मोदी या सिस्टम, किसे बदलें ?

By: Mar 29th, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

मोदी ने बहुत से नारे दिए, लेकिन उन्हें जल्दी ही समझ आ गया कि नौकरशाही से लड़ना और घाटे के सरकारी उपक्रमों को बंद करना जनहित का कार्य तो हो सकता है, पर फिर अगला चुनाव जीतना तो दूर, राज्यों के विधानसभा चुनाव भी नहीं जीत पाएंगे। इसलिए जिस प्रकार राजनीति को ‘साफ’ करने का नारा देकर राजनीति में आए अरविंद केजरीवाल बड़ी बेशर्मी से व्यवस्था का हिस्सा बन गए, वैसे ही प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी शक्तियों के लालच में नैतिक पतन की पराकाष्ठा पर पहुंच गए…

मैंने कोई तीर नहीं मारा था, यह सामान्य ज्ञान की बात थी। बैंक घोटाला सामने आते ही मैंने कहा था कि यह संभव ही नहीं है कि ऐसा सिर्फ किसी एक बैंक के साथ हुआ हो और यह सिर्फ एक व्यक्ति या एक परिवार तक सीमित हो। देश के सिर्फ 20 सर्वाधिक अमीर बड़े व्यावसायिक घरानों के कर्ज का इतिहास देखें तो समझ आ जाएगा कि यह घोटाला कुछ हजार करोड़ का नहीं, बल्कि लाखों करोड़ का है और देश का सबसे बड़ा घोटाला है। हालात इतने खराब हैं कि खुद पंजाब नेशनल बैंक ही डिफाल्टरों की श्रेणी में शुमार हो सकता है, और अगर ऐसा हो गया तो भारतीय बैंकिंग के इतिहास का यह पहला उदाहरण होगा कि एक सरकारी बैंक ही डिफाल्टर हो जाए। दरअसल पंजाब नेशनल बैंक ने यूनियन बैंक आफ इंडिया को एलओयू जारी करके लगभग 1000 करोड़ का कर्ज दिलवाया था। पंजाब नेशनल बैंक को यह कर्ज अब 31 मार्च तक वापस अदा करना है और यदि पंजाब नेशनल बैंक ऐसा न कर पाया तो यूनियन बैंक आफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक को डिफाल्टर घोषित कर सकता है। अपना यह कर्ज चुकाने के लिए पंजाब नेशनल बैंक के पास इस समय इतनी बड़ी धनराशि उपलब्ध नहीं है। पीएनबी इस वक्त इसी समस्या से दो-चार है। यह स्थिति पंजाब नेशनल बैंक ही नहीं बल्कि बैंक इंडस्ट्री और खुद सरकार के लिए भी शर्मनाक है और बिलकुल संभव है कि इस शर्म से बचने के लिए रिजर्व बैंक और सरकार, पंजाब नेशनल बैंक में अरबों रुपए के नए धन का निवेश करें। ऐसा पहले भी होता आया है और अब भी हो सकता है। परिणाम क्या होगा? विपक्ष को सरकार की आलोचना का एक और मुद्दा मिल जाएगा और सरकार विपक्ष को भ्रष्ट और नकारा साबित करने के लिए उसकी पुरानी कारगुजारी के बाल की खाल निकालेगी, और जनता पर कुछ और नए टैक्स लग जाएंगे।

सरकारी संस्थाओं में हर जगह यही हाल है। जरूरत से अधिक स्टाफ, अनाप-शनाप खर्चे, निकम्मापन, भ्रष्टाचार आदि के कारण सरकारी संस्थान खोखले हो चुके हैं, लेकिन सरकार हर बार इनमें कुछ और निवेश करके जनता में उनके ठीक होने का भ्रम बनाए रखती है। अभी एयर इंडिया अपने घाटे को लेकर खबरों में है। सरकार ने 1948 में इसमें 49 प्रतिशत का निवेश किया था और सन् 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया। तबसे ही ‘महाराजा’ की हालत खराब होनी शुरू हो गई और अब यह आईसीयू में है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 2016-17 के पब्लिक एंटरप्राइज सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार बीएसएनएल उससे भी ज्यादा घाटे में है। सार्वजनिक क्षेत्र के सर्वाधिक घाटे वाले संस्थानों में बीएसएनएल और एयर इंडिया के बाद महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड, हिंदुस्तान फोटो फिल्म्स मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड, स्टील अथारिटी आफ इंडिया लिमिटेड, राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड, वैस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड, अब बंद हो चुकी बंगलूरू स्थित स्पाइस ट्रेडिंग कार्पोरेशन लिमिटेड, सन् 2008 में जिसे एसटीसीएल का नया नाम दिया गया, बह्मपुत्र क्रैकर्स एंड पॉलिमर लिमिटेड तथा एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसिज लिमिटेड देश की सर्वाधिक घाटे वाली कंपनियां हैं। व्यापार, सरकार का काम नहीं है। सरकार को व्यापार में नहीं होना चाहिए। कभी यह देश की आवश्यकता रही होगी, अब यह जनता को ऐसे जुर्म की सजा है जो जनता ने कभी किया ही नहीं।

कल्पना कीजिए कि यदि घाटे वाले यह सभी सरकारी संस्थान बंद हो जाएं तो इससे बचने वाला धन ही देश के विकास को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है। इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा क्षेत्र में इस धन के निवेश से ही देश की किस्मत बदल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन् 2014 का लोकसभा चुनाव ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नैंस’ के नारे के साथ जीता था। लेकिन आज स्थिति बिलकुल उलटी है। वे मैक्सिमम गवर्नमेंट के सिद्धांत पर चल रहे हैं। वे आम जनता के जीवन और अधिकारों में अत्यधिक हस्तक्षेप कर रहे हैं। व्यावहारिक रूप से उन्होंने संविधान की सारी शक्तियां हड़प ली हैं। यह सही है कि 2014 के चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की पूरी मशीनरी ने मोदी का साथ दिया, लेकिन अगर ‘विजन’ और ‘प्रभाव’ की बात करें तो यह अकेले मोदी की ही छवि थी, जिसके दम पर भाजपा ने लोकसभा चुनाव जीता था और मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। यह अलग बात है कि उनके साथ पृष्ठभूमि में काम करने वाले बहुत से लोग थे जिन्होंने न केवल उनकी रणनीति को आकार दिया बल्कि नीतिगत निर्णयों में भी उन्हें शिक्षित किया। मोदी ने उन सब लोगों की मेहनत और काबिलियत का लाभ उठाया और फिर दरकिनार कर दिया। मोदी जानते हैं कि दोबारा चुनाव जीतने के लिए उन्हें अंबानी और अदानी के धन की आवश्यकता तो पड़ेगी, पर सत्ता में होने के कारण चापलूस विद्वानों का जमावड़ा उन्हें यूं भी मिल जाएगा जो अपने निहित स्वार्थों की खातिर उनके लिए हर काम करने को तैयार होंगे। पिछले चुनाव में नीतिगत कारणों से जिन लोगों ने उनका साथ दिया था, वे मोदी से नैतिक आचरण की उम्मीद करते थे और चाहते थे कि देश में वास्तविक लोकतंत्र हो, सरकार सच्चे अर्थों में जनकल्याण के नियम बनाए और सिर्फ वोट बैंक के विकास के लिए ही काम न करे। उन चुनावों में मोदी ने तकनीक और सोशल मीडिया के जादू को समझ लिया था। बाद में उन्होंने इसे एक हथियार बना लिया और भाजपा आईटी सैल को झूठ की फैक्टरी में बदल दिया जो हर रोज उनके महिमा मंडन तथा विरोधियों का मजाक उड़ाने के लिए नए-नए झूठ गढ़ने लगी।

मोदी ने बहुत से नारे दिए, लेकिन उन्हें जल्दी ही समझ आ गया कि नौकरशाही से लड़ना और घाटे के सरकारी उपक्रमों को बंद करना जनहित का कार्य तो हो सकता है, पर फिर अगला चुनाव जीतना तो दूर, राज्यों के विधानसभा चुनाव भी नहीं जीत पाएंगे। इसलिए जिस प्रकार राजनीति को ‘साफ’ करने का नारा देकर राजनीति में आए अरविंद केजरीवाल बड़ी बेशर्मी से व्यवस्था का हिस्सा बन गए, वैसे ही प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी शक्तियों के लालच में नैतिक पतन की पराकाष्ठा पर पहुंच गए। यह इतना विशद विषय है कि इसे एक छोटे से लेख के कलेवर में नहीं सहेजा जा सकता। मोटी बात यह है कि केंद्र की सत्ता में आने से पहले मोदी ने यह स्वीकार किया था कि वे घाटे के सरकारी उपक्रमों को बंद करेंगे ताकि विकास कार्यों में उस धन का उपयोग करके देश को समृद्ध बनाया जा सके, पर बाद में वे इससे मुकर गए। इसी तरह ‘मिनिमम गवर्नमेंट’ के फलसफे का अर्थ था कि जनता को संपत्ति का अधिकार सौंपा जाए तथा उनके सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप न हो, लेकिन मोदी राज में बिलकुल उलटा काम हुआ। मोदी ने चुनाव जीतने के लिए और सारी शक्तियां हड़पने के लिए बहुत से अनैतिक तरीके अपनाए। लेकिन अकेले मोदी को ही दोष क्यों दें? हमारे संविधान की व्यवस्थाएं ही ऐसी हैं कि अनैतिकता के बिना सत्ता में आना और सत्ता में रहना संभव ही नहीं है।

ईमेलःindiatotal.features@gmail. com

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App