरा दिया, वह हरे झंडे वालों की मंशा समझ न पा रही हों, ऐसा माना ही नहीं जा सकता। फिर वे उनका साथ क्यों दे रही हैं? इसका उत्तर सीधा है। ममता बनर्जी को आने वाले चुनावों में मुसलमानों के एकमुश्त वोट चाहिए। उन्हें हिंदुओं के वोटों पर भरोसा नहीं है। हिंदुओं के वोट तो दस जगह बंटेंगे। साम्यवादी, कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी, लालूवादी, जनता दल और न जाने कौन-कौन उनके वोटों के दावेदार निकल आएंगे। लेकिन एक बार मुसलमान वोटर काबू आ जाएं, तो वे मतदान केंद्रों पर एकमुश्त बटन दबाएंगे। फिर ममता बनर्जी को कोलकाता के सचिवालय में दोबारा आने से कौन रोक सकता है? ममता फिलहाल इसी रणनीति पर चल रही लगती हैं। लेकिन बंगाल में मुसलमानों को खुश करने के लिए हिंदुओं का पिटना बहुत जरूरी है। इसलिए वह पिट रहा है। संयोग था कि पीटने के लिए राम नवमी का अवसर आ गया। न आता तो कोई और बहाना ढूंढा जा सकता था। मुसलमानों के वोट की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह बंटता नहीं है, एकमुश्त पड़ता है। हिंदू का वोट बंटता है। इसलिए कोई भी पार्टी उसका पीछा उस शिद्दत से नहीं करती, जिस शिद्दत और मेहनत से मुसलमान वोट का पीछा करती है। हिंदू वोट तो जिस के हिस्से जितना आना है, उतना आएगा ही। जीतने के लिए किसी के डिब्बे में एक साथ गिरेगा, वह मुसलमान वोट ही होगा। ममता उसी एकमुश्त वोट के लिए ताना-बाना बुन रही लगती हैं। इस वोट की कीमत ममता के लिए एक और लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण हो गई है। पिछले कुछ महीनों से उन्हें पश्चिम बंगाल की बजाय सारे हिंदुस्तान का नेता बनने की धुन सवार हो गई है। इसलिए वह सारी पार्टियों को अपने साथ चलने के लिए दाना-दुनका फेंक रही हैं।

उनकी आंख प्रधानमंत्री के पद पर आकर ठहर गई है। इस में कुछ बुरा भी नहीं है। जब देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, चंद्रशेखर, चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बन सकते हैं, जिनके पल्ले कुछ नहीं था, तो ममता बनर्जी प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकती? फिर उसने तो लाल सलाम वालों को धूल चटाई है। लेकिन फिर भी विरोधी पार्टियां उनकी छाया के पीछे तभी चलेंगी यदि उसके पल्ले कुछ होगा, तो क्यों न इन मुसलमानों को पल्ले बांध लिया जाए। इसलिए पूरे मुर्शिदाबाद, बर्धमान, पुर्लिया, मिदनापुर, आसनसोल, दुर्गापुर सब जगह मारा-मारी हो रही है। ममता द्वारा कुछ पल्ले बांध लेने का अनुष्ठान किया जा रहा है। मुसलमानों को लेकर प्रगतिवाद के नाम पर सांप्रदायिक राजनीति करने वाले भी जानते हैं कि ऐसे मौके पर किसी भाजपा, आरएसएस या विश्व हिंदू परिषद के किसी नेता को पकड़ने का टोटका करना पड़ता है। ममता बनर्जी की सरकार ने वह भी कर लिया है। प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष को गैर जमानती धाराओं में बांध दिया है। अब तो मुगैंबो खुश हुआ ही होगा। इसी को खुश करने के लिए ममता ने राम नवमी को हथियार बनाया। बहरहाल प्रदेश हिंसा की आग में जल रहा है।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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