बिलासपुर में 1930 में हुआ भूमि बंदोबस्त आंदोलन

By: Mar 28th, 2018 12:05 am

भूमि बंदोबस्त संबंधी आंदोलन 1930 ई. में बिलासपुर में फिर हुआ था। इसको दबाने के लिए भी लाहौर के रेजिडेंट ने एडवर्ड वेकफील्ड के साथ कुछ सैनिक इस भूमि-आंदोलन को दबाने के लिए भेजे गए। अंत में राजा को उनकी बात माननी पड़ी। इस प्रकार ये दोनों आंदोलन अपने  उद्देश्य में सफल रहे…

जन आंदोलन व पहाड़ी रियासतों का विलय

इस दृश्य  को देखकर वहां एकत्रित भीड़ भड़क उठी। लोगों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हो गई। कई प्रदर्शनकारी शहीद हुए। यह देखकर एक व्यक्ति गुलाबा राम ने तहसीलदार निरंजन सिंह पर गोली चला दी।  लोगों ने घायल निरंजन सिंह को जलते हुए जुग्गा में फेंक दिया। इस पर पुलिस सिपाही भाग कर बिलासपुर पहुंचे। राजा ने अंग्रेज सरकार से सहायता लेकर गेहड़वीं के इस विद्रोह को दबा दिया। 140 ब्राह्मण परिवार रियासत को छोड़कर कांगड़ा चले गए। काहन सिंह को पकड़ कर कैद कर दिया और उस पर दस हजार रुपए दंड के तौर पर लगाए। गुलाबा राम को भी छह वर्ष की कड़ी कैद की सजा देकर सरीऊन किले में बंदी बना दिया। भूमि बंदोबस्त संबंधी आंदोलन 1930 ई. में बिलासपुर में फिर हुआ था। इसको दबाने के लिए भी लाहौर के रेजिडेंट ने एडवर्ड वेकफील्ड के साथ कुछ सैनिक इस भूमि-आंदोलन को दबाने के लिए भेजे गए। अंत में राजा को उनकी बात माननी पड़ी। इस प्रकार ये दोनों आंदोलन अपने  उद्देश्य में सफल रहे। हिमाचल प्रदेश में 18वीं से 20वीं शताब्दी तक हुए विभिन्न आंदोलनों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार से है।

1862 में सुकेत में जन-आंदोलन: राजा उग्रसेन (सन् 1836-1876) का वजीर नरोत्तम एक अत्याचारी प्रशासक था। जनता उससे बहुत दुखी थी। उसने कुछ ब्राह्मण परिवारों पर दंड लगाया। लोगों ने इसका विरोध किया और गिरफ्तार करने की मांग की, परंतु राजा यह कार्य आगे टालता रहा। राजा के पुत्र रुद्र सेन ने भी उस वजीर का विरोध किया। अंत में राजा ने उसे हटाकर उसके स्थान पर धुंगल को वजीर बनाया। इसने भी उच्च वर्ग के लोगों से भारी दंड वसूल करने आरंभ कर दिए। एक दिन धुंगल वजीर पहाड़ी क्षेत्र के  दौरे पर गया हुआ था। वहां पर लोगों ने उसे पकड़कर ‘गढ़-चवासी’ स्थान पर बारह दिन तक बंदी बना कर रखा। उसे तभी छोड़ा जब राजा ने उसे छोड़ने के आदेश दिए। राजा ने गढ़-चवासी में जाकर लोगों  की शिकायतें सुनी। राजा ने धुंगल वजीर के अपराधों को देखकर उसे बीस हजार रुपए जुर्माना किया और नौ महीने कैद की सजा दी। इस विद्रोह को सुकेत में ‘दूम्ह’ कहते हैं।

नालागढ़ आंदोलन 1877 ई : राजा ईश्वरी सिंह जून 1877 में हिंडूर की गद्दी पर बैठा। उसके समय में गुलाम कादिर खान राज्य का वजीर था। उसने इस राजा के शासन संभालते ही प्रजा पर नए कर लगाए और भूमि लगान बढ़ा दिए। प्रजा के कर का बोझ असहनीय हो गया। किसान बढ़ा हुआ लगान देने में असमर्थ हो गए। राजा पर अनुनय- विनय का कोई असर नहीं हुआ और वजीर ने कर व लगान कम करने से इनकार कर दिया। लोगों पर रोष बढ़ गया और उन्होंने लगान देने से साफ मना कर दिया। लोगों ने सभाएं की, जुलूस निकाले और बढ़े हुए करों का विरोध किया।


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