बोझ न बने पशुधन

By: Mar 5th, 2018 12:07 am

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालयन नीति अभियान

आज कल भारत के अनेक भागों में लावारिस गोवंश की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जिससे किसानों की फसलों पर इनका हमला चिंता का कारण बनता जा रहा है। हिमाचल में भी लगभग 30 हजार पशु लावारिस हैं, किसानों का कार्य पहले ही अनेक कारणों से घाटे का सौदा बनता जा रहा है। किसान  ऋणग्रस्त हो कर आत्महत्या जैसे वीभत्स कदम उठाने पर बाध्य हो रहे हैं। लावारिस पशुओं के फसलों पर हमले किसानों की कमर तोड़ने का काम कर रहे हैं, हालांकि किसान ही पशुपालक भी है। उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र तक लाखों अनुत्पादक गउएं और बैल सड़कों पर घूम रहे हैं। अखबारें रोज इन खबरों से भरी रहती हैं किंतु समाधान नहीं निकल रहा है। जिस पशु को धन कहा जाता था वह बोझ क्यों बन गया, इस बात पर गहन विचार करने की जरूरत है। इस दिशा में यदि साहसिक कदम नहीं उठाए गए, तो गोरक्षा के नाम पर तस्करों से बचाने वाले प्रयास पाखंड ही साबित होंगे। असल काम गोपालन के प्रति श्रद्धा पैदा करने और गोपालन को लाभकारी व्यवसाय बनाने का है। बेरोजगारी के बढ़ते प्रकोप में कोई भी लाभकारी काम को क्यों छोड़ेगा? गोवंश को बचाने के लिए गोसदन खोलने जैसे कार्य भी सीमित स्तर तक ही समस्या के समाधान में सहायक हो सकते हैं। लाखों की संख्या में आंशिक या पूर्णतः अनुत्पादक हो चुके गोवंश को स्थायी तौर पर गोसदनों में पाला जा सके। यह कोई आसान कार्य नहीं है, आखिर इसके लिए इतना पैसा कहां से आएगा? ऐसी पहलें आपद धर्म के रूप में तो चल सकती हैं किंतु मुख्य धारा व्यवस्था नहीं बन सकती हैं, इसलिए इस समस्या के समाधान के लिए दो मोर्चों पर संघर्ष करने की जरूरत होगी। पहला मोर्चा है सांस्कृतिक और श्रम निष्ठा का। गाय की उपयोगिता और गाय के महत्त्व को भारतीय कृषि और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में अगली पीढ़ी तक शिक्षा के माध्यम से पंहुचाना। श्रम आधारित उत्पादक कमाई को ज्यादा सम्मानजनक मानना, इस जीवन मूल्य की स्थापना करनी होगी। देखा जा रहा है कि पढ़े लिखे लोग मेहनत से 10 हजार कमा सकने के अवसरों के बजाय दो- चार हजार रुपए के सफेद कॉलर रोजगार के चक्कर में रहते हैं।

श्रम को समाज में वह स्थान नहीं मिलता, जो अनुत्पादक सफेद कॉलर रोजगार को मिल जाता है। दूसरा मोर्चा है पशुपालन को लाभकारी व्यवसाय के रूप में प्रतिष्ठित करना। ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि अनुत्पादक गाय और बैल भी पालना लाभकारी हो सके। इसलिए प्रचलित सोच से अलग करने की जरूरत है। एक पशु को कम से कम एक मास में 2000 रुपए का चारा चाहिए इसलिए एक पशु गैर दुधारू गाय और बैल कम से कम 3000 रुपए प्रति मास कमा सके। दो हजार पशु का खर्चा और एक हजार पालक का मेहनताना। साथ ही धीरे- धीरे चारे के उत्पादन को चरागाहों में बढ़ा कर, सस्ता चारा उपलब्ध करवा कर गोपालक के लाभ को बढ़ाया जा सकता है। गैर दुधारू पशु गोबर, गोमूत्र और पशु शक्ति दे सकता है। गोबर से यदि गोबरगैस बनाई जाए, तो अच्छी खाद भी मिल जाएगी और गैस को व्यावसायिक रूप में सिलिंडर पैक करके बेचा जा सकता है। जिसका प्रयोग रसोई के ईंधन के अलावा वाहनों के ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है। इससे पेट्रोलियम आयात में कमी आएगी, स्वच्छ ईंधन भी उपलब्ध होगा। गोमूत्र को जीवामृत खाद बना कर कमाई का साधन बनाया जा सकता है।

गोमूत्र का पानी में 2ः घोल बना कर यदि फसलों पर छिड़काव किया जाए, तो यूरिया के प्रयोग को बहुत कम किया जा सकता है। इस दृष्टि से गोमूत्र के व्यावसायिक प्रयोग को विकसित करने की जरूरत है। पशु शक्ति के प्रयोग को जहां-जहां संभव हो, प्रोत्साहित करना चाहिए। चारा कटाई, देशी कोल्हू, आटा चक्की जैसी छोटी-छोटी मशीनें विकसित करनी चाहिए। इसके अलावा बैलों  और बांझ गायों से भी जनरेटर चलाने का काम लिया जा सकता है। एक  पशु एक किलो वाट बिजली पैदा कर सकता है। दिन में यदि 8 घंटे काम किया जाए तो चार पशुओं से चलाने वाले जनरेटर से 32 यूनिट बिजली बनाई जा सकती है। लगभग 150 रुपए कमाए जा सकते हैं, यानी कुछ घास का खर्च निकल सकता है। 10 से 20 पशुओं के ऐसे फार्म बना कर एक-दो आदमियों को काम दिया जा सकता है। इसके साथ दो दुधारू पशु रख  आय को बढ़ाया जा सकता है। दूध की कीमत भी लाभदायक बनाने के प्रयास करने होंगे। गो सदन बनाने के साथ-साथ उन्हें ऐसे आधुनिक पशुपालन के प्रशिक्षण स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए, जिससे किसानों को ही लाभकारी पशुपालन में लगाया जा सके, जिनका इस कार्य में अनुभव भी है। इससे जैविक कृषि को भी प्रोत्साहन मिल सकेगा और किसान मंहगी रासायनिक खेती से  छूट  कर्ज से मुक्ति की दिशा में बढ़ सकेगा। इस कार्य को आगे बढ़ाने  के लिए पशु चालित उपकरण बनाने के लिए उद्योगों को भी जोड़ना पड़ेगा, जिससे नए रोजगार पैदा होंगे। मशीनी खेती की तर्ज पर ही पशु शक्तिचालित उपक्रमों को आर्थिक अनुदान देने की जरूरत होगी। कालांतर में पशु अपना खर्च निकालने की स्थिति में आ कर रोजगार भी पैदा कर सकेगा। शुरू में सरकार दो-तीन ऐसे प्रयोगात्मक गोवंश संरक्षण केंद्र खोल कर गोपालकों को प्रशिक्षित करने का काम आरंभ करे, तो शीघ्र ही ऐसा ढांचा खड़ा हो जाएगा जिससे प्रदर्शित लाभ लोगों को इस व्यवसाय के लिए आकर्षित भी करेगा और इसके व्यापक प्रसार की योग्यता भी हासिल कर लेगा।


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